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________________ ॐ अहंकार घाव है व यह वाद्य उपद्रव नहीं है। एक ही है जगत का अस्तित्व। जब जब चैतन्य नाच रहे हैं सड़कों पर, तो आप यह मत सोचना कि बजाना आता है, तो वह परमात्मा मालूम पड़ता है। जब बजाना नहीं | | वे बेहोश हैं। हालांकि वे कहते हैं कि मैं बेहोश हूं। और हालांकि आता, तो वह संसार मालूम पड़ता है। वे कहते हैं कि हमने शराब पी ली परमात्मा की। वे सिर्फ इसलिए अपने को बदलें। वह कला सीखें कि कैसे इसी वाद्य से संगीत उठ | कहते हैं कि आप इन्हीं प्रतीकों को समझ सकते हैं। आए। और कैसे ये पत्थर प्राणवान हो जाएं। और कैसे ये एक-एक उमर खय्याम ने कहा है कि अब हमने ऐसी शराब पी ली है, फूल प्रभु की मुस्कुराहट बन जाएं। धर्म उसकी ही कला है। जिसका नशा कभी न उतरेगा। और अब बार-बार पीने की कोई तो जो धर्म भागना सिखाता है, समझना कि वह धर्म ही नहीं है। जरूरत न रहेगी। अब तो पीकर हम सदा के लिए खो गए हैं। कहीं कोई भूल-चूक हो रही है। जो धर्म रूपांतरण, आंतरिक क्रांति शराब का उपयोग किया है प्रतीक की तरह। क्योंकि आप एक सिखाता है, वही वास्तविक विज्ञान है। | ही तरह का खोना जानते हैं, जिसमें आपकी सारी चेतना ही शून्य हो जाती है। भाव में शराब का थोड़ा-सा हिस्सा है। आपकी सब बीमारियां एक मित्र ने पूछा है कि आपने बताया कि बेहोशी में | सो जाती हैं, आपका अहंकार सो जाता है, आपका मन सो जाता किया हुआ कृत्य पाप है। लेकिन भाव से भी तो | है, आपके विचार सो जाते हैं। लेकिन आप? आप पूरी तरह जाग बेहोशी होती है? कृपया समाधान कीजिए। गए होते हैं और भीतर पूरा होश होता है। लेकिन यह तो अनुभव से ही होगा, तो ही खयाल में आएगा। यह तो बात जटिल है। यह तो आपको कैसे खयाल में आएगी! भाव में डूबकर देखें। होशी बेहोशी में बड़ा फर्क है। एक बेहोशी नींद में | | लेकिन हम डरते हैं। डर यही होता है, कहीं अगर भाव में पूरे होती है, तब आपको कुछ भी पता नहीं होता। एक | डूब गए, तो जो-जो हमने दबा रखा है, अगर वह बाहर निकल बेहोशी शराब पीने से भी होती है, तब भी आपको | पड़ा, तो लोग क्या कहेंगे! डरते हैं हम, क्योंकि हमने बहुत कुछ कुछ पता नहीं होता। एक बेहोशी भाव से भी होती है, आप पूरे छिपा रखा है। और हमने चारों तरफ से अपने को बांध रखा है बेहोश भी होते हैं और आपको पूरा पता भी होता है। जब आप मग्न नियंत्रण में। तो कहीं नियंत्रण ढीला हो गया, और जरा-सा भी कहीं होकर गीत में नाच रहे होते हैं, तो यह नृत्य भी होता है, इस नृत्य | छिद्र हो गया, और हमने जो रोक रखा है, वह बाहर निकल पड़ा में पूरा डूबा हुआ होना भी होता है; और भीतर दीए की तरह चेतना | तो? उस भय के कारण हम अपने को कभी छोड़ते नहीं, समर्पण भी जलती है, जो जानती है, जो देखती है, जो साक्षी होती है। नहीं करते। . अगर आपके भाव में बेहोशी शराब जैसी आ जाए, तो आप हम कहीं भी अपने को शिथिल नहीं करते। हम चौबीस घंटे डरे समझना कि चूक गए। तो समझना कि यह भाव भी फिर शराब ही | | हुए हैं और अपने को सम्हाले हुए हैं। यह जिंदगी नरक जैसी हो हो गई। जाती है। इसमें सिवाय संताप के और विष के कुछ भी नहीं बचता। प्रार्थना में बेहोशी का मतलब इतना है कि आप इतने लीन हो | | यह रोग ही रोग का विस्तार हो जाता है। गए हैं कि मैं हूं, इसका कोई पता नहीं है। मैं हूं, इसका कोई शब्द | खुलें; फूल की तरह खिल जाएं। माना कि बहुत-सी बीमारियां निर्मित नहीं होता। लेकिन जो भी हो रहा है, उसके आप साक्षी हैं। आपके भीतर पड़ी हैं। लेकिन आप उनको जितना सम्हाले रखेंगे, जो साक्षी है, उसमें कोई मैं का भाव नहीं है। और वह जो साक्षी है, उतनी ही वे आपके भीतर बढ़ती जाएंगी। उनको भी गिर जाने दें। वह आप नहीं हैं; आप तो लीन हो गए हैं। और आपके लीन होने उनको भी परमात्मा के चरणों में समर्पित कर दें। और आप जल्दी के बाद जो भीतर असली आपका स्वरूप है, वह भर देखता है।। ही पाएंगे कि बीमारियां हट गईं और आपके भीतर फूल का खिलना उस दर्शन में, उस द्रष्टा के होने में, जरा भी बेहोशी नहीं है। | शुरू हो गया। आपके भीतर का कमल खिलने लगा। भाव की बेहोशी में आपके जो-जो रोग हैं, वे सो गए होते हैं; जिस दिन यह भीतर का कमल खिलना शुरू होता है, उसी दिन और आपके भीतर जो शुद्ध चेतन है, वह जाग गया होता है। पता चलता है कि बेहोशी भी है और होश भी है। एक तल पर हम
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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