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________________ * रूपांतरण का सूत्रः साक्षी-भाव * चीजें सिकुड़ गई हैं; जैसे प्राण कहीं भीतर खो गए हैं और शरीर कि वह बेहोश पड़ा है; और न विक्षिप्त होगी कि वह व्यर्थ के निर्जीव हो गया है। क्रिया-कलाप कर रहा है। उसकी नींद एक गहरा विश्राम होगी, जैसे ऐसा व्यक्ति सुबह जब उठेगा, तो ताजा नहीं होगा; उसमें | | कोई ध्यान में लेटा हो। जैसे जागा भी हो और सोया भी हो। जरा-सी जिंदगी की लहर नहीं होगी। ऐसा व्यक्ति एकदम से नहीं उठ | | खटके की आवाज होगी, तो वह जाग सकता है। लेकिन उसकी नींद सकता। सुबह उठेगा; फिर करवट बदलेगा; फिर सो जाएगा। फिर उथली नहीं है। खटके की आवाज में वह जो आलसी है, वह जाग करवट बदलेगा; फिर सो जाएगा। उसे उठने में कम से कम घंटाभर नहीं सकता। खटका क्या, किसी आवाज में नहीं जाग सकता। लगेगा। नींद में और जागने के बीच वह घंटेभर की यात्रा करेगा। __ मुल्ला नसरुद्दीन से एक दिन सुबह उसकी पत्नी बोली कि रात बार-बार जागेगा और बार-बार सो जाएगा। यह मूर्छा है। यह नींद | बड़ी कठिनाई हो गई। भूकंप आया; बड़ी बिजलियां गरजीं; सारे नहीं है। क्योंकि नींद तो टूट चुकी है, लेकिन मूर्छा टूटने में समय | | गांव में उथल-पुथल मच गई; सैकड़ों मकान गिर गए। नसरुद्दीन लग रहा है। ने कहा, पागल, मुझे क्यों न उठाया! मैं भी देखता। जो आदमी राजसी है. वह रातभर श्रम करेगा: हाथ-पैर वह जो चलाएगा, मुंह चलाएगा, बोलेगा, आवाज करेगा। यह आदमी प्रफल्लता कहें. ताजगी कहें, नयापन कहें. वह उसमें नहीं है। वह रातभर गति में रहेगा। इसकी नींद विक्षिप्त है। मूर्छित नहीं है, | सदा बासा है। उसके मुंह का स्वाद सदा बासा है। वह कभी खिला लेकिन विक्षिप्त है। और सुबह जब यह उठेगा, तो यह उठ आएगा हुआ नहीं है, सदा मुरझाया हुआ है। राजसी व्यक्ति सुबह-सुबह एकदम से, क्योंकि यह राजसी है। वस्तुतः राजसी आदमी बिस्तर | मुरझाया हुआ लगेगा, क्योंकि रातभर व्यर्थ काम में संलग्न रहा है। से उठता नहीं, कूदता है, उठता नहीं। नींद टूटी कि छलांग लगाकर सांझ होते-होते ताजा होने लगेगा। वह बाहर हो जाएगा, जैसे एक झंझट से छूटे। फिर मौका मिला सभ्यताओं में भी इसके अंतर होते हैं। योरोप, पश्चिम की भाग-दौड़ का। तो वह बाहर निकल जाएगा। लेकिन यह आदमी | सभ्यता राजसी है। इसलिए पश्चिमी सभ्यता का जो पूरा उभार है, थका हुआ पाएगा सुबह। वह सांझ के बाद है। पेरिस है, या लंदन है, या न्यूयार्क है; वहां तामसी व्यक्ति मूर्छित पाएगा सुबह। ताजा नहीं हुआ। जिंदगी जो असली जिंदगी है, वह दिन में नहीं है, वह रात में है। जब लोग बोझिल लगेगी। राजसी व्यक्ति सुबह थका हुआ पाएगा, जैसे बड़े | | नाच-घरों में चले गए हैं, शराब पी रहे हैं, जुआ खेल रहे हैं, तब काम करके आ रहा है। असली जिंदगी है। अगर पेरिस देखना है, तो रात देखना। दिन में यह ध्यान रखें कि राजसी व्यक्ति दिनभर के काम के बाद दस पेरिस का कोई अर्थ नहीं है। क्योंकि पेरिस जगता ही रात में है। ग्यारह बजे रात सबसे ज्यादा ताजा अपने को अनुभव करेगा। सोने पश्चिम की सारी सभ्यता रात्रि में सजग होती है। पूरब ने एक के पहले वह सबसे ज्यादा ताजा होगा, क्योंकि दिनभर के काम के व्यवस्था की थी, वह पूरी व्यवस्था ब्रह्ममुहूर्त में जागने वाली थी। बाद उसको बड़ी राहत मिली। | सांझ जल्दी सो जाने वाली, और सुबह जब सूरज उगे, उसके पहले ये जो क्लब चल रहे हैं, नाच-घर चल रहे हैं, वे राजसी लोग | उठ आने वाली थी। वह सात्विक व्यवस्था की चेष्टा थी। चला रहे हैं। वे सब से ज्यादा ताजे होते हैं; उनकी जिंदगी का जो वह जो सात्विक व्यक्ति है, रात बिलकुल शांति से सोता है। न पीक प्वाइंट है, वह रात ग्यारह-बारह बजे आता है। तब वे सबसे | तो विक्षिप्त होता है, न मूर्छित होता है। सूरज के उगने के पहले ज्यादा जिंदा होते हैं। दिनभर के उपद्रव के बाद उन्हें लगता है कि | | या करीब-करीब सूरज के उगते वह उठ आता है। सूरज का उगना, वे प्रसन्न हैं। | उसके भीतर की चेतना का भी जग जाना है। लेकिन राजसी व्यक्ति सुबह हमेशा थका हुआ होगा; रात ताजा | होना भी यही चाहिए। क्योंकि सूरज के साथ सारे पक्षी जागते होगा। तामसी व्यक्ति सदा थका होगा। वे कभी ताजे नहीं हैं। वे हैं। सूरज के साथ सारे पौधे जागते हैं। सूरज के साथ पृथ्वी जागती सदा सोए-सोए हैं। मजबूरी है कि उन्हें उठना पड़ता है। | है। और अगर आप इस पृथ्वी के वास्तविक प्राकृतिक हिस्से हैं, तो सात्विक व्यक्ति जब रात सोएगा, तो उसकी नींद में एक | | सूरज के साथ ही जागना उचित है। सूरज के आते ही आपके भीतर हलकापन और एक प्रकाश होगा। उसकी नींद न तो मूर्छित होगी| भी जीवन सजग हो जाना चाहिए और उतनी ही ताजगी से भर जाना 89
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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