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ॐ गीता दर्शन भाग-60
अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम् । गया है। भगोड़ों के लिए नहीं है परमात्मा। ठहर जाने वाले लोगों अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनंजय ।।९।। के लिए है, थिर हो जाने वाले लोगों के लिए है। __ अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव।। __ आप कहां हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता। अगर आप शांत हैं और मदर्थमपि कर्माणि कुन्सिद्धिमवाप्स्यसि ।। १० ।।। ठहरे हए हैं, तो वहीं परमात्मा से मिलन हो जाएगा। अगर आप और तू यदि मन को मेरे में अचल स्थापन करने के लिए दुकान पर बैठे हुए भी शांत हैं और आपके मन में कोई दुविधा, कोई समर्थ नहीं है, तो हे अर्जुन, अभ्यासरूप-योग से मेरे को | अड़चन, कोई द्वंद्व, कोई संघर्ष, कोई तनाव नहीं है, तो उस दुकान प्राप्त होने के लिए इच्छा कर।
| पर ही परमात्मा उतर आएगा। और आप आश्रम में भी बैठे हो और यदि तू अपर कहे हुए अभ्यास में भी असमर्थ है, तो | सकते हैं, और मन में द्वंद्व और दुविधा और परेशानी हो, तो वहां केवल मेरे लिए कर्म करने के ही परायण हो। इस प्रकार भी परमात्मा से कोई संपर्क न हो पाएगा। मेरे अर्थ कर्मों को करता हुआ भी मेरी प्राप्तिरूप सिद्धि को न तो पत्नी रोकती है, न बच्चे रोकते हैं। आपके मन की ही ही प्राप्त होगा।
| द्वंद्वग्रस्त स्थिति रोकती है। संसार नहीं रोकता, आपके ही मन की विक्षिप्तता रोकती है।
संसार से भागने से कुछ भी न होगा। क्योंकि संसार से भागना पहले कुछ प्रश्न। एक मित्र ने पूछा है, क्या संसारी | एक तो असंभव है। जहां भी जाएंगे, पाएंगे संसार है। और फिर ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता? घर-बार और स्त्री | आप तो अपने साथ ही चले जाएंगे, कहीं भी भागें। घर छूट सकता ही क्या ईश्वर को पाने में बाधा है? संसारी के लिए है, पत्नी छूट सकती है, बच्चे छूट सकते हैं। आप अपने को क्या ईश्वर को पाने का कोई उपाय नहीं है? छोड़कर कहां भागिएगा?
और पत्नी वहां आपके कारण थी, और बच्चे आपके कारण थे।
आप जहां भी जाएंगे, वहां पत्नी पैदा कर लेंगे। आप बच नहीं - सी भ्रांति प्रचलित है कि संसारी परमात्मा को प्राप्त सकते। वह घर आपने बनाया था। और जिसने बनाया था, वह ___ नहीं कर सकता है। इससे बड़ी और कोई भ्रांति की साथ ही रहेगा। वह फिर बना लेगा। आप असली कारीगर को तो
बात नहीं हो सकती, क्योंकि होने का अर्थ ही संसार साथ ले जा रहे हैं। वह आप हैं। में होना है। आप संसार में किस ढंग से होते हैं, इससे फर्क नहीं अगर यहां धन को पकड़ते थे, तो वहां भी कुछ न कुछ आप पकड़ पड़ता। संसार में होना ही पड़ता है, अगर आप हैं। होने का अर्थ लेंगे। वह पकड़ने वाला भीतर है। अगर यहां मुकदमा लड़ते थे अपने ही संसार में होना है। फिर आप घर में बैठते हैं कि आश्रम में, इससे मकान के लिए, तो वहां आश्रम के लिए लड़िएगा। लेकिन मुकदमा कोई फर्क नहीं पड़ता।
आप लड़िएगा। यहां कहते थे, यह मेरा मकान है; वहां आप घर भी उतना ही संसार में है, जितना आश्रम। और आप कहिएगा, यह मेरा आश्रम है। लेकिन वह मेरा आपके साथ होगा। पत्नी-बच्चों के साथ रहते हैं या उनको छोड़कर भागते हैं, जहां __ आप भाग नहीं सकते। अपने से कैसे भाग सकते हैं? और आप आप रहते हैं, वह भी संसार है; जहां आप भागते हैं, वह भी संसार | | ही हैं रोग। यह तो ऐसा हुआ कि टी.बी. का मरीज भाग खड़ा हो। है। होना है संसार में ही।
सोचे कि भागने से टी.बी. से छुटकारा हो जाएगा। मगर वह और जब परमात्मा भी संसार से भयभीत नहीं है, तो आप इतने | टी.बी. आपके साथ ही भाग रही है। और भागने में और हालत क्यों भयभीत हैं? और जब हम परमात्मा को मानते हैं कि वही खराब हो जाएगी। कण-कण में समाया हुआ है; इस संसार में भी वही है; संसार भी भागना बचकाना है। भागना नहीं है, जागना है। संसार से भागने वही है...।
से परमात्मा नहीं मिलता, और न संसार में रहने से मिलता है। संसार से भागकर वह नहीं मिलेगा। क्योंकि गहरे में तो जो भाग | | संसार में जागने से मिलता है। संसार एक परिस्थिति है। उस रहा है, वह उसे पा ही नहीं सकेगा। उसे तो पाता वह है, जो ठहर परिस्थिति में आप सोए हुए हों, तो परमात्मा को खोए रहेंगे। उस