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________________ गीता दर्शन भाग-7 कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्त्विकं निर्मलं फलम् । रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम् ।। १६ ।। सत्त्वात्संजायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च । प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ।। १७ ।। ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः । जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ।। १८ ।। सात्विक कर्म का तो सात्विक अर्थात सुख, ज्ञान और वैराग्यादि निर्मल फल कहा है। और राजस कर्म का फल दुख, एवं तामस कर्म का फल अज्ञान कहा है। तथा सत्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है और रजोगुण से निःसंदेह लोभ उत्पन्न होता है, तथा तमोगुण से प्रमाद और मोह उत्पन्न होते हैं और अज्ञान भी होता है। इसलिए सत्वगुण में स्थित हुए पुरुष स्वर्गादि उच्च लोकों को जाते हैं। और रजोगुण : स्थित राजस पुरुष मध्य में अर्थात मनुष्य लोकों में ही रहते हैं, एवं तमोगुण के कार्यरूप निद्रा, प्रमाद और आलस्यादि में स्थित हुए तामस पुरुष अधोगति को अर्थात नीच योनियों को प्राप्त होते हैं। पहले कुछ प्रश्न | पहला प्रश्न: आपने कल बताया कि लाओत्से तमस से, जीसस रजस से तथा महावीर सत्व से सीधे गुणातीत अवस्था में छलांग लगा गए। सत्व से गुणातीत में जाना समझ में आता है, लेकिन तमस और रजस से गुणातीत अवस्था में जाना किस प्रकार संभव है, यह समझ में नहीं आता ! है । बीमारियां अलग-अलग हैं, पर तीनों बीमारियां हैं और तीनों बांधती हैं। सत्वगुण से समझ में आता है, क्योंकि हम सोचते हैं, सत्वगुण बांधता नहीं। सत्वगुण भी बांधता है। और अगर बंधने की वृत्ति हो, | तो सत्वगुण से बाहर जाना उतना ही कठिन है, जितना तमोगुण से बाहर जाना। और कभी-कभी तो ऐसा हो सकता है कि ज्यादा | कठिन हो । क्योंकि सत्वगुण में एक सुख है, जो तमोगुण में नहीं है। हर गुण के फायदे हैं और हानियां हैं। तमोगुण की हानि यह है कि आप आलस्य से भरे हैं; बाहर जाने की वृत्ति पैदा नहीं होती। | लेकिन तमोगुण का एक फायदा है कि वहां सिवाय दुख और अंधकार के कुछ भी नहीं है। इसलिए बाहर जाने की प्रेरणा पैदा हो सकती है। गु णातीत अवस्था का अर्थ है, गुणों के बाहर हो जाना । जैसे स्वस्थ होने का अर्थ है, बीमारी के बाहर हो जाना। फिर बीमारी कौन-सी थी, यह सवाल नहीं है। कोई व्यक्ति टी. बी. से बीमार हो, तो टी.बी. के बाहर होकर स्वस्थ हो जाएगा। कोई व्यक्ति मलेरिया से बीमार हो, तो मलेरिया के बाहर होकर स्वस्थ हो जाएगा। सभी बीमारियां बाधा डालती हैं। स्वस्थ होने में। सभी बीमारियों के बाहर जाने में श्रम करना होगा। सत्व भी बीमारी है। रजोगुण भी बीमारी है । तमोगुण भी बीमारी | 84 रजोगुण का एक लाभ है कि बड़ी ऊर्जा है और सक्रिय होने की वृत्ति है। इसलिए बाहर जाने में इस वृत्ति का उपयोग किया जा सकता है। लेकिन एक नुकसान है, कि रजोगुणी व्यक्ति इतना व्यस्त रहता है कर्मों में कि उसे स्वयं का बोध ही नहीं आता। वह कर्मों में खो गया होता है। उसे स्व की कोई प्रतीति नहीं रहती। वह | करीब-करीब कर्मों में बेहोश होता है। सत्वगुण का लाभ है कि वह हलके से हलका गुण है। उसका वजन न के बराबर है। कोई उसे हटाना चाहे, तो जरा भी बाधा नहीं | है । सत्वगुण रोकेगा नहीं; हलका है; बिलकुल वजनशून्य है; भारहीन है। लेकिन खतरा है। और खतरा यह है कि सत्वगुण सुख | से भरा है। सुख को कोई भी छोड़ना नहीं चाहता है। अगर मेरी बात समझ में आ जाए, तो तीनों गुणों के लाभ हैं और तीनों की हानियां हैं। तो ऐसा नहीं है कि कोई एक गुण ज्यादा लाभ का है गुणातीत जाने में या कोई गुण ज्यादा बाधक है। हर गुण के दोनों पहलू हैं, निगेटिव और पाजिटिव । उसका विधायक रूप भी है, उसका नकारात्मक रूप भी है। लाओत्से जैसा व्यक्ति तामसिक गुण के विधायक रूप का उपयोग करके पार हो गया। बट्रेंड रसेल जैसा व्यक्ति सत्वगुण के नकारात्मक रूप से उलझकर पार होने से रुक गया। जीसस जैसा रजोगुणी व्यक्ति अपने कर्म को सेवा बनाकर परम अनुभव को उपलब्ध हुआ, गुणातीत हो गया। लेकिन वही गुण नेपोलियन में भी है, वही गुण लेनिन में भी है; पर वे उसके नकारात्मक रूप का उपयोग कर रहे हैं और एक राजनीतिक उपद्रव में खो जाते हैं। |
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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