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* संबोधि और त्रिगुणात्मक अभिव्यक्ति *
अदभुत हैं। वे इसको बड़े आदर से लेते हैं। रणछोड़दासजी के महावीर, बुद्ध, लाओत्से के पास एक ढंग के व्यक्तित्व हैं, मंदिर हैं जगह-जगह। रणछोड़दास का मतलब है, भगोड़ा, युद्ध इकहरे व्यक्तित्व हैं। कृष्ण के पास तेहरा व्यक्तित्व है। इसलिए को छोड़कर भागा हुआ। पर उसको भी हम कहते हैं, | | कृष्ण का संगीत थोड़ा उलझा हुआ है। और उसे सुलझाने के लिए रणछोड़दासजी! युद्ध को जिसने पीठ दिखा दी, वह रणछोड़। | बड़ी कुशल आंख, बड़ी गहरी आंख चाहिए। नहीं तो फिर कृष्ण __ कृष्ण का पूरा व्यक्तित्व त्रिवेणी है। उसमें नाच-रंग है, जो | के साथ अन्याय हो जाना सुनिश्चित है।
अक्सर तामसी व्यक्ति में होता है। मौज है, उल्लास है। उसमें बड़ा वीर्य भी है। संघर्ष की क्षमता है, युद्ध की कुशलता है, जो कि राजसी व्यक्ति में होती है। उसमें बड़ी सात्विकता है, बड़ी शुद्धता एक प्रश्न औरः आपने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को है, बच्चे जैसी शुद्धता, निर्दोषता है। लेकिन यह सब इकट्ठा है। अपनी मुक्ति स्वयं खोजनी होगी और यही मुक्ति या इसलिए कृष्ण बेबूझ हो जाते हैं और पहेली हो जाते हैं। स्वतंत्रता की गरिमा भी है। अन्यथा स्वतंत्रता झूठी व
बुद्ध पहेली नहीं हैं। अगर आपके पास थोड़ी भी अक्ल है, तो | व्यर्थ हो जाएगी। इस दष्टि से कष्ण का या आपका बुद्ध का पाठ खुला हुआ है। पहेली कुछ भी नहीं है। महावीर में यह कहना कि समर्पण करो और मैं बदल दूंगा, मुक्त कोई पहेली नहीं, कोई रहस्य नहीं है। बात सीधी-साफ है। दो और कर दूंगा, कहां तक उचित है? दो चार, ऐसा गणित है।
लेकिन कृष्ण का मामला बहुत उलझा हुआ है। क्योंकि तीनों गुण हैं और तीनों समतुल हैं। और इसलिए कृष्ण हमें धोखेबाज भी कष्ण अर्जुन को कहते हैं, सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं लगते हैं; झूठ भी बोलते लगते हैं; वचन देते हैं, तोड़ते लगते हैं। पा शरणं व्रज-सब धर्म छोड़, तू मेरी शरण में आ। मैं
ऐसा समझें कि जैसे कृष्ण एक व्यक्ति नहीं हैं, तीन व्यक्ति हैं। - तुझे मुक्त कर दूंगा। इससे स्वभावतः मन में प्रश्न तो जैसे तीन व्यक्तियों का जीवन तीन तरह से चलता रहेगा, ऐसा उठेगा। एक ओर मैंने कहा कि निर्णय अंतिम आपका है। आपकी कृष्ण के भीतर तीन धाराएं इकट्ठी चल रही हैं। कृष्ण एक त्रिवेणी | पूरी स्वतंत्रता है। और यही आपके जीवन की गरिमा है कि कोई हैं। और इसलिए जो भी कृष्ण को गणित में बिठालना चाहेगा, वह आपको जबरदस्ती मोक्ष में प्रवेश नहीं करवा सकता; कृष्ण भी नहीं कृष्ण के साथ अन्याय करेगा।
करवा सकते। इसलिए कुछ हैं, जो गीता के कृष्ण को पूजते हैं; भागवत का | इसीलिए तो कहना पड़ रहा है, सर्व धर्मान् परित्यज्य। कृष्ण भी कृष्ण उन्हें प्रिय नहीं। वे उसको छोड़ देते हैं। वे कहते हैं, यह | जबरदस्ती अर्जुन को मुक्ति नहीं दे सकते। कृष्ण भी कह रहे हैं कि कवियों की कल्पना है। ये असली कृष्ण नहीं हैं।
तू पहले सब समर्पण कर। वह समर्पण का निर्णय अर्जुन को लेना कुछ हैं, जो गीता के कृष्ण की फिक्र ही नहीं करते। उनको | | पड़ेगा। और वह समर्पण का निर्णय अर्जुन ले, तो कृष्ण कुछ कर भागवत का कृष्ण प्यारा है। स्त्रियां स्नान कर रही हों, तो उनके सकते हैं। कपड़े चुराकर झाड़ पर बैठ सकते हैं।
समर्पण का निर्णय बहुत बड़ा निर्णय है, सबसे बड़ा निर्णय है। कृष्ण एक पहेली हैं, क्योंकि ये तीनों गुण उनमें समान हैं। और इस जगत में सब निर्णय छोटे हैं। किसी के हाथ में मैं अपने को पूरा तीनों गुणों के रंग उनके व्यक्तित्व में हैं। ये तीनों स्वर उनके साथ | | सौंप दं, यह बड़े से बड़ा निर्णय है। इससे बड़ा और कोई निर्णय एक साथ बज रहे हैं।
| नहीं है। यह व्यक्तित्व की बात है। अनुभव तो तीनों के पार का होगा। ___ ध्यान रहे, समर्पण सबसे बड़ा संकल्प है। उलटा लगता है। बुद्ध को भी जो मिला है, वह भी तीनों गुणों के पार उन्होंने जाना | क्योंकि हम सोचते हैं, संकल्प का तो अर्थ ही होता है, अपने पर है। महावीर ने भी, मोहम्मद ने भी, जीसस ने भी, लाओत्से ने भी, | | निर्भर रहना। और समर्पण का अर्थ है, दूसरे पर सब छोड़ देना। कृष्ण ने भी। अनुभूति तो तीनों गुणों के पार है, गुणातीत है। लेकिन लेकिन छोड़ने की घटना अगर आप कर सकते हैं, तो उसका जो व्यक्तित्व हमारे पास है, उससे अनुभूति प्रकट होगी। | मतलब हुआ कि आप एकजुट हो गए हैं, आप इकट्ठे हैं। आप
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