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________________ गीता दर्शन भाग-7 ** नहीं रही आपके ऊपर, जैसी पहले थी। आलस्य अब कोई बोझ नहीं रहा; एक हलका विश्राम हो गया। और अब आप चाहें तो थोड़ा कर्म कर सकते हैं, यद्यपि यह कर्म भी राजसी वाला कर्म नहीं होगा। इसमें भाग-दौड़ नहीं होगी। यह भी शांत होगा। यह नदी बहेगी, लेकिन इसकी गति बहुत शांत होगी; शोरगुल नहीं होगा। यह कोई पहाड़ी नदी नहीं होगी। यह कोई पत्थरों पर आवाज करती हुई नहीं बहेगी। इसमें कर्म भी आएगा, तो धीमी लहर की भांति आएगा, जिससे कोई आवाज नहीं होती। और इसका कर्म भी अत्यंत शांत होगा। लाओत्से को जिन्होंने चलते देखा है, वे देखेंगे कि उसका चलना भी ऐसा है, जैसे वह सोया हो, इतना विश्रांति से भरा हुआ। और राजसी व्यक्ति अगर सोए भी, तो उसकी निद्रा में भी वह सोया हुआ नहीं रहता। वह नींद में भी काफी चहलकदमी करता है। आपने देखा नहीं है लोगों को । रात किसी को सोते हुए अध्ययन करें! सिर्फ बैठ जाएं उसके किनारे और रातभर देखें कि वह क्या कर रहा है। आप बड़े चकित होंगे। क्योंकि कोई किसी को देखता नहीं है। अमेरिका में स्लीप लैब्स बनाए हैं उन्होंने । कोई दस बड़ी प्रयोगशालाएं हैं, जहां हजारों लोगों के ऊपर अध्ययन किया जा रहा है । रातभर अध्ययन किया जाता है कि सोया हुआ आदमी क्या-क्या कर रहा है। यह पहली घटना है मनुष्य जाति के इतिहास में, जब नींद का वैज्ञानिक अध्ययन हो रहा है। तो बड़े चमत्कारी परिणाम हुए। एक तो यह बात पता चली है कि यह हमारा खयाल गलत है कि लोग पड़े रहते हैं। लोग पड़े नहीं रहते; लोग बड़ी क्रियाएं करते हैं। करवटें बदलते हैं; हाथ-पैर चलाते हैं; मुंह बनाते हैं; मुंह बिचकाते हैं; आवाजें करते हैं; आंखें चलाते हैं। सारा काम जारी रहता है। गरदन हिलाते हैं। कुछ लोग बोलते हैं। कुछ लोग अनर्गल बकते हैं। कुछ लोग उठकर चलते भी हैं कमरे में। उनको भी पता नहीं सुबह कि वे रात कमरे में चलते हैं। कुछ लोग घर का चक्कर लगा आते हैं; फ्रिज खोलकर खा भी आते हैं; और उनको पता भी नहीं होता कि रात में उन्होंने यह काम किया है। चोरी की है लोगों ने नींद में, और उनको पता नहीं। लोगों ने हत्याएं तक की हैं नींद में, और उनको पता नहीं। न्यूयार्क में एक आदमी रोज रात अपनी छत से, साठ मंजिल मकान की छत से, दूसरे की छत पर कूद जाता था। वापस कूद आता था। पर यह नींद में ही होता था। नियमित क्रम था। कोई रात | दो बजे ! धीरे-धीरे यह बात मुहल्ले-पड़ोस में पता चल गई। लोग देखने भी खड़े होने लगे। कोई आदमी होश में नहीं कूद सकता। दोनों मकानों के बीच काफी फासला है और खतरा बड़ा है। क्योंकि साठ मंजिल का गड्ड है बीच में। लेकिन एक रात काफी लोग इकट्ठे हो गए। और जब वह आदमी कूदा, तो उन्होंने सिर्फ जोश में आवाज लगा दी। उस आदमी की नींद टूट गई। नींद टूटते ही वह बीच के खड्ड में गिर गया। वह खुद भी पगला गया। जैसे ही नींद टूट गई उसकी, उसकी समझ के बाहर हो गया कि यह क्या हो रहा है ! वह आदमी मर गया। उस आदमी की यह घटना अकेली नहीं है। ऐसे सैकड़ों लोग हैं। मनोविज्ञान उनको एक खास तरह की बीमारी से पीड़ित पाता है, सोम्नाबुलिज्म, निद्रा में क्रिया करने की बीमारी । हत्याएं कर दी हैं लोगों ने; गरदनें दबा दी हैं; और जाकर अपने बिस्तर पर सो गए हैं। सुबह उन्हें कुछ याद नहीं । जैसे आप सपना भूल जाते हैं सुबह, ऐसा | वे उस घटना को भी भूल गए हैं। वह बिलकुल नींद में हुआ है। ये नींद में जो लोग चलते हैं, ये आंख खुली रखते हैं, इसलिए टकराते नहीं हैं। बराबर निकल जाते हैं। सामान रखा हो, तो बचकर निकल जाते हैं। आंख उनकी खुली रहती है। लेकिन एक फर्क होता है। आंख उनकी झपती नहीं जब वे नींद में चल रहे होते हैं। आंख बस खुली रहती है। जैसे मरे हुए आदमी की आंख खुली हो; झपे नहीं। उनकी आंख झपती नहीं है। अंधेरे में काम करके वे अपना वापस अपनी जगह आकर सो जाते हैं। नींद में भी आप भिन्न-भिन्न हैं। एक महावीर हैं, जिनके बाबत | कहा जाता है कि वे रात करवट नहीं बदलते। दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं, जो साठ मंजिल के मकान से छलांग भी लगाते हैं। 88 रात्रि भी एक बड़ी क्रिया है । और रात्रि कोई छोटी घटना नहीं है। आप साठ साल जीएंगे, तो बीस साल सोते हैं। एक तिहाई जिंदगी नींद में जाती है। रोज नियमित आठ घंटा आप नींद में उतरते हैं, एक दूसरे लोक में प्रवेश करते हैं। वहां भी क्रिया जारी है। रात सोते हुए आदमियों का अध्ययन करके भी कहा जा सकता है कि कौन सात्विक है, कौन राजसिक है, कौन तामसिक है। तामसिक की निद्रा ऐसी होगी, जैसे वह बेहोश पड़ा है। इस फर्क को ठीक से समझ लें। उसकी निद्रा मूर्च्छा जैसी होगी। जैसे उसे बेहोशी है, कोमा है। तो रात नींद में भी पता चलेगा कि उसके चेहरे पर एक बेहोशी छाई हुई है; सूखापन है; उदास है; सब
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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