SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * रूपांतरण का सूत्रः साक्षी-भाव * की जो दशा है आमतौर से, मध्य में है। मन हमेशा बीच में है। वह | | बनाई, कि कृष्ण ने कोई दुनिया बनाई। भगवान का कुल अर्थ इतना सोचता है, कल सुख मिलेगा। सुख दूर है। मिला नहीं। और वह ही है कि तीन गुणों के जो पार हो गया, वह भगवत्ता को उपलब्ध डरता है कि कल कहीं दुख न मिल जाए। तो कल दुख न मिले, हो गया। इसका इंतजाम करता है। और कल सुख मिले, इसकी व्यवस्था | आज इतना ही। करता है। कल भी वह यही करेगा, परसों भी यही करेगा, पूरी जिंदगी यही करेगा। रहेगा वह बीच में। और तब संतुष्ट नहीं होगा, अतृप्त होगा, फ्रस्ट्रेशन होगा। कहीं नहीं पहुंच रहा है। जहां खड़ा था, वहीं खड़ा है। ये जो चेतना की स्थितियां हैं, इनको समझाने के लिए स्थान की तरह चर्चा की गई है शास्त्रों में। लेकिन उससे बड़ी भ्रांति हो गई है। लोग समझने लगे हैं, ये स्थान हैं। स्थान केवल समझाने के लिए हैं। स्थितियां हैं, स्थान नहीं। स्टेट्स आफ माईंड हैं, कोई भौगोलिक, ज्याग्राफी की जगह नहीं हैं। यह तो अब छोटे-छोटे बच्चे भी जानते हैं कि नरक कहीं नहीं है, स्वर्ग कहीं नहीं है। भूगोल छान डाली गई है। और इसलिए शास्त्रों को निरंतर बदलना पड़ा। पहले शास्त्रों पर इतना दूर नहीं था स्वर्ग, जितना बाद में हो गया। पहले भगवान हिमालय पर रहते थे। फिर आदमी हिमालय पर पहुंचने लगा, तो भगवान को हटाना पड़ा। तो वह उनको कैलाश पर बैठा दिया, आखिरी चोटी पर। फिर वह भी कुछ अगम्य न रही। तो हमें आकाश में बिठाना पड़ा। अब हमारे अंतरिक्ष यान आकाश में पार जा रहे हैं। अब वहां भी भगवान सुरक्षित नहीं है। ___ इसलिए वेदांत ने कहा है कि भगवान निराकार है, तुम उसे कहीं खोज न पाओगे। तुम कहीं भी जाओ, तुम यह नहीं कह सकते, वह नहीं मिला; क्योंकि उसका कोई आकार नहीं है। पर यह आदमी जहां भी खोज लेता है, वहीं हमको कहना पड़ता है, यहां भगवान नहीं है। स्थान की बात ही गलत है। स्थान से कुछ संबंध नहीं है। भगवान भी एक अवस्था है भगवत्ता की। जैसे ये तीन अवस्थाएं मन की हैं, ऐसी वह तीन के पार चौथी अवस्था है, गुणातीत। जब कोई तीनों के पार हो जाता है—न दुख, न सुख, न मध्य; न तामस, न राजस, न सात्विक-जब तीनों गुणों के पार कोई उठ जाता है, तब उस अवस्था का नाम भगवत्ता है। इसलिए हम कृष्ण को भगवान कहते हैं या बुद्ध को भगवान कहते हैं। भगवान का कुल अर्थ इतना ही है। भगवान का यह मतलब नहीं कि उन्होंने दुनिया बनाई, कि बुद्ध ने कोई दुनिया 99
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy