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* गीता दर्शन भाग-7*
अपने को छोड़ सकते हैं।
| तब उसे कहते हैं कि अब तू युद्ध में जा; अब तुझे कोई भय न पकड़ छोड़ वही सकता है, जो अपना मालिक हो। जो संकल्पवान हो, | सकेगा; क्योंकि तूने मृत्यु भी सीख ली। और मृत्यु के माध्यम से वही समर्पण कर सकता है। हर कोई समर्पण नहीं कर सकता। | तूने आत्मा को जानने का द्वार भी सीख लिया; शरीर से अलग कमजोर, नपुंसक के लिए समर्पण का मार्ग नहीं है। कायर के लिए | | आत्मा को करने का मार्ग भी सीख लिया। समर्पण का मार्ग नहीं है; जो कहे कि हां, हम बिलकुल तैयार हैं। | यह अर्जुन समुराई जैसा क्षत्रिय है। यह अपने जीने के लिए कहने से तैयारी नहीं होती। यह अर्जुन ही कर सकता है। | सबको मार भी सकता है। और जरूरत हो, इसे जीवन व्यर्थ मालूम
इसलिए कृष्ण ने अगर अर्जुन से कहा कि तू सब छोड़ दे, तो पड़े, तो एक क्षण में अपने को समाप्त भी कर सकता है। सोचकर कहा है। यह क्षत्रिय है; संकल्प ले सकता है; समर्पण का | इस अर्जुन से कृष्ण कह रहे हैं कि तू सब छोड़ दे। यह छोड़ भी ले सकता है।
सकता है। यह क्षत्रिय है। सब! इसमें कुछ हिसाब नहीं रखना है जापान में क्षत्रियों की एक जमात है, समुराई। समुराई जापान के | कि कितना! कुछ पीछे अपने को बचा नहीं लेना है। क्योंकि समर्पण क्षत्रिय हैं, शुद्धतम, जो सिर्फ लड़ना ही जानते हैं। मगर लड़ने के आधा नहीं हो सकता; पूरा ही होगा। पहले उन्हें एक कला सिखाई जाती है, जो दुनिया में कहीं भी नहीं पूरा समर्पण महान संकल्प है। यह खयाल में भी लेना कि मैं सिखाई जाती। और उस कला के कारण समुराई का कोई मुकाबला | किसी के हाथ में अपना पूरा भविष्य सौंपता हूं, अपना पूरा जीवन नहीं है।
सौंपता हूं, और जो भी हो परिणाम, मुझे स्वीकार है, अब इसको इसके पहले कि उन्हें सिखाया जाए कि दूसरे को कैसे मारो, वापस नहीं ले सकूँगा। समर्पण वापस नहीं लिया जा सकता। यह समुराई को सिखाया जाता है कि तुम अपनी आत्महत्या कैसे कर आखिरी निर्णय है जो आदमी ले सकता है। सकते हो। और जब तक तुम कुशल नहीं हो अपने को मारने में, ध्यान रहे, कृष्ण थोड़े ही रूपांतरण करेंगे। इस समर्पण के करने तब तक तुम दूसरे को मारने के हकदार नहीं हो। पहले तुम ठीक से | | की प्रक्रिया में रूपांतरण हो जाएगा। इतने सहज भाव से जो मिटने तैयार हो जाओ अपने को मिटाने के लिए।
को राजी है, वह रूपांतरित हो गया। तो समुराई पहले सीखता है, आत्महत्या, हाराकिरी। बड़ा गहरा इसलिए दूसरी जो बात है कृष्ण की कि मैं तुझे बदल दूंगा, तू उसका गणित है। ठीक नाभि के दो इंच नीचे हारा नाम का केंद्र है, सब समर्पण कर। दूसरी बात तो सहज परिणाम है। कृष्ण को कुछ जो कि योगियों की खोज है। उस हारा नाम के केंद्र पर जरा-सी भी करना नहीं पड़ेगा। कृष्ण कुछ कर भी नहीं सकते। करने का कोई चोट छरे की हो जाए, कि शरीर से आत्मा अलग हो जाती है बिना उपाय भी नहीं है। बस, यह अर्जन को समझ में अगर आ जाए कि किसी पीड़ा के।
यह सब छोड़ने को राजी हो जाए। इसलिए समुराई का लक्षण यह है कि जब वह छुरा मारकर अपनी तो यह बड़े मजे की बात है। जब भी कोई सब छोड़ने को राजी हत्या करता है, तो उसके चेहरे पर पीड़ा का एक भाव भी नहीं होना हो जाता है, तो उसके जीवन की सब पीड़ा, सब दुख, सब तनाव चाहिए-मरने के बाद भी, उसकी लाश पर भी। अगर पीड़ा का विदा हो जाते हैं। क्योंकि सब छोड़ने का मतलब है, अहंकार जरा भी भाव है, तो वह चूक गया। वह समुराई नहीं था। उसे मरने छोड़ना। और मैं ही, मेरा अहंकार ही सारे उपद्रव की जड़ है। वह की कला नहीं मालूम थी। उसने छुरा कहीं और मार लिया। जड़ कट जाती है। कटते ही आदमी आत्मज्ञान को उपलब्ध हो
ठीक नाभि के नीचे जीवन का स्रोत है, उस स्रोत की बिलकुल जाता है। बारीक धारा है। उस बारीक धारा को तोड़ देते से ही जीवन शरीर | गुरुओं ने कहा है कि सब छोड़ दो, हम तुम्हें बदल देंगे। बदलने और आत्मा का अलग-अलग हो जाता है, जरा-सी पीड़ा के बिना। की कोई जरूरत नहीं पड़ती। और अगर आप जाकर पूछे कि मैंने सब समुराई के चेहरे पर कोई भाव भी नहीं आता दुख का, विषाद का। | छोड़ दिया; मैं अभी तक नहीं बदला तो उसका सिर्फ मतलब इतना वह वैसा ही प्रफुल्लित और ताजा होता है, जैसा जीवित था।। है कि आपने कुछ छोड़ा नहीं। और कुछ भी मतलब नहीं है। नहीं तो आपको लगे कि सिर्फ सो गया है।
दूसरी घटना तो अनिवार्य है। उस दूसरी घटना को करने के लिए गुरु पहले समुराई को सिखाते हैं, खुद को मिटाने की कला। और को कुछ करना नहीं पड़ता है। वह समर्पण का सहज फल है।
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