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________________ * रूपांतरण का सूत्रः साक्षी-भाव * योग्य होगी, क्योंकि तप उसे क्रिया का मौका देगा। सात्विक व्यक्ति व्यक्तित्व के ऊपर निर्भर है। को भी तपश्चर्या अर्थ की नहीं है। उसे भी कठिनाई होगी। न तो | | तमस से भरे हुए व्यक्ति को व्यर्थ के दौड़-धूप में नहीं पड़ना लाओत्से तपश्चर्या कर सकता है और न बुद्ध। | चाहिए। उसे पहले तो अपने तमस को स्वीकार कर लेना चाहिए बुद्ध ने छः वर्ष तक तपश्चर्या की और दुख पाया। यह बड़ी | कि यह मेरा भाग्य इस जन्म में। अनंत जन्मों में मैंने इसे कमाया। अनूठी घटना है। और इसे समझाना आज तक नहीं हुआ कि यह | यह मेरा है। इसका मुझे उपयोग करना है। इससे लड़ना नहीं है। कैसे हुआ! क्योंकि बुद्ध छः वर्ष तक कठोर तपश्चर्या किए और | जो भी आपके पास है, ध्यान रखें, उसका उपयोग करना है, दुख पाए। और उन्हें कोई सत्य नहीं मिला। न कोई निर्वाण मिला; | उससे लड़ना नहीं है। क्योंकि उससे लड़कर आप टूटेंगे और नष्ट न कोई शांति मिली; न कोई आनंद मिला। और छः वर्ष के दुखद | होंगे। उसका उपयोग करें; उसका सेतु बनाएं, मार्ग बनाएं। अनुभव के बाद बुद्ध ने सब तप छोड़ दिया। और जिस दिन उन्होंने ___ अगर आलस्य आपके पास है, तो आलस्य ही मार्ग बन सकता सब तप छोड़ा, उसी दिन उन्हें परम ज्ञान की उपलब्धि हुई। है। तब निष्क्रियता आपकी साधना होगी। तब आप आलस्य को ही बुद्ध सात्विक व्यक्ति हैं, राजस नहीं हैं। तो क्रिया, तप, साधना बना लें। तब आप सिर्फ आलस्य में पड़े ही मत रहें, उपवास उनके लिए सिवाय कष्ट के और कुछ भी न लाए। शरीर आलस्य बाहर घेरे रहे, और भीतर आप आलस्य के प्रति जागे रहें। दीन हुआ, क्षीण हुआ, आत्मा सबल न हुई। स्नान करते वक्त आलस्य को देखें और साक्षी हो जाएं। निरंजना नदी से निकलते थे, तो इतनी भी ताकत नहीं थी उस दिन __ पड़े-पड़े भी, बिस्तर पर पड़े-पड़े भी मोक्ष तक पहुंचा जा सकता कि बाहर निकल आएं। | है। लेकिन तब आलस्य को साधना बना लेना जरूरी है। और तब तब उन्हें खयाल आया कि मैं यह तप कर-करके सिर्फ दुर्बल | आलस्य के प्रति सजग हो जाना जरूरी है। भीतर साक्षी जग जाना और दीन हो रहा हूं। और इस साधारण-सी नदी को पार नहीं कर | चाहिए। पा रहा हूं; बाहर निकलना मुश्किल मालूम पड़ रहा है। एक वृक्ष साक्षी के लिए न तो कर्म की जरूरत है, न अकर्म की; जो भी की जड़ को पकड़कर लटके हुए हैं। इतनी ताकत नहीं शरीर में कि हो रहा है, उसके प्रति साक्षी होने की जरूरत है, विटनेसिंग की किनारे के ऊपर आ जाएं। तो बद्ध को उस क्षण में लगा कि यह जरूरत है। तो आप अगर आलसी हैं, तो आलस्य के प्रति सजग भवसागर है इतना बड़ा, इसको मैं कैसे पार कर पाऊंगा, यह | हों, उसे देखें। निरंजना जैसी छोटी नदी पार नहीं होती! __ और ऐसा जरूरी नहीं है कि आप अगर तमस से आज भरे हैं, उसी दिन उनके लिए तप व्यर्थ हो गया। उस रात वे बिलकुल सब | तो कल भी तमस से ही भरे रहेंगे। ऐसा कुछ जरूरी नहीं है। क्योंकि छोड़कर सोए। राज्य तो पहले छोड़ चुके थे, यह साधना भी छोड़ | | प्रतिपल चीजें बदल रही हैं। और प्रतिपल आपके भीतर के तमस, दी। उस रात उनके मन में कोई भी उपद्रव नहीं था। न राज्य था, न | | रजस और सत्व की मात्रा बदल रही है। मोक्ष था; न धन की खोज थी, न धर्म की खोज थी। उस दिन कोई | बचपन में जो व्यक्ति तामसिक हो, जरूर नहीं कि जवानी में भी खोज ही न थी। वे बिना खोज के रात सो गए। सुबह जब उनकी तामसिक रह जाए। हो सकता है, राजसी हो जाए; क्योंकि सब आंख खुली, उन्होंने पाया, जो भी मिलना था, | हार्मोन बदल रहे हैं। शरीर एक सतत प्रवाह है। शरीर के सारे जो सत्व-प्रधान है, उसके लिए क्रिया बहुत लाभ की नहीं है। | केमिकल्स बदल रहे हैं; रासायनिक व्यवस्था बदल रही है। जवान उसे कोई जरूरत नहीं है। वह सिर्फ मौन हो जाए; वह सिर्फ शांत होते-होते दूसरी स्थिति हो सकती है। बूढ़ा होते-होते फिर तीसरी हो जाए। वह सब भांति भीतर सब तरह के कोलाहल को हटा दे। स्थिति हो जाएगी। यह प्रतिपल बदलाहट हो रही है। उस शांत क्षण में उसे वह सब मिल जाएगा, जो कि राजस व्यक्ति । आज आप आलसी हैं, तो जरूरी नहीं कि कल भी आलसी अत्यंत कठोर तपश्चर्या करके पाता है। होंगे। और अगर आप आलस्य के प्रति सजग हो गए, तो निश्चित लेकिन अगर राजस व्यक्ति समझे कि मैं सिर्फ बैठ जाऊं, कुछ | | आप में बदलाहट आएगी। वह साक्षी एक नया तत्व है, जो आपके न करूं और सब हो जाएगा जैसा बुद्ध को हुआ, तो वह गलती में प्रत्येक रासायनिक ढंग को भीतर से बदल देगा। आप दूसरे आदमी है। उसे तो गुजरना ही पड़ेगा। | होने लगेंगे। आप धीरे-धीरे पाएंगे कि आलस्य की उतनी जकड़
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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