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________________ अहंकार घाव है एक मित्र ने पूछा है कि अपने आप को भगवान के चरणों में समर्पित कर देने के बाद क्या सुख-दुख के भाव हममें नहीं उठेंगे? उन्हें उठने देने से रोकने का क्या उपाय है? फि 'र आपको रोकने की जरूरत नहीं, जब भगवान के चरणों में समर्पित ही कर दिया। तो समर्पण पूरा नहीं कर रहे हैं। पीछे आप भी इंतजाम रखेंगे अपना जारी ! हमें खयाल नहीं है कि हम क्या सोचते हैं, किस ढंग से सोचते हैं! अगर अपने को भगवान के हाथ में समर्पण कर दिया, तो फिर सुख-दुख के भाव उठेंगे या नहीं, यह भी भगवान पर छोड़ दें। क्या पहले तय कर लेंगे, फिर समर्पण करेंगे ? तब तो समर्पण: झूठा हो जाएगा, सशर्त, कंडीशनल हो जाएगा। क्या भगवान से यह कहकर समर्पण करेंगे कि समर्पण करता हूं, लेकिन ध्यान रहे, अब सुख-दुख का भाव नहीं उठना चाहिए। अगर उठा, तो समर्पण वापस ले लूंगा । रद्द कर दूंगा कांट्रेक्ट । यह कोई समझौता तो नहीं है कि आप इसमें शर्त रखेंगे। समर्पण का मतलब है, बेशर्त। आप कहते हैं, छोड़ता हूं तुम्हारे हाथ में | अब दुख देना हो तो दुख देना, मैं राजी रहूंगा। समर्पण का मतलब यह है । सुख देना तो सुख देना, मैं राजी रहूंगा। दोनों छीन लेना, राजी रहूंगा। दोनों जारी रखना, राजी रहूंगा। मेरी तरफ से, तुम कुछ भी करो, राजीपन रहेगा। समर्पण का यह अर्थ है। तुम क्या करोगे, अब मैं उस पर कोई विचार न करूंगा। मैं सिर्फ राजी रहूंगा । यह जो राजीपन है...। स्वीकार कर लूंगा कि तुम्हारी मर्जी है; जरूर कुछ बात होगी, जरूर कुछ लाभ होगा। सुख-दुख कैसे बचेंगे ! ! जिस आदमी ने अपने को छोड़ दिया, उसके सुख-दुख बच सकते हैं? सुख-दुख है क्या ? आपकी अपने आप पर पकड़ ही तो जड़ में है। और समर्पण में आप अपनी पकड़ छोड़ते हैं। जो आदमी कहता है कि सुख होगा तो राजी, दुख होगा तो राजी, क्या उसको सुख-दुख हो सकते हैं? सवाल यह है। कैसे हो सकते हैं! क्योंकि सुख का मतलब ही होता है कि चाहता हूं। दुख का मतलब होता है, नहीं चाहता हूं। सुख का मतलब होता है, कहीं छिन न जाए, यह भय। दुख का मतलब होता है, कहीं टिक न जाए, यह भय । समर्पण का अर्थ है, सुख तो राजी, दुख तो राजी । सुख छिन जाए तो राजी, दुख बना रहे तो राजी । सुख-दुख बचेंगे कैसे ? सुख-दुख के बचने की आधारशिला खो गई। सुख है क्या? जिसको आप चाहते हैं। दुख है क्या? जिसको आप नहीं चाहते हैं । और कभी आपने खयाल किया कि कैसा | चमत्कार है कि आज जिसे आप चाहते हैं, वह सुख है; और कल अगर न चाहें, तो वही दुख हो जाता है। और आज जिसे आप नहीं | चाहते थे, वह दुख था; और कल अगर आप उसी को चाहने लगें, सुख हो जाता है। एक प्रेमी है। वह कहता है कि इस स्त्री के बिना मैं जी न सकूंगा। यही मेरा सुख है। और लगता है उसे कि इसके बिना मैं नहीं जी | सकूंगा। और कल शादी हो जाती है। और परसों वह अदालतों में घूम रहा है कि तलाक कैसे करूं ! स्त्री वही है। पहले कहता था, | इसके बिना न जी सकूंगा। अब कहता है, इसके साथ न जी सकूंगा। वह कल सुख था, आज दुख हो गया। और आप ऐसा मत सोचना, कुछ हैरानी की बात नहीं है। ऐसी घटनाएं घटती हैं। मेरे एक परिचित हैं। स्पेन में रहते हैं। उन्होंने अपनी पत्नी को तलाक दिया और दो साल बाद उसी स्त्री से दुबारा शादी कर ली ! पहले सुख पाया, फिर दुख पाया। दो साल उसके बिना रहे, और फिर लगा कि वह सुख है। जब उन्होंने मुझे खबर की, तो मैंने कहा कि तुम पहले अनुभव से कुछ भी सीखे नहीं मालूम पड़ता। यह स्त्री कभी सुख थी, फिर दुख हो गई थी। अभी फिर सुख हो गई है ! | कितनी देर चलेगा? और कब दुख हो जाए, ज्यादा देर नहीं चलेगा मामला। क्योंकि व्यक्ति वे के वही हैं। फिर दुख हो जाएगा। इतने दूर जाने की जरूरत नहीं है। आपकी पत्नी ही थोड़े दिन मायके चली जाती है, तो सुखद मालूम पड़ने लगती है। लौट आती है, तो देखते ही से फिर तबीयत घबड़ाती है कि वापस आ गई ! दूरी सुख के भावों को जन्म देने लगती है, निकटता उबाने लगती है। जो भी हमारे पास है, उससे ही हम ऊब जाते हैं। तो ऐसा कुछ नहीं है कि कोई चीज सुख है और कोई चीज दुख है। भाव ! आपका भाव अगर चाह का है, तो सुख है; और अगर बेचाह का हो गया, | तो दुख है। चीज वही हो, इससे कोई भी अंतर नहीं पड़ता है। लेकिन समर्पण करने वाले ने अपनी चाह छोड़ दी, अपना भाव छोड़ दिया। अब उसे दुख देना मुश्किल है। अब उसे सुख देना भी मुश्किल है । और जिस व्यक्ति को सुख और दुख दोनों देना मुश्किल हो जाता है, वही आनंद को उपलब्ध होता है। आनंद सुख नहीं है। शब्दकोश में ऐसा ही लगता है, भाषा में 73
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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