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* गीता दर्शन भाग-7 *
नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति ।
अभिव्यक्ति के लिए प्रयोग कर रहे हैं। गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति । । १९ ।। । एक और भी संभावना है, जिसका प्रयोग मैंने किया है। तीनों
गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान् । | गुणों का एक साथ नहीं, एक-एक गुण का अलग-अलग। और जन्ममृत्युजरादुःखैविमुक्तोऽमृतमश्नुते । । २० ।। | मेरी दृष्टि में वही सर्वाधिक वैज्ञानिक है, इसलिए उसका चुनाव और हे अर्जुन, जिस काल में द्रष्टा तीनों गुणों के सिवाय किया है। अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता है अर्थात गुण ही गुणों में तीनों गुण प्रत्येक व्यक्ति में हैं। दो गुणों से कोई भी व्यक्ति बन
बर्तते हैं, ऐसा देखता है और तीनों गुणों से अति परे । | नहीं सकता। एक गुण के साथ किसी व्यक्ति के अस्तित्व की कोई सच्चिदानंदघनस्वरूप मुझ परमात्मा को तत्व से जानता है, | संभावना नहीं है। उन तीनों का जोड़ ही आपको शरीर और मन देता
उस काल में वह पुरुष मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है। है। जैसे बिना तीन रेखाओं के कोई त्रिकोण न बन सकेगा, वैसे ही तथा यह पुरुष इन स्थूल शरीर की उत्पत्ति के कारणरूप | बिना तीन गुणों के कोई व्यक्तित्व न बन सकेगा। उसमें एक भी तीनों गुणों को उल्लंघन करके जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था गुण कम होगा, तो व्यक्तित्व बिखर जाएगा। और सब प्रकार के दुखों से मुक्त हुआ
अगर कोई व्यक्ति कितना ही सत्व-प्रधान हो, तो सत्व-प्रधान परमानंद को प्राप्त होता है।
का इतना ही अर्थ है कि सत्व प्रमुख है, बाकी दो गुण सत्व के नीचे | छिप गए हैं, दब गए हैं। लेकिन वे दो गुण मौजूद हैं। और उनकी
छाया सत्वगुण पर पड़ती रहेगी। प्रधानता उनकी नहीं है, वे गौण पहले कुछ प्रश्न।
हैं। आपमें कोई भी गुण प्रकट हो, तब दो मौजूद होते हैं। पहला प्रश्नः आपने तमस, रजस और सत्व और कृष्ण ने तीनों गुणों का एक साथ प्रयोग किया है। जैसे तीनों गुणों उनकी समान मात्राओं का होना क्रमशः लाओत्से, | की तीनों भुजाएं समान लंबाई की हैं; त्रिभुज की तीनों रेखाएं समान जीसस, महावीर और कृष्ण के व्यक्तित्व के माध्यम | लंबाई की हैं। कृष्ण का व्यक्तित्व तीनों का संयुक्त जोड़ है। और से स्पष्ट किया। इस संदर्भ में याद आता है कि आप | इसलिए कृष्ण को समझना उलझन की बात है। . अतीत में अत्यंत क्रांतिकारी थे। सामाजिक, आर्थिक, ___एक गुण वाले व्यक्ति को समझना बहुत आसान है। जिसमें दो राजनैतिक एवं धार्मिक तलों पर आपने सारे देश में | गुण दबे हों, उसके व्यक्तित्व में एक संगति होगी, कंसिस्टेंसी उथल-पुथल पैदा कर दी थी। जिससे स्पष्ट था कि | | होगी। लाओत्से के व्यक्तित्व में जैसी कंसिस्टेंसी, संगति है, वैसी आप जीसस की तरह रजस-प्रधान हैं। फिर उन्नीस सौ | कृष्ण के व्यक्तित्व में नहीं है। लाओत्से का जो स्वाद एक शब्द में सत्तर के बाद आपने अपने को बिलकुल भीतर है, वही सारे शब्दों में है। बुद्ध के वचनों में एक संगति है, गहन सिकोड़ लिया और हमें लगता है कि अब आप | |संगति है। बुद्ध ने कहा है, जैसे तुम सागर को कहीं से भी चखो, सत्व-प्रधान हैं। क्या ऐसा परिवर्तन संभव है? | वह खारा है, वैसे ही तुम मुझे कहीं से भी चखो, मेरा स्वाद एक है।
जीसस या मोहम्मद, इन सबके स्वाद एक हैं।
लेकिन आप अनेक स्वाद कृष्ण में ले सकते हैं, तीन तो निश्चित क छ बातें ध्यान में लें, तो समझ में आ सकेगा। एक तो ही ले सकते हैं। और चूंकि तीनों का मिश्रण हैं, इसलिए बहुत नए पा बुद्ध, महावीर, मोहम्मद और जीसस जैसे व्यक्तित्व स्वाद भी उस मिश्रण से पैदा हुए हैं। इसलिए कृष्ण का रूप बहुरंगी
हैं। इन व्यक्तित्वों ने एक ही गुण को अपनी | है। और कोई भी व्यक्ति कृष्ण को पूरा प्रेम नहीं कर सकता, उसमें अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। मोहम्मद और जीसस हैं, रजोगुण | चुनाव करेगा। जो पसंद होगा, वह बचाएगा; जो नापसंद है, उसे उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम है। बुद्ध और महावीर हैं, सत्वगुण काट देगा। उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम है। लाओत्से और रमण हैं, तमस | । इसलिए अब तक कृष्ण के ऊपर जितनी भी व्याख्याएं हुई हैं, उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम है। कृष्ण तीनों गुणों को एक साथ | | सब चुनाव की व्याख्याएं हैं। न तो शंकर कृष्ण को पूरा स्वीकार
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