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________________ गीता दर्शन भाग-60 कबीर? कि मुझे शक है कि आपने यह विज्ञापन पढ़ा कैसे! और फिर इसमें भक्त शुरू करता है भगवान को अपने भीतर लेने से और लिखा हुआ है कि आदी आर्यन जाति का चाहिए, और स्पष्टतः आखिर में पाता है कि भगवान ने उसे अपने भीतर ले लिया है। | आप यहूदी हैं। तो आप किस लिए आए हैं? कृष्ण कहते हैं, उसके उपरांत तू मुझमें ही निवास करेगा, मुझको | | तो उस यहूदी बूढ़े ने कहा, टु टेल यू जस्ट दिस, दैट डोंट डिपेंड ही प्राप्त होगा। इसमें कुछ भी संशय नहीं है। | आन मी–सिर्फ यही खबर करने आया हूं कि मुझ पर निर्भर मत अगर भाव से शुरू करें, तो कुछ भी संशय नहीं है। अगर बुद्धि रहना। कोई और आदमी खोज लो। इतना भर सूचन करने आया हूं से शुरू करें, तो संशय ही संशय है। जरा-सा फर्क कि आप बुद्धि | कि मुझ पर निर्भर मत रहना। को पहले रख लें, फिर संशय ही संशय है। भाव को पहले रख लें, हंसी आती है, लेकिन थोड़ा खोजेंगे, तो उस यहूदी को अपने फिर कोई संशय नहीं है। भीतर पाएंगे। सारी दुनिया जैसे आपकी ही सोच-समझ, आपकी अपने भीतर खोज करनी चाहिए कि मैंने किस चीज को | बुद्धि, आपके तर्क पर निर्भर है! और अगर आप जरा डांवाडोल प्राथमिकता दे रखी है। हमारा अहंकार अपने को ही प्राथमिकता हुए वहां से, तो यह सारी व्यवस्था टूट जाएगी! दिए हुए है। और हम को तो ऐसा लगता है कि हमारे ही ऊपर तो कुछ नहीं है वहां भीतर सम्हालने को, लेकिन बस, सम्हाले हुए सारा सब कुछ टिका है। अगर हम ही जरा डांवाडोल हो गए अपने | हैं! और कोई आप पर निर्भर नहीं है। लेकिन बड़ी जिम्मेवारी उठाए अहंकार से, तो सारा जगत न गिर जाए! सब को ऐसा लगता है। | हुए हैं। सारा भार सारे संसार का आपकी ही समझ पर है! अगर सुना है मैंने, छिपकलियां मकानों को सम्हाले रहती हैं। आप नासमझ हो गए, तो सारा जगत रास्ते से विचलित हो जाएगा। छिपकलियां सोचती हैं कि अगर वे हट गईं, तो कहीं मकान की छत यह जो तर्क की दृष्टि है, यह जो अहंकार का बोध है, इसकी न गिर जाए! हम सब को भी ऐसा लगता है कि अगर हमने अपना वजह से हम भाव को कभी भी आगे रखने में डरते हैं, क्योंकि भाव तर्क छोड़ दिया, बुद्धि छोड़ दी, तो यह सारा जगत अभी भूमिसात अराजक है। और भाव कहां ले जाएगा, नहीं कहा जा सकता। हो जाए! सब गिर न जाए। | इसलिए हम सदा भाव को दबाए रखते हैं, क्योंकि भाव क्या ___ एक छोटी-सी कहानी से अपनी बात मैं पूरी करूं। नाजी जर्मनी करेगा, वह भी अनजान, अपरिचित, अज्ञात है। . में जब हिटलर की हुकूमत थी, एक दिन अखबार में एक विज्ञापन तो भाव से हम भयभीत हैं। न तो कभी हम हंसते हैं खुलकर, निकला। किसी पुलिस के बड़े आफिसर की जगह खाली थी। और | क्योंकि डर लगता है कि कहीं सीमा के बाहर न हंस दें! न हम कभी कोई बड़ा महत्वपूर्ण पद था। जिस आफिसर को इंटरव्यू लेना था रोते हैं हृदयपूर्वक, क्योंकि लगता है कि लोग क्या कहेंगे कि अभी उस जगह के लिए, सुबह ही उसने देखा कि एक यहूदी बूढ़ा | भी बच्चों जैसा काम कर रहे हो! अखबार हाथ में लिए है और जहां विज्ञापन निकला था अखबार नहीं; हम कुछ भी भाव से नहीं करने देते। सब पर बुद्धि को में, एडवरटाइजमेंट निकला था, उस पर लाल स्याही से गोल घेरा अड़ा देते हैं। तो भीतर आंसू भी इकट्ठे हो जाते हैं। सागर में भी बनाए हुए अंदर आया। इतना खारापन नहीं है, जितना आपके भीतर एक जिंदगी में इकट्ठा वह आफिसर थोड़ा चकित हुआ कि यह बूढ़ा यहूदी क्या इस | हो जाता है। आंसू ही आंसू इकट्ठे हो जाते हैं। हंसे भी कभी नहीं, विज्ञापन के लिए आया हुआ है! उसने पूछा कि क्या आप इस | तो मर्दा हंसियां इकट्ठी हो जाती हैं. उनकी लाशें सड़ जाती हैं। सब विज्ञापन के लिए आए हुए हैं? उस बूढ़े ने कहा, जी हां। तो जहर हो जाता है भीतर। भाव कहीं बाहर निकल न जाए, तो बुद्धि आफिसर और भी चकित हुआ। उसने कहा, थोड़ा देखिए तो कि को सम्हाल-सम्हालकर चलते हैं। विज्ञापन में क्या लिखा है! कि आदमी जवान चाहिए, और आपकी | | इस दुनिया में इसलिए लोगों को इतनी ज्यादा शराब पीने की उम्र कम से कम सत्तर पार कर चुकी है। आदमी स्वस्थ-सुडौल जरूरत पड़ती है, क्योंकि शराब पीकर थोड़ी देर को बुद्धि एक तरफ चाहिए, और आपकी हालत ऐसी है कि आप जिंदा कैसे हैं, इस पर हट जाती है और भाव बाहर आ जाता है। और जब तक हम भाव आश्चर्य होता है। इसमें लिखा हुआ है कि आंखें बिलकुल स्वस्थ | | | को आगे नहीं रखते, तब तक दुनिया से शराब नहीं मिट सकती। और ठीक होनी चाहिए, और आप इतना मोटा चश्मा लगाए हुए हैं । अब यह बड़े मजे का और उलझा हुआ मामला है। अक्सर जो 64
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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