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ॐ गीता दर्शन भाग-60
बिलकुल बेहोश हो गए हैं, और एक तल पर हम पूरी तरह होशवान | क्योंकि जब तक भीतर प्रतीति न हो इस बात की कि सब बेहोशी हो गए हैं। ये घटनाएं एक साथ घटती हैं।
| हो गई है और फिर भी भीतर कोई जागा है, दीया जल रहा है, तब शराब में हम केवल बेहोश होते हैं, कोई होश नहीं होता। | तक कैसे, तब तक आप बाहर से ही देखेंगे। तो आप बाहर से इसलिए कुछ साधकों ने तो इस भाव की जागरूकता को पाने के | नाचते हुए देखेंगे मीरा को, तो आपको लगेगा कि बेहोश है, होश बाद शराबें पीकर भी देखी हैं, कि क्या हमारी इस भाव की | नहीं है इसे। लगेगा ही। कपड़ा गिर गया। साड़ी का पल्लू गिर जागरूकता को शराब डुबा सकती है?
गया। अगर होश होता, तो मीरा अपना पल्लू सम्हालती, कपड़ा आपको पता हो या न हो, योग और तंत्र के ऐसे संप्रदाय रहे हैं, सम्हालती। होश में नहीं है, बेहोश है। जहां कि शराब भी पिलाई जाएगी। जब भाव की पूरी अवस्था आ निश्चित ही, शरीर के तल पर बेहोशी है। कपड़े के तल से होश जाएगी और साधक कहेगा कि अब मैं बाहर से तो बिलकुल बेहोश हट गया है। वहां मीरा अब नहीं है। न कपड़े में है, न शरीर में है। हो जाता हूं, लेकिन मेरा भीतर होश पूरा बना रहता है, तो फिर गुरु | | भीतर कहीं सरक गई है। लेकिन वहां होश है। उसको शराब भी पिलाएगा, अफीम भी खिलाएगा। और धीरे-धीरे पर यह तो आप भी मीरा हो जाएं, तभी खयाल में आए, अन्यथा बेहोशी की, मादकता की मात्रा बढ़ाई जाएगी और उससे कहा | कैसे खयाल में आए! मीरा के भीतर झांकने का कोई भी उपाय नहीं जाएगा कि यहां बाहर बेहोशी घेरने लगे, शरीर बेहोश होने लगे, है। कोई खिड़की-दरवाजा नहीं, जिससे हम भीतर झांक सकें। तो भी तू भीतर अपने होश को मत खोना।
| अगर मीरा के भीतर झांकना है, तो अपने ही भीतर झांकना पड़े, और यह बात यहां तक प्रयोग की गई है कि सब तरह की शराब और कोई उपाय नहीं है। बद्ध को समझना हो, तो बद्ध हए बिना और सब तरह के मादक द्रव्य पीकर भी साधक भीतर होश में बना कोई रास्ता नहीं है। रहता है, तब फिर सांप को भी कटवाते हैं उसकी जीभ पर; कि जब | ___ इसलिए शिष्य जब तक गुरु ही नहीं हो जाता, तब तक गुरु को सांप काट ले, उसका जहर भी पूरे शरीर में फैल जाए, तो भी भीतर | नहीं समझ पाता है। कैसे समझेगा? अलग-अलग तल पर खड़े का होश जरा भी न डिगे, तभी वे मानते हैं कि अब तूने उस होश | हुए लोग हैं। वे अलग भाषाएं बोल रहे हैं। अलग अनुभवों की बातें को पा लिया, जिसको मौत भी न हिला सकेगी।
कर रहे हैं। तब तक मिसअंडरस्टैंडिंग ज्यादा होगी, नासमझी ज्यादा पर अनुभव के बिना कुछ खयाल न आ सकेगा। थोड़ा भाव में | होगी, समझ कम होगी। अगर सच में ही समझना चाहते हैं, तो डूबना सीखें। भाव में जो डूबता है, वह उबर जाता है। और भाव प्रयोग की हिम्मत जुटानी चाहिए। से जो बचता है, वह डूब ही जाता है, नष्ट ही हो जाता है। विज्ञान भी प्रयोग पर निर्भर करता है और धर्म भी। दोनों
लेकिन कुछ चीजें हैं, जो समझ से नहीं समझाई जा सकतीं। कोई | एक्सपेरिमेंटल हैं। विज्ञान भी कहता है कि जाओ प्रयोगशाला में उपाय नहीं है। और जितनी भीतरी बात होगी, उतना ही अनुभव पर और प्रयोग करो। और जब तुम भी पाओ कि ऐसा होता है, तो ही निर्भर रहना पड़ेगा।
| मानना, अन्यथा मत मानना। धर्म भी कहता है कि जाओ अगर मेरे पैर में दर्द है, तो आपको मानना ही पड़ेगा कि दर्द है।। प्रयोगशाला में, प्रयोग करो। हालांकि प्रयोगशालाएं दोनों की और क्या उपाय है! और अगर मैं आपको समझाने जाऊं और अलग हैं। विज्ञान की प्रयोग शाला बाहर है, धर्म की प्रयोगशाला आपके पैर में कभी दर्द न हुआ हो, तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। | भीतर है। आप ही हो धर्म की प्रयोगशाला। मैं कितना ही कहूं कि पैर में दर्द है, लेकिन आपको अगर दर्द का | । इसलिए विज्ञान की प्रयोगशाला तो निर्मित करनी पडती है. और कोई अनुभव नहीं है, तो शब्द ही सुनाई पड़ेगा; अर्थ कुछ भी समझ | | आप अपनी प्रयोगशाला अपने साथ लिए चल रहे हो। नाहक ढो रहे में न आएगा। आपको भी दर्द हो, तो ही...। अनुभव को शब्द से | | हो वजन। बड़ा अदभुत यंत्र आपको मिला है, उसमें आप प्रयोग कर हस्तांतरित करने की कोई भी सुगमता नहीं है।
| लो, तो अभी आपको खयाल में आ जाए कि क्या हो सकता है। बुद्ध के पास कोई आया और उसने कहा कि जो आपको हुआ भाव की बेहोशी बहुत गहन होश का नाम है। वह किसी दूसरे है, थोड़ा मुझे भी समझाएं। तो बुद्ध ने कहा कि समझा मैं न सकूँगा। तल पर होश है, जागरूकता है। तुम रुको और वर्षभर जो मैं कहूं, वह करो। समझ में आ जाएगा।