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________________ गीता दर्शन भाग-7* जैसे सूखा पत्ता वृक्ष से गिरता है। न तो वृक्ष को घाव पैदा होता है, ___ सभी पति ऐसा ही सोचते हैं। क्योंकि जो दूर है, वह लुभावना न पत्ते को पता चलता है, न कहीं कोई खबर होती है। सूखा पत्ता | | है। जो पास है, वह व्यर्थ हो जाता है। जो हाथ में नहीं है, वह है। सूख गया। अपने आप चुपचाप कब झड़ जाता है हवा के झोंके आकर्षक है। जो हाथ में है, वह बोझ हो जाता है। में, किसी को पता नहीं चलता। वृक्ष की नींद भी नहीं टूटती। वह । पर अगर आप जंगल चले गए, तो आप चर्चा करेंगे कि आप अपनी शांति में खड़ा है। एक कच्चे पत्ते को तोड़ें; पत्ते को भी चोट कोई नूरजहां, कोई मुमताजमहल छोड़ आए हैं। कोई बड़ा महल, पहुंचती है, वृक्ष पर भी घाव बनता है। वृक्ष भी सहमता है। कोई बड़ा राज्य...। अब तो नापने के उपाय हैं वृक्ष की संवेदना को। वृक्ष की संवेदना वह सूचना आप जो दे रहे हैं, उससे पता चलता है कि वह छूट का यंत्र लगा दें और पत्ता तोड़ें। और संवेदना का यंत्र कहेगा, वृक्ष नहीं पाया। घाव पीछे रह गया है। जिनको त्यागी गई चीजों की याद को चोट पहुंची, घाव पहुंचा; दुख हुआ। रह जाती है, उनका घाव पक्का है, वह भर नहीं रहा। वह घाव दर्द और ध्यान रखें, वृक्ष भी याद रखता है। अगर आप रोज-रोज दे रहा है। वृक्ष का पत्ता तोड़ते हैं या माली हैं और काटते हैं, तो आप चकित कृष्ण कहते हैं, सात्विक कर्म का फल वैराग्य है। होंगे जानकर, रूस में बड़े प्रयोग हुए हैं, जब माली वृक्ष के पास यह बड़ा क्रांतिकारी वचन है और बड़ा वैज्ञानिक। शुभ जो करेगा, आता है...। बहुत पहले कबीर ने कहा था, माली आवत देख के | धीरे-धीरे उसका राग क्षीण हो जाएगा और वैराग्य का उदय होगा। कलियन करी पुकार। वह कबीर ने कविता में कहा था। अभी रूस राजस कर्म का फल दुख; तामस कर्म का फल अज्ञान। . में उसके वैज्ञानिक प्रयोग हुए हैं। राजस कर्म का फल दुख होगा, क्योंकि वह दुख से निकलता जैसे ही माली को वृक्ष करीब आते देखता है, उसके सारे प्राण | है। आप कर्मों में लगे हैं इसलिए कि आप इतने ज्यादा भीतर के रोएं-रोएं सिहर उठते हैं। और इसकी जांच, अब तो वैज्ञानिक परेशान हैं कि कर्मों में लगकर अपने को भुलाने की कोशिश कर यंत्र हैं हमारे पास, जो खबर दे देते हैं कि वृक्ष कंप रहा है, घबड़ा रहे हैं। इसलिए छुट्टी का दिन बहुत कठिन हो जाता है। उसे गुजारना रहा है। और ऐसा नहीं कि जिस वृक्ष को काटा है, वही घबड़ाता मुश्किल हो जाता है। है। उसके पास के वृक्ष भी उसकी पीड़ा से प्रभावित होते हैं और लोग छुट्टी का दिन गुजारने बाहर भागते हैं। मीलों का सफर घबड़ाते हैं और डांवाडोल होते हैं। लेकिन सूखा पत्ता जब गिरता | करेंगे। भागे हुए जाएंगे, कहीं होटल में खा-पीकर भागे हुए है, तो वृक्ष को कहीं भी कुछ पता नहीं चलता। आएंगे। अमेरिका और योरोप में तो बिलकुल बंपर टु बंपर कारें सुखी आदमी जब कुछ छोड़ता है, तो सूखे पत्ते की तरह गिर लगी हैं। लाख कारें एक साथ एक बीच पर पहुंच जाएंगी। वह सब जाता है। इसलिए बुद्ध जब छोड़ते हैं राज्य, वह और बात है। और उपद्रव जिसको वे छोड़कर भागे थे, साथ ही चला आ रहा है! वहां अगर आप घर छोड़कर चले गए, वह कोई राज्य भी नहीं है, | बीच पर कोई जगह ही नहीं है। वहां सारा मेला भरा हुआ है। वहीं आपका घाव आपको सताएगा। आप चले जाएंगे जंगल में, लेकिन | | वे बैठे हैं। शांति की तलाश में आए थे। मगर अकेले नहीं आए थे, सोचेंगे घर की। चले जाएंगे जंगल में, लेकिन कोई मिलने आ और भी लोग शांति की तलाश में निकल पड़े थे! जाएगा, तो आप कहेंगे, महल छोड़ आया हूं। चाहे आप झोपड़ा ___ अब तो लोग कहते हैं कि अमेरिका में अगर शांति चाहिए हो, छोड़ आए हों। लाखों की संपत्ति पर लात मार दी है। बड़ी सुंदर | तो छुट्टी के दिन घर में बैठे रहो। क्योंकि पड़ोसी सब जा रहे हैं पत्नी थी। हालांकि किसी की पत्नी सुंदर नहीं होती। सदा दूसरे की | शांति की तलाश में। थोड़ी शांति शायद मिल जाए। लेकिन कहीं पत्नी सुंदर होती है, अपनी कभी होती नहीं। | जाना मत, क्योंकि जहां भी तुम जाओगे, वहीं आदमी पहुंच गया मुल्ला नसरुद्दीन शादी कर लाया था। तो पत्नी ने पहले ही दिन है तुमसे पहले। कहा कि यह जो बाथरूम है, इस पर पर्दा लगा दो, क्योंकि पड़ोसी | हमारे भीतर दुख है। उसे हम भुला रहे हैं किसी न किसी तरह देखते हैं। नसरुद्दीन ने बेफिक्र रह। एक दफा देख लेने दे, पर्दा वे | के कर्म में। खाली बैठकर हमें बेचैनी होती है, क्योंकि खाली खद अपनी खिड़कियों पर लगाएंगे। त बिलकल फिक्र मत कर। बैठकर दख हमारा साफ हो जाता है। यह खर्चा मेरे ऊपर मत डाल। बस, एक दफा उनको देख लेने दे।। ध्यान रहे, दुख से बचने का हमें एक ही उपाय है, विस्मरण।
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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