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* संबोधि और त्रिगुणात्मक अभिव्यक्ति र
पर निर्णय अंततः आपका है। स्वतंत्रता आपकी है। उसे कोई भी | मालूम होती है। कहीं कोई दीया नहीं दिखाई पड़ता; कहीं कोई नहीं छीन सकता। और जब आप छोड़ते हैं, तो यह आपकी | प्रकाश नहीं दिखाई पड़ता। स्वतंत्रता का कृत्य है। जब आप कहते हैं, मैं छोड़ता हूं सब चरणों __ वह अंधकार तमोगुण के कारण है। और जब तमोगुण बढ़ेगा, में, तो यह आपकी स्वतंत्रता का आखिरी कत्य है। इस कत्य के | तो अंधकार बढेगा। इसलिए आपकी जिंदगी में भी अंधकार की परिणाम में मुक्ति फलित होती है।
तारतम्यता होती है। जब कभी आप किसी सात्विक वृत्ति में डूब कृष्ण तो सिर्फ कैटेलिटिक एजेंट हैं, वे तो सिर्फ एक बहाना हैं।। | जाते हैं, तो आपकी जिंदगी में भी एक आलोक आ जाता है। कभी तो इसलिए कोई असली कृष्ण को भी खोजने की जरूरत नहीं है। | छोटे-से कृत्य में भी यह घटना घटती है। मंदिर में खड़े कृष्ण के सामने भी आप सब छोड़ दें, तो यही घटना आप राह से गुजर रहे हैं, किसी का एक्सिडेंट हो गया, कोई राह घट जाएगी। हालांकि वहां कोई भी नहीं खड़ा है।
| के नीचे गिर पड़ा। आप अपना काम छोड़कर उस आदमी को उठा यह घटना कहीं भी घट सकती है। यह घटना आपके छोड़ने पर | | लिए। आपके भीतर का तमस तो कहेगा कि किस झंझट में पड़ रहे निर्भर है। किस पर आप छोड़ते हैं, यह बात गौण है। इसलिए | | हो! पुलिस थाने जाना पड़े; अस्पताल जाना पड़े। और पता नहीं जीसस पर कोई छोड़े, कृष्ण पर कोई छोड़े, बुद्ध पर कोई छोड़े, | | कोई उपद्रव इसमें आ जाए! आपके भीतर का तमस तो कहेगा कि कोई फर्क नहीं पड़ता। किस पर छोड़ा, यह गौण है। छोड़ा, तत्क्षण | रास्ते पर अपने चलो। समझो कि तुमने देखा ही नहीं। तुम्हारा कुछ आप दूसरे हो जाते हैं। नए का जन्म हो जाता है।
लेना-देना नहीं है। समर्पण पुनर्जन्म है, शरीर में नहीं, परमात्मा में। वह जीवन की लेकिन अगर उस तमस का आपने साथ न दिया, सहयोग न धारा का पूरी तरह से ब्रह्म की तरफ उन्मुख हो जाना है। | दिया और मन में उठी सत्व की वृत्ति का सहयोग किया; उस व्यक्ति अब हम सूत्र को लें।
को उठा लिया, चाहे थोड़ी झंझट हो। झंझट संभव है। झंझट नहीं हे अर्जुन, तमोगुण के बढ़ने पर अंतःकरण और इंद्रियों में | | होगी, ऐसा भी नहीं। थोड़ी परेशानी हो; अपना काम छोड़कर किसी अप्रकाश एवं कर्तव्य-कर्मों में अप्रवृत्ति और प्रमाद और निद्रादि | दूसरे काम में उलझना पड़े। लेकिन अगर आपने उठा लिया, तो उस अंतःकरण की मोहनी वृत्तियां, ये सब उत्पन्न हो जाती हैं। क्षण में आप अपने भीतर अगर ध्यान करेंगे, तो आप पाएंगे कि एक-एक गुण का लक्षण कृष्ण गिना रहे हैं। ठीक से समझें। वहां धीमा प्रकाश है। तमोगुण के बढ़ने पर जीवन में अप्रकाश, अंधेरा मालूम होने जीसस ने कहा है अपने अनुयायियों से, कि इसके पहले कि तुम लगता है।
| प्रभु-मंदिर में प्रार्थना करने आओ, सोच लो, तुमने किसी का बुरा मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, हम पढ़ते हैं शास्त्रों में कि | | तो नहीं किया है! अगर किसी का बुरा किया है, तो जाओ, उसे भीतर देखो, वहां परम ज्योति जल रही है। हम भीतर देखते हैं, वहां | ठीक कर आओ। अगर तुमने किसी को गाली दी है, तो क्षमा मांग सिर्फ अंधकार है।
आओ। तभी तुम प्रार्थना में उतर सकोगे। क्योंकि अगर तमस मन परम ज्योति निश्चित ही वहां जल रही है। जिन्होंने कहा है, | | में लिए हुए कोई मंदिर में गया, तो भीतर अंधकार होगा; प्रकाश उन्होंने देखकर ही कहा है। पर आप जब तक तमस से घिरे हैं, तब | का पता नहीं चलेगा। तक आप जहां भी देखें, वहीं अंधकार पाएंगे। भीतर देखें, तो | सच तो यह है कि मंदिर जाने के पहले आपको अपने सत्व को अंधकार पाएंगे: बाहर देखें. तो अंधकार पाएंगे। जीवन में तलाश जगा लेना चाहिए, तो ही मंदिर में जाने की कोई सार्थकता है। कुछ करें, तो आपको लगेगा, सब अंधेरा है। क्या फायदा है इस जीवन करें, जिससे सत्व जगता हो। सत्व जग जाए, तो प्रार्थना आसान का? क्या हो रहा है? कहां मैं पहुंच रहा हूं? यह सब अंधे की तरह | हो जाएगी। सत्व जग जाए, तो आंख बंद करने से भीतर हलका चला जा रहा हूं।
प्रकाश मालूम होगा। हर आदमी, जिसमें थोड़ा भी विचार है, विचारेगा तो फौरन यह हलका प्रकाश कोई प्रतीक नहीं है। यह वास्तविक घटना है। पाएगा, चारों तरफ गहन अंधकार है। और इस अंधकार से कोई | | आप चौबीस घंटे इसका अनुभव करें। जब मन क्रोध से भरा हो, छुटकारा नहीं दिखता। और दीये वगैरह की बातचीत ही बातचीत | तब आंख बंद करके देखें। तब आप पाएंगे, भीतर बहुत घना
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