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________________ गीता दर्शन भाग-7 देकर रास्ता पार करवा दें। रास्ता पार कराते-कराते ही आपके भीतर कुछ होने लगेगा। सब हलका हो जाएगा, शांत हो जाएगा। रास्ते पर एक नोट पड़ा हो। उठाने का खयाल आ जाए, उससे बेचैनी शुरू हो जाएगी। फिर उठाकर उसे जेब में रख लें। फिर वह पहाड़ की तरह भारी मालूम पड़ेगा। फिर आप और कुछ भी करते रहें, लेकिन भीतर एक बेचैनी है। अमेरिका की अदालतों में एक यंत्र का उपयोग करते हैं, लाई डिटेक्टर, झूठ पकड़ने का यंत्र । वह पकड़ लेता है झूठ। वह झूठ इसलिए पकड़ लेता है कि झूठ बोलते ही हृदय को झटका लगता है। उस झटके को पकड़ लेता है। उस यंत्र के ऊपर अदालत में आदमी को खड़ा कर देते हैं। उससे कुछ पूछते हैं। उससे पूछते हैं, इस समय घड़ी में कितने बजे हैं? घड़ी सामने है। झूठ बोलने का कोई कारण नहीं है। वह कहता है, जे हैं। उससे पूछते हैं, दीवाल पर कौन-सा रंग है? झूठ बोलने का कोई कारण नहीं है। वह कहता है, हरा रंग है। ऐसे चार-छः सवाल पूछते हैं। नीचे यंत्र उसके हृदय की धड़कन को नोट कर रहा है। हृदय की धड़कन का ग्राफ बन रहा है नीचे। फिर उससे पूछते हैं, क्या तूने चोरी की ? तो भीतर से तो आवाज आती है, की। क्योंकि उसने की है। ऊपर से वह कहता है, नहीं की। नीचे झटका लग जाता है। नीचे जो हृदय का कंपन है, वह दोहरी खबर देता है, एकदम से झटका आ जाता है। नीचे का ग्राफ बताता है कि यह आदमी कुछ और कहना चाहता था और इसने कुछ और कहा । तो अब तो हर अदालत में अमेरिका में उपयोग कर रहे हैं। झूठ बोलना बहुत मुश्किल है, आप कितने ही तैयार होकर गए हों । जितने तैयार होकर गए हों, उतना ही मुश्किल है। क्योंकि आप क्या करिएगा इस बात को ! भीतर यह होगा ही। जो आप जानते हैं, सही है, वह तो आप जानते हैं। उसे भूलने का कोई उपाय नहीं । और जो आप जानते हैं, सही नहीं है, आप उसे कितना ही कहें, हृदय झटका खाएगा। क्योंकि दोहरी बातें हो गईं। एक स्वर न रहा; भीतर दो स्वर हो गए। यह जो आदमी ऐसे दो स्वर प्रकट कर रहा है यंत्र के ऊपर, जो आदमी बुरा कर रहा है, वह चौबीस घंटे इस तरह की ही बेचैनी में रहा है। झूठ बोलने वाले आदमी की बड़ी तकलीफ है। उसको एक झूठ के लिए हजार झूठ बोलने पड़ते हैं। एक बुरा काम कर ले, तो उसको बचाने के लिए फिर हजार बुरे काम करने पड़ते हैं। फिर एक सिलसिला शुरू होता है, जिसका कोई अंत नहीं है । और इसमें वह | उलझता चला जाता है। इस सबका इकट्ठा परिणाम दुख है। लेकिन कृष्ण कहते हैं, सात्विक कर्म का फल सुख और ज्ञान है। जैसे ही आप हलके होंगे, शांत होंगे, प्रसन्न होंगे, प्रफुल्लित होंगे, एट ईज होंगे, एक गहरा विश्राम होगा; भीतर दो स्वर नहीं हैं, एक ही भाव है; और सब चीजें साफ हैं, सच्ची हैं, सीधी हैं। इस सीधे - सच्चेपन में, इस भोलेपन में, इस निर्दोषता में, आपकी आंखें अपने को पहचानने में समर्थ होंगी। वही ज्ञान है। 94 स्वयं को पहचानने के लिए भीतर धुआं नहीं चाहिए, द्वंद्व नहीं चाहिए, कलह नहीं चाहिए। भीतर सन्नाटा चाहिए। और सन्नाटा केवल उसी में हो सकता है, जो सात्विक हो । नहीं तो सन्नाटा बहुत मुश्किल है। आपको पूरे समय सुरक्षा में ही लगे रहना पड़ता है। पूरे समय भय पकड़े है। पूरे समय कोई आपका पीछा कर रहा है। कोई आपको पकड़ने - उलझाने में लगा हुआ है। जिन-जिन को आपने धोखा दिया है, वे आपकी तलाश में हैं। जिन-जिन का आपने बुरा किया है, वे भी आपके बुरे के लिए, प्रतिकार की प्रतीक्षा कर रहे । ये सब चारों तरफ आपके दुश्मन हो जाते हैं। असल में, सात्विक व्यक्ति अपने चारों तरफ मित्रता बो रहा है, प्रेम बो रहा है। उसे भय का कोई कारण नहीं है। सुरक्षा की कोई चिंता नहीं है। भीतर कोई कलह नहीं है। इससे जो सहज भाव पैदा होगा, जो आंतरिक स्वास्थ्य पैदा होगा, वही स्वास्थ्य आपकी आंखों को भीतर की तरफ खोलेगा। धुआं हट जाएगा। जैसे सुबह की धुंध हट गई हो और सूरज साफ हो जाए, वैसे ही आपके दुष्कृत्यों की धुंध हट जाएगी, दुर्भाव की धुंध हट जाएगी, और आप आत्म-साक्षात्कार में सफल हो पाएंगे। इसलिए ज्ञान । और भी उससे भी जटिल बात है, वैराग्य । सुख, ज्ञान और वैराग्य फल हैं सात्विक कर्म के। यह बहुत समझने जैसा है और बहुत गहरा और सूक्ष्म है। जो आदमी जितना सात्विक है, उतना उसका राग गिरने | लगेगा, उतना ही उसमें एक वैराग्य भाव उदय होने लगेगा। क्यों ? राग का क्या मतलब है? राग का मतलब है, मेरा सुख दूसरे पर निर्भर है। यह राग का मतलब है, अटैचमेंट का, कि मेरा सुख दूसरे पर निर्भर | मेरी
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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