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* गीता दर्शन भाग-7 *
सत्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है; रजोगुण से निस्संदेह लोभः । तमोगुण से प्रमाद और मोह। तमोगुण से प्रमाद और मोह और अज्ञान होता है।
और जो आलस्य में पड़ा रहता है, वह धीरे-धीरे तंद्रा में, निद्रा में, सत्वगुण से ज्ञान। क्योंकि भीतर का अंधेरा टूटता है, आलोक | प्रमाद में, बेहोशी में खोता चला जाता है। पर बेहोशी अज्ञान है। आता है, हम स्वयं को पहचान पाते हैं।
सत्वगुण में स्थित हुए पुरुष स्वर्गादिक उच्च लोकों को जाते हैं। रजोगुण से लोभ। और जितना ही कोई कर्मों में प्रवृत्त होता है, | | रजोगुण में स्थित पुरुष मध्य मनुष्य लोक में, एवं तमोगुण में निद्रा, उतना ही लोभ को जगाना पड़ता है। क्योंकि लोभ को जगाए बिना | | प्रमाद, आलस्य में डूबे हुए लोग, तामस पुरुष, अधोगति, नीच कर्म में प्रवृत्त होना मुश्किल है। इसलिए आप ताश खेल रहे हैं। योनियों को प्राप्त होते हैं। अकेला ताश खेलना आपको ज्यादा रस नहीं देगा। थोड़ा दांव जुए | ये तीन स्थितियां हैं मन की, चित्त की। मेरे हिसाब में कहीं कोई का लगा दें, थोड़े रुपए और रख दें वहां, तो गति आ जाएगी, | | स्वर्ग नहीं है पृथ्वी के ऊपर। और कहीं कोई नरक नहीं है पृथ्वी के क्योंकि अब लोभ के लिए सुविधा है।
नीचे। कहीं पाताल में छिपा कोई नरक नहीं है, आकाश में छिपा तो हम कर्म भी तभी कर सकते हैं, जब कुछ लोभ सामने खड़ा | | कोई स्वर्ग नहीं है। स्वर्ग और नरक मनुष्य की उच्चतम और हुआ दिखाई पड़े। इसलिए राजसिक व्यक्ति अपना लोभ पैदा करता निम्नतम स्थितियां हैं। रहता है रोज, ताकि कर्म कर सके। रजोगुण से लोभ उत्पन्न होता जब भी आप गहन सुख में होते हैं, आप स्वर्ग में होते हैं। और है। लोभ से राजसिकता बढ़ती है। जितनी राजसिकता बढ़ती है, जब आप गहनतम संताप में होते हैं, तो आप नरक में होते हैं। लेकिन उतना लोभ पैदा करना पड़ता है। इसलिए रोज आपको नई मंजिल | आमतौर से आप दोनों में नहीं होते, बीच में होते हैं। वही मनुष्य के चाहिए, नया लोभ चाहिए, नए टारगेट चाहिए, जहां आप पहुंचे। | मन की अवस्था है, मध्य। और दोनों तरफ डोलते रहते हैं। सुबह
इसीलिए रोज विज्ञापनदाताओं को नए विज्ञापन खोजने पड़ते हैं। | | नरक, शाम स्वर्ग। पूरे वक्त आपके भीतर डांवाडोल स्थिति चलती नई कारें बनानी पड़ती हैं। नये मकान की डिजाइन निकालनी पड़ती | | रहती है। स्वर्ग और नरक के बीच यात्रा होती रहती है। है। और आपको नया लोभ देना पड़ता है। विज्ञापन का पूरा का पूरा | जो व्यक्ति सत्व में थिर हो जाता है, उसकी यह यात्रा बंद हो इंतजाम आपको लोभ देने के लिए है। इसलिए जितना राजसिक | | जाती है। वह भीतर के सुख में थिर हो जाता है। उसका थर्मामीटर मुल्क होगा, उतनी ज्यादा एडवरटाइजमेंट होगी।
सुख के उच्चांक को छू लेता है और वहीं ठहरा रहता है। फिर नीचे अमेरिका इस वक्त सबसे ज्यादा विज्ञापन करता है। अरबों | नहीं गिरता। डालर विज्ञापन पर खर्च होता है। क्यों? क्योंकि वे जो आदमी बैठे । जो व्यक्ति तमस में बिलकुल थिर हो जाता है, उसका हैं सारे मुल्क में, उनको कर्म चाहिए।
थर्मामीटर, उसकी चेतना की दशा निम्नतम बिंदु पर ठहर जाती है। अभी इसके पहले तक नारा था कि हर आदमी के पास एक कार | | उससे ऊपर नहीं उठती। हो, एक गैरेज हो। लेकिन अब वह गरीब आदमी का लक्षण है | जो व्यक्ति राजस में भरा हुआ है, राजस में ठहरा हुआ है, वह अमेरिका में। दो कार! अगर आपके पास दो कार नहीं, तो आप | | मध्य में ही बना रहता है। सुख का आभास बना रहता है, दुख का गरीब आदमी हैं। अब यह लोभ हो गया। अब जिनके भी दिमाग | | डर बना रहता है। न दुख मिलता है, न सुख मिलता है। वह बीच में पागलपन है, वे दो कार के पीछे पड़े हैं। हालांकि एक ही कार | | में अटका-सा रहता है; त्रिशंकु की उसकी दशा होती है। और या काम आती है। अब वे दो कार के पीछे पड़े हैं।
फिर कभी-कभी छलांग लगाकर थोड़ा सुख ले लेता है, कभी __ आपके पास मकान सिर्फ शहर में ही है? पहाड़ पर नहीं है? | | छलांग लगाकर थोड़ा दुख ले लेता है। आप गरीब आदमी हैं। एक मकान पहाड़ पर भी चाहिए।
ये तीन स्थितियां हैं। उच्चतम को हम स्वर्ग कहते हैं, वह मन रोज नया लोभ देना पड़ता है, क्योंकि राजसिक पूरा मुल्क हो, की सुख की अवस्था है। निम्नतम को नरक कहते हैं, नीच गति राजस से भरे हुए लोग हों, कर्म का पागलपन हो, और लोभ की कहते हैं, अधोगति कहते हैं, वह चेतना की निम्नतम स्थिति है। कमी हो, तो लोग पागल हो जाएंगे। उनको रोज नया लोभ दो, नई और मध्य, जहां मनुष्य है। आवश्यकता पैदा करो।
मनुष्य शब्द सोचने जैसा है। मनुष्य शब्द बना है मन से। मन
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