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गीता दर्शन भाग-7
पीकर बेहोश न हो जाते, तब तक वह उन्हें स्वीकार नहीं करता था। क्योंकि उस बेहोशी में ही उनका सच्चा रूप प्रकट होता ।
जब आप शराब पीकर पूरी तरह बेहोश हो जाते हैं, तब आपका जो निम्नतम आपने छिपा रखा है, वह प्रकट होगा। और गुरजिएफ कहता है कि जब तक मैं तुम्हारे निम्नतम को न देख लूं, तब तक मैं कोई काम शुरू न करूंगा। क्योंकि वहीं से काम शुरू होना है। तुम्हारा श्रेष्ठ तो कल्पना है। तुम्हारा निकृष्ट तुम्हारा यथार्थ है ।
आपका मन भी धोखा देगा। जो आप नहीं हैं, आपका मन सदा कहेगा, आप यही हैं। इस धोखे से सावधान होना जरूरी है।
क्या करें? सबसे पहले तो इस बात की खोज करें कि तामसी तो नहीं हैं। सब तरह से पहले तो सिद्ध करने की कोशिश करें कि तामसी हैं अपने को। सब उपाय खोजें, सब तर्क खोजें, जिनसे सिद्ध होता हो कि मैं तामसी हूं। अगर कोई उपाय ही न मिले सिद्ध करने का, तो खयाल छोड़ें। फिर अपने को राजसी सिद्ध करने की कोशिश करें। जब राजसी सिद्ध करने का भी कोई उपाय न मालूम पड़े, कोई तर्क न मिले, तो ही समझें कि आप सात्विक हैं। अन्यथा सात्विक मत समझें ।
निकृष्ट से शुरू करें। और पहले निकृष्ट को ही सोचें कि मैं हूँ। और अगर मिल जाए सूत्र कि यही मैं हूं, तो आप सौभाग्यशाली हैं, क्योंकि फिर काम शुरू हो सकता है।
गुरजिएफ कहता था, तुम्हारी जो सबसे बड़ी कमजोरी है, वह तुम्हें पहले पकड़ में आ जानी चाहिए। क्योंकि कमजोरी ही तुम्हारा छिद्र है। उसी छिद्र से तुम्हारी जीवन ऊर्जा व्यर्थ हो रही है।
एक घड़े को हम पानी भरने के लिए कुएं में डालते हैं। पूरा घड़ा बेमानी है एक छोटे-से छेद के कारण। वह एक छोटा-सा छेद ही रे हुए घड़े को ऊपर तक आते-आते खाली कर देगा।
पहले देख लेना जरूरी है कि छेद कहां है। छेद को रोक दें, ही घड़ा सार्थक है। तुम्हारी मौलिक कमजोरी से मुक्ति हो जाए, तो ही तुम कुछ भर पाओगे; परमात्मा तुम में भर पाएगा । अन्यथा तुम्हारे छिद्र सब बहा देंगे।
पहला, अपने प्रति सच्चा होना जरूरी है कि मैं कहां हूं। इसमें अति ईमान की जरूरत है; प्रामाणिक होने की जरूरत है। क्योंकि किसी और को धोखा नहीं दे रहे हैं। कोई और धोखे में आने वाला नहीं है। आप ही धोखे में पड़ेंगे और भटक जाएंगे।
और ध्यान रखें कि तमस में होना कुछ बुरा नहीं है। क्योंकि तमस भी लोग मुक्त हुए हैं। कोई सात्विक होना ही श्रेष्ठ नहीं है। क्योंकि
सत्व में भी पड़े हुए सैकड़ों लोग संसार में भटक रहे हैं।
कहां हैं, यह बड़ा महत्वपूर्ण नहीं है। लेकिन शास्त्रों ने और न जानने वाले शास्त्रों की टीका करने वाले लोगों ने लोगों को ऐसा समझा दिया है कि सात्विक 'होना अपने आप में कुछ खूबी की बात है और तामसिक होना बुरी बात है।
तो तामसिक तो हम गाली की तरह उपयोग करते हैं। किसी की निंदा करनी हो, तो हम कहते हैं, तामसी । तो जब मैंने कल आपको | कहा कि लाओत्से तामसिक था, तो आपको भीतर बड़ी बेचैनी हुई होगी। क्योंकि आप मान ही नहीं सकते कि कोई संत तमस के साथ संत हो गया हो ! कोई ऐसा कहेगा भी नहीं। लाओत्से के मानने वाले मुझसे नाराज हो जाएंगे। मैंने कहा कि जीसस रजोगुणी हैं। | इससे ईसाई को कष्ट हो सकता है।
लेकिन मैं कोई तुलना नहीं कर रहा हूं। और न मैं यह कह रहा हूं कि इनमें कोई जीसस, लाओत्से या कृष्ण कोई छोटे-बड़े हैं। मैं | सिर्फ यथार्थ तथ्य की बात कर रहा हूं। और अगर तथ्य की ही बात करनी हो, तो जो तमस से मुक्त हुआ है, वही अदभुत है। जो सत्व से मुक्त हुआ है, उसमें कोई बहुत विशेष अदभुतता नहीं है। गहन अंधकार से जो प्रकाश में सीधी छलांग लगा गया है, उसका मूल्य बहुत है।
तो आप भयभीत न हों, और न किसी तरह की निंदा लें। सिर्फ तथ्यों पर ध्यान रखें। हम मूल्यांकन करने लगते हैं, उससे कठिनाई शुरू हो जाती है।
अगर चित्त सात्विक है, तो साधना अलग होगी। अगर चित्त तामसिक है, तो साधना अलग होगी । अगर चित्त राजस है, तो साधना अलग होगी। इसे थोड़ा खयाल में ले लें। क्या फर्क पड़ेगा ?
अगर चित्त तामसिक है, तो तपश्चर्या आपके लिए नहीं है । तपश्चर्या फिर भ्रांति होगी। सारी दुनिया प्रशंसा कर रही हो तप की, | लेकिन तप आपके लिए नहीं है। और अगर आप तपश्चर्या में पड़े, तो आप भटक जाएंगे। आप सिर्फ कष्ट पाएंगे। आप सिर्फ परेशान होंगे; अपने को दुख देंगे। और आप बड़ी मुश्किल में पड़ेंगे कि मुझे वह घटना क्यों नहीं घट रही है, जो तपश्चर्या करने वालों को घट रही है ! क्योंकि तपश्चर्या करने वाला कहता है, उसे महाआनंद मिला। और आपको नहीं मिल रहा है। आपको नहीं मिलेगा । क्योंकि आलस्य से भरा हुआ अगर व्यक्तित्व हो, तो तपश्चर्या इतनी विपरीत है कि उससे सिर्फ कष्ट मिलेगा।
सिर्फ राजस व्यक्ति को तपश्चर्या योग्य होगी। उसे तपश्चर्या ही
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