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________________ * असंग साक्षी * करते हैं, न रामानुज, न निंबार्क, न वल्लभाचार्य, न तिलक, न चुनकर तीन अलग-अलग काल-खंडों में एक-एक गुण को गांधी, न अरविंद, कोई भी कृष्ण को पूरा स्वीकार नहीं करता। उतने | | अभिव्यक्ति के लिए चुनना है! पहले मैंने तमस को चुना, क्योंकि हिस्से कृष्ण में से काट देने पड़ते हैं, जो असंगत मालूम पड़ते हैं, वही आधारभूत है, बुनियाद में है। विरोधाभासी मालूम पड़ते हैं, जो एक-दूसरे का खंडन करते हुए बच्चा पैदा होता है मां के गर्भ से, तो नौ महीने मां के गर्भ में प्रतीत मालूम पड़ते हैं। बच्चा तमस में होता है, गहन अंधकार में होता है। कोई क्रिया नहीं जैसे गांधी हैं, गांधी अहिंसा को इतना मूल्य देते हैं। तो कृष्ण | | होती, परम आलस्य होता है। श्वास लेने तक की क्रिया बच्चा स्वयं अर्जुन को हिंसा के लिए उकसावा दे रहे हैं, यह उनके लिए अड़चन नहीं करता, वह भी मां ही करती है। भोजन लेने की-बच्चे में खून की बात हो जाएगी। गांधी सत्य को परम मूल्य देते हैं; कृष्ण झूठ | भी प्रवाहित होता है, तो वह भी मां का ही खून रूपांतरित होता रहता भी बोल सकते हैं, यह गांधी की समझ के बाहर है। कृष्ण धोखा है। बच्चा अपनी तरफ से कुछ भी नहीं करता है। भी दे सकते हैं, यह गांधी का मन स्वीकार नहीं करेगा। और अगर अक्रिया की ऐसी अवस्था परिपूर्ण तमस की अवस्था है। बच्चा कृष्ण ऐसा कर सकते हैं, तो गांधी के लिए कृष्ण पूज्य न रह जाएंगे। | है, प्राण है, जीवन है, लेकिन जीवन किसी तरह का कर्म नहीं कर तो एक ही उपाय है कि गांधी किसी तरह समझा लें कि कृष्ण ने रहा है। गर्भ की अवस्था में अकर्म पूरा है। ऐसा किया नहीं है। या तो यह कहानी है. प्रतीकात्मक है. सिंबालिक मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मोक्ष की तलाश. स्वर्ग की आकांक्षा. है। यह जो युद्ध है महाभारत का, यह वास्तविक युद्ध नहीं है गांधी | | निर्वाण की खोज, सिर्फ इसीलिए पैदा होती है कि हर व्यक्ति ने के हिसाब से। ये कौरव और पांडव असली मनुष्य नहीं हैं, जीवित अपने गर्भ के क्षण में एक ऐसा अक्रिया से भरा हुआ क्षण जाना है, मनुष्य नहीं हैं, ये सिर्फ प्रतीक हैं बुराई और भलाई के। और युद्ध धर्म इतना शून्यता से भरा हुआ अनुभव किया है। वह स्मृति में टंगा और अधर्म के बीच है, मनुष्यों के बीच नहीं। पूरी कथा है, एक हुआ है, वह आपके गहरे में छिपा है वह अनुभव जो नौ महीने गर्भ पैरेबल है, तब फिर गांधी को अड़चन नहीं है। बुराई को मारने में | | में हुआ। वह इतना सुखद था, क्योंकि जब कुछ भी न करना पड़ता अड़चन नहीं है; बुरे आदमी को मारने में गांधी को अड़चन है। अगर | हो, कोई दायित्व न हो, कोई जिम्मेवारी न हो, कोई बोझ न हो, कोई सिर्फ बुराई को काटना हो, तो कोई हर्जा नहीं है। चिंता न हो, कोई काम न हो, सिर्फ आप थे, जस्ट बीइंग, सिर्फ लेकिन अगर बुराई को ही काटना होता, तो अर्जुन को भी कोई | | होना मात्र था! जिसको हम मोक्ष कहते हैं, वैसी ही करीब-करीब सवाल उठने का कारण नहीं था। सवाल तो इसलिए उठ रहा था अवस्था मां के गर्भ में थी। वही अनुभूति आपके भीतर छिपी है। कि बुरे आदमी को काटना है। सवाल तो इसलिए उठ रहा था कि इसलिए जीवन में आपको कहीं भी सुख नहीं मिलता और हर उस तरफ जो बुरे लोग हैं, वे अपने ही हैं, निजी संबंधी हैं। उनसे | जगह आपको कमी मालूम पड़ती है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि यह ममत्व है, उनसे राग है, और उनके बिना दुनिया अधूरी और बेमानी | तभी हो सकता है, जब आपके अनुभव में कोई ऐसा बड़ा सुख रहा हो जाएगी। हो, जिससे आप तुलना कर सकें। __ कृष्ण का व्यक्तित्व असंगत होगा ही। तीन गुण एक साथ हैं, ___ हर आदमी कहता है, जीवन में दुख है। सुख का आपको असंगति पैदा करेंगे। अनुभव न हो, तो दुख की आपको प्रतीति कैसे होगी? और हर एक और संभावना है, जिसका प्रयोग मैंने किया है। उसमें भी | | आदमी कहता है कि कोई सुख की खोज करनी है। किस सुख की असंगति होगी, लेकिन वैसी नहीं जैसी कृष्ण में है। खोज कर रहे हैं? जिसका कभी स्वाद न लिया हो, उसकी खोज भी तीनों गुण व्यक्ति में हैं। और व्यक्तित्व की पूर्णता तभी होगी, | कैसे करिएगा? और जिससे हमारा कोई परिचय नहीं है, उसकी हम जब तीनों गुण अभिव्यक्ति में उपयोग में ले लिए जाएं, उनमें से | जिज्ञासा कैसे करेंगे? कोई भी दबाया न जाए। कृष्ण भी दमन के पक्ष में नहीं हैं, मैं भी | । हमारे अचेतन में जरूर कोई अनुभव की किरण है, कोई बीज है दमन के पक्ष में नहीं हूं। और जो भी व्यक्तित्व में है, उसका छिपा हुआ है, कोई आनंद हमने जाना है, कोई स्वर्ग हमने जीया सृजनात्मक उपयोग हो जाना चाहिए। | है, कोई संगीत हमने सुना है। कितना ही विस्मृत हो गया हो, मेरी प्रक्रिया तीनों गुणों को एक साथ अभिव्यक्ति के लिए न लेकिन हमारे रोएं-रोएं में वह प्यास छिपी है, और वह खबर छिपी [103|
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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