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0 अहंकार घाव है
परिस्थिति में आप जाग जाएं, तो परमात्मा मिल जाएगा।
इतना आसान नहीं परमात्मा को पाना कि आप घर से निकलकर ऐसा समझें कि एक आदमी सुबह एक बगीचे में सो रहा है। मंदिर में आ गए और परमात्मा मिल गया! कि आप जंगल में चले सूरज निकल आया है, और पक्षी गीत गा रहे हैं, और फूल खिल | गए, और परमात्मा मिल गया! परमात्मा को पाने के लिए आपकी गए हैं, और हवाएं सुगंध से भरी हैं, और वह सो रहा है। उसे कुछ | जो चित्त-अवस्था है, इससे निकलना पड़ेगा और एक नई भी पता नहीं कि क्या मौजूद है। आंख खोले, जागे, तो उसे पता | चित्त-अवस्था में प्रवेश करना पड़ेगा। चले कि क्या मौजूद है। जब तक सो रहा है, तब तक अपने ही ये ध्यान और प्रार्थनाएं उसके ही मार्ग हैं कि आप कैसे बदलें। सपनों में है।
आम हमारी मन की यही तर्कना है कि परिस्थिति को बदल लें, तो हो सकता है-यह फूलों से भरा बगीचा, यह आकाश, ये सब हो जाए। हम जिंदगीभर इसी ढंग से सोचते हैं। लेकिन हवाएं, यह सूरज, ये पक्षियों के गीत तो उसके लिए हैं ही नहीं हो परिस्थिति हमारी उत्पन्न की हुई है। मनःस्थिति असली चीज है, सकता है, वह एक दुखस्वप्न देख रहा हो, एक नरक में पड़ा हो। परिस्थिति नहीं। इस बगीचे के बीच, इस सौंदर्य के बीच वह एक सपना देख रहा ___ एक आदमी गाली देता है, तो आप सोचते हैं, इसके गाली देने हो कि मैं नरक में सड़ रहा हूं और आग की लपटों में जल रहा हूं। से दुख होता है, पीड़ा होती है, क्रोध होता है। इस आदमी से हट
जिसे हम संसार कह रहे हैं, वह संसार नहीं है। हमारा सपना, | जाएं, तो न क्रोध होगा, न पीड़ा होगी, न अपमान होगा, न मन में हमारा सोया हुआ होना ही संसार है। परमात्मा तो चारों तरफ मौजूद संताप होगा। है, पर हम सोए हुए हैं। वह अभी और यहां भी मौजूद है। वही लेकिन जो आदमी गाली देता है, वह क्रोध पैदा नहीं करता। आपका निकटतम पड़ोसी है। वही आपकी धड़कन में है; वही | | क्रोध तो आपके भीतर है; उसको केवल हिलाता है। आप भाग आपके भीतर है; वही आप हैं। उससे ज्यादा निकट और कुछ भी | जाएं; क्रोध को आप भीतर ले जा रहे हैं। अगर कोई आदमी न नहीं है। उसे पाने के लिए कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है। वह होगा, तो आप चीजों पर क्रोध करने लगेंगे। यहां है, अभी है। लेकिन हम सोए हुए हैं।
__लोग दरवाजे इस तरह लगाते हैं, जैसे किसी दुश्मन को धक्का इस नींद को तोड़ें। भागने से कुछ भी न होगा। इस नींद को मार रहे हों! लोग जूतों को गाली देते हैं और फेंकते हैं। लोग हटाएं। यह मन होश से भरे, इस मन के सपने विदा हो जाएं, इस | | लिखती हुई कलम को जमीन पर, फर्श पर पटक देते हैं। क्रोध में मन में विचारों की तरंगें न रहें, यह मन शांत और मौन हो जाए, तो | | चीजें...एक कलम क्या क्रोध पैदा करेगी? एक दरवाजा क्या क्रोध आपको अभी उसका स्पर्श शुरू हो जाएगा। उसके फूल खिलने | पैदा करेगा? लगेंगे; उसकी सुगंध आने लगेगी; उसका गीत सुनाई पड़ने लेकिन क्रोध भीतर भरा है। उसे आप निकालेंगे; कोई न कोई लगेगा; उसका सूरज अभी-अभी आपके अंधेरे को काट देगा और बहाना आप खोजेंगे। और बहाने मिल जाएंगे। बहानों की कमी नहीं आप प्रकाश से भर जाएंगे।
है। तब फिर आप सोचेंगे, इस परिस्थिति से हटूं, तो शायद किसी इसलिए मेरी दृष्टि में, जो भाग रहा है, उसे तो कुछ भी पता नहीं दिन शांत हो जाऊं। तो आप जन्मों-जन्मों से यही कर रहे हैं, है। यह हो सकता है कि आप संसार से पीड़ित हो गए हैं, इसलिए | परिस्थिति को बदलो और अपने को जैसे हो वैसे ही सम्हाले रहो! भागते हों। लेकिन संसार की पीड़ा भी आपका ही सृजन है। तो आप अगर रहे, तो आप ऐसा ही संसार बनाते चले जाएंगे। आप आप भागकर जहां भी जाइएगा, वहां आप नई पीड़ा के स्रोत तैयार | | स्रष्टा हैं संसार के। मन को बदलें; वह जो भीतर चित्त है, उसको कर लेंगे।
| बदलें। अगर कोई गाली देता है, तो उससे यह अर्थ नहीं है कि उसकी यह ऊपर से दिखाई नहीं पड़ता, तो आप जाकर देखें। आश्रमों | गाली आप में क्रोध पैदा करती है। उसका केवल इतना ही अर्थ है, में बैठे हुए लोगों को देखें, संन्यासियों को देखें। अगर वे जागे नहीं | क्रोध तो भीतर भरा था, गाली चोट मार देती है और क्रोध बाहर आ हैं, तो आप उनको पाएंगे वे ऐसी ही गृहस्थी में उलझे हैं जैसे आप। | जाता है। ऐसे ही जैसे कोई कुएं में बालटी डाले और पानी भरकर
और उनकी उलझनें भी ऐसी ही हैं, जैसे आप। उनकी परेशानी भी | बालटी में आ जाए। बालटी पानी नहीं पैदा करती, वह कुएं में भरा यही है। वे भी इतने ही चिंतित और दुखी हैं।
| हुआ था। खाली कुएं में डालिए बालटी, खाली वापस लौट आएगी।
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