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* रूपांतरण का सूत्रः साक्षी-भाव *
पत्नी पर मेरा सुख निर्भर है। मेरे पति पर निर्भर है। मेरे बेटे पर, मेरे | | होने से, न न होने से। सुख एक आंतरिक संपदा है। जब उसे आप पिता पर, मित्र पर, धन पर, मकान पर, किसी दूसरे पर कहीं मेरा | | अपने भीतर खोज लेते हैं, तब आपको मिलता है। तब हर हालत सुख निर्भर है। और जिस पर मेरा सुख निर्भर है, उसे मैं पकड़कर | | में मिलता है। तब ऐसी कोई दशा नहीं है, जब सुख नहीं मिलता। रखना चाहता हूं कि वह छूट न जाए। यही राग है।
तब हर स्थिति में आप सुख खोज लेते हैं। लेकिन सात्विक व्यक्ति जानता है कि सुख मेरे भीतर है; इसका | __ अगर घर में बच्चे खेल रहे हैं और शोरगुल कर रहे हैं, तो आप वह रोज अनुभव करता है। जब भी वह सात्विक कर्म करता है, | | उनकी, बच्चों की खिलखिलाहट में सुख लेते हैं। और बच्चे चले सात्विक भाव करता है, वह पाता है, सुख बरस जाता है। सुख मेरे | | गए और घर खाली है, तो आप घर के सन्नाटे में सुख लेते हैं। तब हाथ में है। सुख की वर्षा का सारा आयोजन मेरे हाथ में है। इशारा, घर का सन्नाटा सखद है। और जब बच्चे लौट आते हैं. और और सुख बरस जाता है।
किलकारियां भरते हैं, और नाचते हैं, कूदते हैं, तब आप उनके स्वभावतः, वह जानने लगता है कि सुख मेरा किसी पर निर्भर | | नाचने-कूदने में सुख लेते हैं। जीवन चारों तरफ उछलता हुआ, नहीं है। इसलिए उसका राग क्षीण होता है, वैराग्य बढ़ता है। अगर | आप उसमें सुख लेते हैं। पत्नी उसके पास है, तो वह सुखी है। और पत्नी उससे दूर है, तो | | लेकिन सुख आपके भीतर है। कभी आप सन्नाटे पर आरोपित वह सुखी है। और उसके सुख में फर्क नहीं पड़ता। जब पत्नी पास | | कर देते हैं, कभी बच्चों की किलकारी पर आरोपित कर देते हैं। है, तब वह पत्नी का सुख लेता है। जब पत्नी दूर है, तब पत्नी के जो दुखी आदमी है, बच्चे शोरगुल करते हैं, तो वह कहते हैं, न होने का सुख लेता है। पर उसके सुख में अंतर नहीं पड़ता। और शांति नष्ट हो रही है। बंद करो आवाज! घर में कोई न हो, तो वह दोनों का सुख है, ध्यान रहे।
| कहता है, बिलकुल अकेला हूं। बड़ी उदासी मालूम होती है। और आमतौर से आदमी, जब पत्नी है, तब पत्नी के होने का दुख | | आपके ढंग पर, आपकी जीवन-व्यवस्था पर, लाइफ स्टाइल पर भोगता है। और जब पत्नी नहीं है, तब न होने का दुख भोगता है। | | निर्भर है। सात्विकता एक जीवन का ढंग है, जिसमें सुख भीतर है। __ आप प्रयोग करके देखना, पत्नी को थोड़े दिन बाहर भेजें। फिर | ___ इसलिए कृष्ण बड़ी मौलिक बात कहते हैं कि वैराग्य उसका आप दुखी होंगे कि पत्नी दूर है। और आप भलीभांति जानते हैं कि | फल है। जब पास थी, तब नरक था। मगर थोड़े दिन दूर रहे, तो भूल जाता सुखी आदमी हमेशा विरागी होगा। आपने इससे उलटी बात है नरक और कल्पना कर-करके आप स्वर्ग बना लेते हैं। पत्नी | सुनी होगी कि अगर सुख चाहिए हो, तो वैराग्य को साधो, वह आते ही से सब स्वर्ग रास्ते पर लगा देगी। वापस आई कि नरक | | बिलकुल गलत है। क्योंकि कृष्ण यह नहीं कह रहे हैं, वैराग्य शुरू हुआ।
साधो, तो सात्विकता आ जाएगी। कृष्ण कह रहे हैं, सात्विक हो लोगों का अनुभव है, पति-पत्नियों का, कि न तो वे साथ रह | जाओ, तो वैराग्य उसका फल है। सकते हैं और न दूर रह सकते हैं। इसलिए उनका द्वंद्व जो है, उससे | लेकिन न मालूम कितने लोग समझाए चले जा रहे हैं कि तुम छुटकारे का कोई उपाय भी नहीं है। पास रहते हैं, तो कष्ट पाते हैं।। | वैरागी हो जाओ। छोड़ दो सब, फिर बड़े सुखी हो जाओगे। दूर रहते हैं, तो कष्ट पाते हैं।
___ मैं छोड़े हुए लोगों को जानता है। यहां घर के कारण दुखी थे; जिन लोगों के पास धन है, वे धन के कारण परेशान हैं। जिनके वहां अब आश्रम के कारण दुखी हैं। पहले यहां पत्नी-बच्चों के पास धन नहीं है, वे धन के न होने के कारण परेशान हैं। कोई गरीबी | कारण दुखी थे, अब वहां दुखी हैं संन्यासियों के पास रहकर से पीड़ित है, कोई अमीरी से पीड़ित है।
| संन्यासियों के कारण। दुख में अंतर नहीं है। मेरे पास, दोनों तरह के पीड़ित लोगों का मुझे अनुभव है। गरीब असल में दुख इस तरह छूटता ही नहीं। सात्विक हो जाओ, तो यह सोचता है, धन मिल जाए, तो बड़ा सुख हो। धनी कहता है कि वैराग्य उसका फल होगा। सब है, लेकिन सिवाय चिंता के इससे कुछ मिलता नहीं! | और ध्यान रहे, जब दुखी आदमी छोड़कर भागता है, तो उसका
शायद आपको खयाल ही नहीं है कि सुख बाहर से कभी किसी | छोड़कर भागना एक रोग की तरह है। और जब सुखी आदमी को मिला नहीं है। न गरीबी से मिला है, न अमीरी से; न पत्नी के छोड़ता है, उसके छोड़ने में एक शान है। उसका छोड़ना ऐसा है,