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* गीता दर्शन भाग-7*
भी निद्रा बढ़े, जहां भी जागरण की कोई जरूरत न हो, वहां उस सत्व की स्थिति में जो मरता है, वह परम सुख की अवस्था में तरफ जाने का भाव प्रवाहित होता है।
| प्रवेश कर जाता है। स्वर्ग परम सुख की अवस्था है। लेकिन ध्यान जब यह जीवात्मा सत्वगुण की वृद्धि में मृत्यु को प्राप्त होता है, रखें, अंतिम अवस्था नहीं है। सुख की ही अवस्था है; आनंद की तब तो उत्तम कर्म करने वालों के मलरहित अर्थात दिव्य स्वर्गादि | | अवस्था नहीं है। और आनंद और सुख में इतना ही फर्क है कि सुख लोकों को प्राप्त होता है।
की अवस्था शाश्वत नहीं है, समाप्त होगी। और आनंद की और जब जीवनभर के अंत में जीवन का सारा निचोड़ और सार अवस्था शाश्वत है, समाप्त नहीं होगी। है; मृत्यु के क्षण में आपने जीवन में जो भी कमाया है, वह सारभूत सुख की अवस्था के बाद फिर दुख आएगा। जैसे दिन के बाद सब आणविक होकर आपके साथ खड़ा हो जाता है।
रात आती है, ऐसा सुख के बाद फिर दुख आएगा। चाहे सुख अगर कोई व्यक्ति जीवनभर तमस से भरा रहा है. तो मरने के कितना ही लंबा हो, लेकिन दुख से छुटकारा नहीं है। दुख पीछे पहले बेहोश हो जाता है। अधिक लोग मरने के पहले बेहोश हो खड़ा हुआ प्रतीक्षा कर रहा है। सुख एक कमाई है, जो चुक जाएगी। जाते हैं। मृत्यु होश में नहीं घटती। जो जीए ही नहीं होश में, वे मर | इसलिए स्वर्ग में गया हुआ वापस लौट आएगा; कितने ही समय कैसे सकते हैं। सिर्फ सत्व-प्रधान व्यक्ति ही मरते वक्त होश से के बाद, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वापस लौटना सुनिश्चित है। भरे होते हैं। वह लक्षण है कि उसने जीवन में जागा हुआ होने का, || | सुख अंतिम नहीं है। उसके साथ दुख जुड़ा है। आनंद अंतिम अप्रमाद में रहने का प्रयास किया, तो मृत्यु जागते घटती है। वह है। उसके साथ फिर कुछ भी नहीं जुड़ा है। जो आनंद में प्रविष्ट हो मृत्यु को देख पाता है। और जो मृत्यु को देख पाता है, वह अमृत | | गया, उसका पुनरागमन नहीं है; वह वापस नहीं लौटता। ' हो जाता है
सत्व की स्थिति में मरा हुआ व्यक्ति स्वर्ग में प्रवेश पाता है। रजोगुण से भरा हुआ व्यक्ति मृत्यु के क्षण में भी जीवन की ही जिसने जीवनभर साधुता साधी हो, सत्व को जगाया हो, होश को सोचता रहता है। वह तब भी सोचता रहता है, कितने काम अधूरे निर्मित किया हो, वह स्वर्ग में प्रवेश करता है। रह गए। थोड़ा मौका मिल जाए, तो ये भी पूरे कर दूं। वह कभी यह | रजोगुण के बढ़ने पर मृत्यु को प्राप्त होकर कर्मों की आसक्ति नहीं सोचता कि सब भी पूरे करके क्या होगा? और काम तो अधूरे वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है। रह ही जाएंगे। क्योंकि वासनाओं का कोई अंत नहीं है। कितना ही __ और अगर रजोगुण पीछे पड़ा रहा हो, मरते क्षण में भी योजनाएं करो, कभी भी करो, आधे में ही मरना पड़ेगा।
बनती रही हों, फाइव इयर प्लान तैयार होते रहे हों, तो ऐसा आदमी कोई भी आदमी पूर्ण विराम पाकर नहीं मर सकता, कि कहे कि मरकर कर्मों की आसक्ति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है। सब काम पूरे हो गए, सब वासनाएं तृप्त हो गईं, जो करना था सब कर्मों की आसक्ति वाले मनुष्य हैं। कोई धन के लिए दौड़ रहा कर लिया, अब जीने का कोई कारण नहीं। नहीं, कोई आदमी ऐसा है, कोई पद के लिए दौड़ रहा है, कोई प्रतिष्ठा के लिए दौड़ रहा नहीं मर पाता। कछ न कछ बाकी रहेगा ही। और जैसे-जैसे मौत है। कछ करना है उन्हें। कछ करके दिखाना है. चाहे कोई देखने को करीब आती है, वैसे-वैसे लगता है कि बहुत बाकी रह गया। समय | उत्सुक हो या न हो। चाहे कुछ करने से फल आता हो, न आता कम और करने को ज्यादा; और करने की क्षमता रोज क्षीण होती | हो। सिकंदर और नेपोलियन सब कर-करके मर जाते हैं, कुछ चली जाती है।
परिणाम आता नहीं। लेकिन कुछ करके दिखाना है! तमोगुण से भरा हुआ व्यक्ति मरते वक्त बेहोश हो जाता है। | यह जो करने की वृत्ति पैदा होती है, इसके लक्षण मां के पेट में रजोगुण से भरा हुआ व्यक्ति मरते वक्त भी मन में क्रियाएं जारी बच्चा होता है, तब भी दिखाई पड़ने शुरू हो जाते हैं। वह जो रखता है। सत्वगुण से भरा हुआ व्यक्ति मरते वक्त शांत | रजोगुणी बच्चा है, वह मां के पेट में भी हलन-चलन ज्यादा मचाता जागरूकता में मरता है, होशपूर्वक मरता है। इन तीनों के परिणाम है। इसलिए मां जान जाती है कि पेट में लड़की है या लड़का। अगर होंगे आने वाले जीवन पर।
| लड़का है, तो थोड़ा उपद्रव ज्यादा करता है। क्योंकि पुरुष ज्यादा जो सत्वगुण की स्थिति में मृत्यु को उपलब्ध होगा, कृष्ण कहते | | रजोगुण-प्रधान है। स्त्री ज्यादा तमोगुण-प्रधान है। इसलिए लड़की हैं, वह दिव्य स्वर्गादिक लोकों में प्रवेश कर जाता है। होती है, तो वह शांत पड़ी रहती है। लड़का होता है, तो वहां थोड़ी
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