SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * रूपांतरण का सूत्रः साक्षी-भाव * मेरी दृष्टि ठीक से खयाल में आ जाए, तो साफ है। विधायक | से चलना शुरू होगा। का उपयोग कर लें, तो किसी भी गुण से बाहर हो जाएंगे। और तो आप क्या हैं, इसका निष्पक्ष, स्पष्ट, पक्षपातरहित, उपयोग किया, तो किसी भी गण से बंध जाएंगे। अहंकारमक्त विश्लेषण चाहिए। आप गरुओं के पास भी जाते हैं, और दोनों हर गुण के साथ हैं। लेकिन उनसे भी आप निष्पक्ष वक्तव्य लेने नहीं जाते। उनसे भी दुनिया में बहुत कम पंडित परम स्थिति को उपलब्ध होते हैं; | आप गवाही लेने जाते हैं। अगर गुरु आपसे कहे कि तुम तामसी शायद नहीं ही होते। सत्वगुण बांध लेता है। ज्ञानी होने का दंभ बांध | हो, तो आप दुखी लौटेंगे। इस गुरु का आप पीछा ही छोड़ देंगे। लेता है। वे सत्वगुण के नकारात्मक रूप का उपयोग कर रहे हैं। आप जाकर कहेंगे, यह गुरु गलत है। कर्मठ व्यक्ति अक्सर उपद्रव में उलझ जाते हैं। और निष्क्रिय, आलसी | इधर में देखता है, एक युवती ने आज ही मुझे आकर कहा। व्यक्ति तो कुछ करता ही नहीं है; आलस्य में ही खो जाता है। जिसमें किसी तरह की संभावना नहीं है उस बात की। वह एक बड़े आप कहीं भी हों, निराशा का कोई कारण नहीं है। अगर आप | गुरु के पास गई थी और गुरु ने कहा कि वह युवती पश्चिम से जहां हैं, उस जगह से विधायक सूत्र को खोज लें। आई है—उसे कहा कि शीघ्र ही तू स्वयं भी एक बहुत बड़ी गुरु हो फिर बाहर होने का कुल मतलब इतना है कि आपका तादात्म्य जाने वाली है। पश्चिम में जाकर तेरे जीवन से अनेक लोगों को लाभ व्यक्तित्व से टूट जाए। मैं यह शरीर हूं, यह भाव टूट जाए। मैं यह | होगा। युवती बड़ी प्रसन्न लौटी। अहंकार को बड़ी गहरी तृप्ति मिली। मन हूं, यह भाव टूट जाए। क्योंकि शरीर और मन तक ही गुणों का | उस युवती में ऐसी कोई संभावना नहीं है। इस जन्म में तो कोई प्रभाव है। शरीर और मन के पीछे जो छिपा है, उस पर गुणों की | संभावना नहीं है। और इस कहने की वजह से अगर कोई छिपी कोई सत्ता नहीं है। वह गुणातीत अभी भी है। इस क्षण भी आप | संभावना कभी प्रकट भी हो सकती थी, तो वह भी समाप्त हो गुणातीत हैं, पूर्ण निष्पाप। लेकिन जिस शरीर और मन को आपने | जाएगी। लेकिन वह खुश होकर लौटी। और उस व्यक्ति को गुरु पकड़ा है, वह गुणों से भरा है। मानकर लौटी। ऐसा समझें कि कोई आदमी तो बिलकुल पवित्र है, लेकिन गंदे ___ अब यह सारा जाल है। जाल ऐसा है कि गुरु भी शिष्य को तभी वस्त्र पहने हुए है। उससे जो दुर्गंध आ रही है, वह उसकी नहीं है, | फांस पाता है, जब वह उसके अहंकार को प्रसन्न करे। क्योंकि आप उसके वस्त्रों की है। चोट नहीं चाहते; आप प्रशस्ति लेने जाते हैं। तो जिनको कुछ भी आपका जो व्यक्तित्व है, वही गुणों के प्रभाव में है। और तीन नहीं है, वे भी प्रशस्ति पाकर प्रसन्न होते हैं। तरह के व्यक्तित्व हैं मौलिक, मूल रूप से, जिनको कृष्ण वर्णन कर ___ अब वह पागल होकर लौटी। जिस व्यक्ति ने उसको कहा है, रहे हैं, तामसिक, राजसिक, सात्विक। पूरब का मनोविज्ञान बड़ा | वह भी गुरु के योग्य नहीं है। क्योंकि यह बात झूठ है और गलत . गहरा है और उसने व्यक्तित्व की आखिरी जड़ पकड़ ली है। ये तीन | है। और अगर इस युवती को वहम सवार हो जाए गुरु होने का, तो तरह के व्यक्ति हैं। फिर और लोग भी अगर थोड़े-बहुत भेद से हों, यह भारी नुकसान करेगी। तो वे इन तीन के ही जोड़-घटाने हैं। बाकी ये तीन मूल स्वर हैं। दुनिया में गलत गुरु जितना नुकसान करते हैं, उतने अपराधी भी आप जहां भी हों, और उचित होगा कि ईमानदारी से पहचान लें नुकसान नहीं करते। क्योंकि अपराधी क्या छीन सकता है आपसे? कि कहां हैं। क्योंकि मन बड़े धोखे देता है। और उसका गहरे से | धन छीन लेगा; प्राण छीन सकता है ज्यादा से ज्यादा! लेकिन प्राण गहरा धोखा यह है कि वह आपको यह बताए, जो आप नहीं हैं। | मिटते नहीं, और धन का कोई मूल्य नहीं है। लेकिन गलत गुरु आप क्योंकि फिर आप कुछ भी करें, उसके परिणाम नहीं होंगे। | से उस अवसर को छीन लेगा, जो सब कुछ है। और उसे पता भी तामसी से तामसी व्यक्ति भी सोचेगा कि मैं सात्विक हूं, तब | नहीं है कि वह आपसे कुछ छीन रहा है। और छीनने की सबसे ज्यादा यात्रा मश्किल है। क्योंकि सात्विक वह है नहीं और सात्विकता की सविधापूर्ण व्यवस्था यह है कि आपके अहंकार को कोई तप्त करे। जो उसकी धारणा है, वह उसे ऐसी साधना पद्धतियां पकड़ा देगी, | | गुरजिएफ जैसे गुरु के पास अगर जाएंगे, तो वह जो आपके जो उसके काम की नहीं हैं। उसे जानना जरूरी है कि वह तामसिक || | भीतर साफ-साफ है, उसकी ही बात करेगा। गुरजिएफ अपने है, क्योंकि उसकी यात्रा वहीं से शुरू होगी जहां वह खड़ा है। वहीं शिष्यों को पहले तो शराब पिलाता था। और जब तक वह शराब 85
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy