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* गीता दर्शन भाग-7
अंधकार है। जब मन दया और करुणा से भरा हो, तब आंख बंद | भीतर प्रकाश भरता है, उसको लगता है कि जमीन छूट गई, जैसे करके देखें। तब आप पाएंगे, भीतर थोड़ी रोशनी है। और जब मन वह उड़ जाएगा। उड़ने का भाव पैदा हो जाता है। वह हलकेपन के ध्यान से भरा हो, तब भीतर देखें। तो पाएंगे, विराट प्रकाश है। कारण है।
कबीर ने कहा है, हजार-हजार सूरज जैसे एक साथ जल गए। इंद्रियां और अंतःकरण दोनों अप्रकाश से भरते हैं तमोगुण के कबीर ने कहा है कि अब तक जिसे हमने प्रकाश समझा था, अब कारण। और कर्तव्य-कर्मों में अप्रवृत्ति हो जाती है। वह अंधेरा मालूम होता है, भीतर का प्रकाश जब से देखा। कर्तव्य-कर्म का अर्थ है, जिसको करना जरूरी था, अनेक
यह प्रकाश हमें नहीं मिलता। क्योंकि इस प्रकाश को देखने के | कारणों से। मां बीमार है, उसके लिए दवा ले आना जरूरी था। लिए सत्व की आंख चाहिए।
जिसने जीवन दिया है, उसके जीवन की थोड़ी चिंता और फिक्र कृष्ण कह रहे हैं, तमोगुण के बढ़ने पर अंतःकरण और इंद्रियों में एकदम स्वाभाविक है। लेकिन तमस से भरा हुआ व्यक्ति उसमें भी अप्रकाश...।
आलस्य करेगा। वह सोचेगा; हजार तरकीबें मन में सोचेगा। न अंतःकरण में अंधेरा और इंद्रियों में भी अंधेरे का एक बोध होगा। करने के उपाय सोचेगा। जब तम बढ़ेगा, तो आप अपने शरीर में भी पाएंगे कि एक वह यह भी सोच सकता है कि यह बीमारी कोई खतरनाक थोड़े बोझिलता है। आप पाएंगे कि जैसे शरीर वजनी है। जब आप सत्व | ही है। वह यह भी सोच सकता है कि डाक्टर कहां ठीक कर पाते वृत्ति से भरे होंगे, तो पाएंगे, शरीर हल्का है, आलोकित है। आप हैं! सब प्रभु की कृपा से ठीक होता है। वह यह भी सोचेगा कि उछलते हुए चल रहे हैं। जैसे जमीन की कशिश कम काम करती | भाग्य में ठीक होना होगा, तो हो ही जाएगी। नहीं होना होगा, तो है। जैसे आप पर उसका कोई प्रभाव नहीं है।
| कुछ किया नहीं जा सकता। वह सब बातें सोचेगा। और योगियों को निरंतर अनुभव हुए हैं; और जो भी लोग ध्यान ___ अक्सर तामसी वृत्ति के लोग भाग्य की बातें सोचते हैं, भगवान में बैठते हैं, उनको भी अनुभव होते हैं। ध्यान करते-करते अचानक | की बातें सोचते हैं; सिर्फ अपने को बचाने के लिए। यह भगवान
गता है कि जमीन से उठ गए। जरूरी नहीं कि आप उठ गए और भाग्य कोई उनके जीवन की क्रांति नहीं है। यह सिर्फ पलायन हों। आंख खोलकर पाते हैं कि जमीन पर बैठे हुए हैं। लेकिन आंख और बचाव है। बंद करके लगता है, जमीन से उठ गए।
मेरे पास लोग आते हैं, वे मुझसे एक सवाल करीब-करीब वह अनुभव वास्तविक है। वास्तविक इस अर्थ में नहीं है कि लाखों लोग पूछते हैं। और वह सवाल है कि पुरुषार्थ बड़ा या आप जमीन से उठ गए। वास्तविक इस अर्थ में है कि भीतर आप भाग्य? और मैंने यह अनुभव किया है कि अगर उनको समझाओ इतने हलके हो जाते हैं कि ऐसा प्रतीत होने लगता है कि जमीन से कि पुरुषार्थ बड़ा, तो वे प्रसन्न नहीं होते। अगर उनको समझाओ हट गए होंगे। और कभी-कभी यह घटना इतनी गहरी घटती है कि | | कि भाग्य बड़ा, तो बड़े प्रसन्न लौटते हैं। वस्तुतः शरीर जमीन से ऊपर उठ जाता है।
__ मैंने दोनों बातें करके देख ली हैं। और कई बार एक ही आदमी योरोप में एक महिला का बहुत अध्ययन चल रहा है, जो चार | पर भी दोनों बातें करके देखी ली हैं। दो-तीन महीने बाद वह फिर फीट जमीन से ऊपर अपनी ध्यान की अवस्था में उठ जाती है। जब | आ जाता है! उसको मैंने समझाया था, पुरुषार्थ बड़ा। वह उसको भी वह ध्यान करती है, बस धीरे-धीरे, धीरे-धीरे शरीर उसका चार जंचा तो नहीं, मगर मुझसे वह ज्यादा वाद-विवाद भी नहीं कर फीट ऊपर चला जाता है। उस पर बड़ा मनोवैज्ञानिक, वैज्ञानिक | | सका, तो चला गया। मगर खिन्न गया। फिर दो-चार महीने बाद अध्ययन चल रहा है। क्योंकि यह प्रकृति का गहरे से गहरा नियम | भूल गया वह कि मुझसे पूछ चुका है। वह फिर आकर पूछ लेता है, जिसकी विपरीतता हो गई।
है, पुरुषार्थ बड़ा कि भाग्य? अब मैं उसको कहता हूं, भाग्य ही बड़ा जमीन खींच रही है हर चीज को। और बिना किसी साधन के | है; पुरुषार्थ में क्या रखा है! वह कहता है, बिलकुल ठीक। किसी का ऊपर उठ जाना...। लेकिन योग की पुरानी सिद्धियों में ___ इसलिए नहीं कि उसको बात समझ में आ गई। क्योंकि भाग्य उसका उल्लेख है। निरंतर योगियों को अनुभव हुआ है। और ऐसा तो उसको ही समझ में आ सकता है, जो अहंकार से मुक्त हो जाए; तो किसी को भी अनुभव होता है, जो भी थोड़ा हल्का होता है, उसके पहले समझ में नहीं आ सकता। क्योंकि भाग्य का मतलब