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* संबोधि और त्रिगुणात्मक अभिव्यक्ति **
है, अब मैं नहीं हूं, यह विराट है। मेरे किए कुछ न होगा, क्योंकि | | टी.वी. सेट का भी इंतजाम कर दिया है। ऐश ट्रे तो बहुत पहले से मैं हूं ही नहीं। अगर हूं, तो मेरे किए कुछ हो सकता है। मैं हूं ही | रखी है। शराब भी उपलब्ध है। नाच-गाने का भी पूरा इंतजाम है। नहीं। विराट का कर्म है, उसमें मेरी कोई सत्ता नहीं है। भाग्य का | तोरा पढ़ना हो, तो पढ़ो। न पढ़ना हो, तो वह भी कोई मजबूरी नहीं मतलब है, मैं नहीं हूं, ब्रह्म है। .
है। नाच-गा सकते हो; टी.वी. देख सकते हो। हमारा मंदिर यह तो बड़े ज्ञान की बात है; समाधि में फलित होती है। लेकिन | बिलकुल आधुनिक है। यह जो आदमी भाग्य से प्रसन्न होता है, वह तामसी है। वह असल | तीसरे ने कहा, यह सब कुछ भी नहीं है। में यह कह रहा है कि जो हो रहा है, अपने किए तो कुछ हो नहीं | तब योम किप्पूर के दिन थे; यहूदियों के धार्मिक दिन थे। तभी सकता, इसलिए क्यों करो! बैठा है। और ऐसा नहीं है कि सभी यह चर्चा चल रही थी। कर्म छोड़ देगा। सिर्फ कर्तव्य-कर्म छोड़ देगा। इसे थोड़ा समझ | | तीसरे ने कहा, हमने अपने मंदिर पर एक तख्ती लगा दी है: लेना जरूरी है।
| क्लोज्ड बिकाज आफ दि होली डेज-पवित्र दिनों के कारण बंद। कृष्ण कहते हैं, कर्तव्य-कर्म छोड़ देगा।
क्योंकि लोग मनाएं पवित्र दिन कि मंदिर आएं! लोग मजा करें कि घर में आग लग जाए, तो नहीं बैठा रहेगा कि जब भाग्य में | मंदिर आएं! वह मंदिर पवित्र दिनों के लिए बनाया हुआ है, उस है...। मां बीमार हो, तो कहेगा, सब भाग्य से होता है। पिता भूखा | पर तख्ती लगा दी। यह आखिरी वक्तव्य है, अब इससे ज्यादा मर रहा हो, तो सोचेगा, क्या किया जा सकता है! अपने-अपने | प्रगतिशील और कुछ हो भी नहीं सकता। कर्मों का फल है, सबको भोगना पड़ता है। लेकिन घर में आग लग __ आदमी बहुत बेईमान है। वह सभी अच्छे शब्दों के पीछे अपनी जाए, तो यह सबसे पहले भागकर खड़ा बाहर हो जाएगा। तब यह | गलतियों के सहारे खोज लेता है। प्रगतिशील के पीछे वह सब तरह नहीं सोचेगा कि बचना होगा, तो बचेंगे; जलना होगा, तो जलेंगे। | की नासमझियां खोज लेता है। भाग्य के पीछे वह सब तरह के जाना कहां! आना कहां!
आलस्य को छिपा लेता है। परमात्मा के नाम के पीछे सब तरह के कर्तव्य जहां है, वहां यह तमस वृत्ति से भरा हुआ व्यक्ति कर्तव्य | तमस को लेकर बैठ जाता है। को काटेगा; और जहां वासना है, वहां नहीं काटेगा। और यह सब | कृष्ण कहते हैं, जब तमस बढ़ता है, उसका घनीभूत रूप होता तरकीबें खोजेगा।
| है मन में, तो कर्तव्य-कर्मों में अप्रवृत्ति और प्रमाद होता है। निद्रादि __ मैं एक घटना पढ़ रहा था। तीन यहूदी चर्चा कर रहे थे। और अंतःकरण की मोहिनी वृत्तियां, ये सभी उत्पन्न होती हैं। चर्चा थी कि किसका मंदिर प्रोग्रेसिव है, किसका मंदिर प्रगतिशील और ज्यादा नींद आती मालूम पड़ती है। नींद का मतलब इतना है, किसका सिनागाग सबसे ज्यादा आधुनिक है।
| ही है कि वह ज्यादा सोया रहता है। हर चीज में जागा हुआ नहीं धार्मिक लोगों में ऐसी चर्चा चलती है। और धार्मिक लोग निरंतर | | रहता; सोया-सोया रहता है। गीता भी पढ़ेगा, तो ऐसे पढ़ रहा है, सोचते हैं कि धर्म को आधुनिक होना चाहिए, आज के अनुकूल | | जैसे नींद में पढ़ रहा हो। सुन भी रहा है, तो ऐसे सुन रहा है, जैसे होना चाहिए। बड़े व्याख्यान, बड़ी किताबें लिखी जाती हैं कि धर्म सोया हो और सन रहा है।। को नया करो। इसकी भी फिक्र नहीं होती कि धर्म नया-पुराना कैसे धार्मिक मंदिरों में सभाओं में जाकर देखें; लोग सोए हुए हैं। कुछ हो सकता है।
डाक्टर तो कहते हैं कि नींद न आती हो, तो धार्मिक सभा में जाकर पहले यहूदी ने कहा कि मेरे मंदिर से ज्यादा प्रगतिशील किसी | बैठे। वहां निश्चित आ जाती है। जिस पर ट्रैक्वेलाइजर भी सफल का भी मंदिर नहीं है। पूछा दूसरों ने कि क्या कारण है! तो उसने | | नहीं होता, उसको भी आ जाती है। राम की कथा सुनो, एकदम नींद कहा कि हमने जहां तोरा रखा है, जहां हमारी धर्म-पुस्तक रखी है, | | आने लगती है! उसी के बगल में ऐश ट्रे भी रख दी है कि कोई सिगरेट भी पीना | एक आलस्य है, जो मन को पकड़े हुए है सब तरफ। निद्रा बढ़ती चाहे, तो मंदिर में पी सकता है। राख झाड़ सकता है और किताब है; मोहिनी वृत्तियां पैदा होती हैं। भी पढ़ सकता है। यह प्रगतिशीलता है हमारी।
मोहिनी वृत्ति का अर्थ है, उस चीज में ज्यादा मन लगता है, जहां दूसरे ने कहा, यह कुछ भी नहीं है, क्योंकि हमने अपने मंदिर में बेहोशी बढ़े। शराब हो, नाच हो, संगीत हो, कामवासना हो, जहां
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