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________________ 0 संदेह की आग इसमें कुछ भी संशय नहीं है। तर्क के पीछे आप भावों को घसीटेंगे, तो आपने बैलगाड़ी के पीछे मुझ में मन को लगा और मुझ में ही बुद्धि को लगा। दो बातें बैल बांध रखे हैं। फिर आप कितनी ही कोशिश करें, बैलगाड़ी कहीं कही हैं। मुझ में मन को लगा, मुझ में ही बुद्धि को लगा। लेकिन | | जा नहीं सकती। और अगर जाएगी भी, तो किसी गड्ढे में जाएगी। पहले कहा कि मुझ में मन को लगा। सीधा करें व्यवस्था को। भाव से बहें, क्योंकि भाव स्वभाव है, हम सब कोशिश करते हैं, पहले बुद्धि को लगाने की। प्रमाण | निसर्ग है। बुद्धि को पीछे चलने दें। बुद्धि हिसाबी-किताबी है। चाहिए, तर्क चाहिए, तब हम भाव करेंगे। यह नहीं हो सकता, यह अच्छा है; उसकी जरूरत है। उलटा है। पहले भाव। तो कृष्ण कहते हैं, मुझ में मन को लगा। ___ इसलिए कृष्ण कहते हैं, मुझ में मन को लगा। पहले अपने भाव बुद्धि को भी लगा। को मुझ से जोड़ दे। फिर कोई हर्जा नहीं तेरी बुद्धि का। एक दफा मन लग जाए, तो फिर बुद्धि भी लग जाती है। तर्क तो | | इसलिए ऐसा मत सोचना कि आस्तिक जो हैं. वे कोई तर्कहीन हमेशा भाव का अनुसरण करता है। क्योंकि भाव गहरा है और तर्क हैं। अतळ हैं, तर्कहीन नहीं हैं। आस्तिक जो हैं, वे भी तर्क करते तो उथला है। बच्चा भाव के साथ पैदा होता है; तर्क तो बाद में | | हैं, और खूब गहरा तर्क करते हैं। लेकिन भाव के ऊपर तर्क को सीखता है। तर्क तो दूसरों से सीखता है; भाव तो अपना लाता है। | नहीं रखते हैं। कोई तार्किकों की कमी नहीं है आस्तिकों के पास। बुद्धि तो उधार है; मन तो अपना है, निजी है। यह जो निजी भाव | | लेकिन भाव पहले है। और जो उन्होंने भाव से जाना है, उसे ही वे अगर एक दफा चल पड़े, तो फिर बुद्धि इसके पीछे चलती है। । | तर्क की भाषा में कहते हैं। इसलिए देखें, हमारे तर्कों में बड़ा फर्क होता है, अगर हमारे भाव __ अब कोई शंकर से बड़ा तार्किक खोजना आसान थोड़े ही है। में फर्क हो। अगर हमारा भाव अलग हो, तो वही स्थिति हमें दूसरा | | लेकिन शंकर का तर्क है भाव से बंधा। भाव पहले घट गया है। तर्क सुझाती है। और अब तर्क केवल उस भाव को प्रस्थापित करने के लिए, उस सुना है मैंने कि एक सूफी फकीर शराब पीकर और प्रार्थना कर भाव को समझाने के लिए, उस भाव को पुष्ट करने के लिए है। रहा था। उसके गुरु को खबर दी गई। जिन्होंने खबर दी, वे जब कोई आदमी तर्क को पहले रखता है, तो वह अपने को शिकायत लाए थे, और उन्होंने कहा कि निकाल बाहर करो अपने पहले रखता है। जब कोई आदमी भाव को पहले रखता है, तो वह इस शिष्य को। यह शराब पीकर प्रार्थना कर रहा है! और अगर | निसर्ग को पहले रखता है। निसर्ग आपसे बड़ा है, विराट है। बड़े लोग देख लेंगे कि प्रार्थना करने वाले लोग शराब पीते हैं, तो कैसी को पीछे मत बांधिए छोटे के। छोटे को बड़े के पीछे चलने दीजिए। बदनामी न होगी! तो कृष्ण कहते हैं, मुझ में मन को लगा; मुझ में बुद्धि को लगा। गुरु सुनकर नाचने लगा। और उसने कहा कि धन्यवाद तेरा, कि | | इसके उपरांत तू मुझ में ही निवास करेगा। तू फिर मेरे हृदय में आ मेरे शिष्य शराब भी पी लें, तो भी प्रार्थना करना नहीं भूलते हैं! और | जाएगा। गजब हो जाएगा, अगर दुनिया यह जान लेगी कि अब शराबी भी | ___ तो ऐसा मत सोचना कि भगवान ही भक्त के हृदय तक आता प्रार्थना करने लगे हैं! है। जिस दिन भक्त राजी हो जाता है कि भगवान उसके हृदय में आ स्थिति एक थी। तर्क अलग हो गए। वे खबर लाए थे कि अलग जाए, उस दिन भक्त भी भगवान के हृदय में पहुंच जाता है। तो करो इसको आश्रम से। और गुरु ने कहा कि मैं जाऊंगा और | ऐसा ही नहीं है कि भक्त ही याद कर-करके भगवान को अपने स्वागत से उसे वापस लाऊंगा कि तूने तो गजब कर दिया। हम तो | हृदय में रखता है। शुरुआत भक्त को ऐसे ही करनी पड़ती है। जिस बिना शराब पीए भी कभी-कभी प्रार्थना करना भूल जाते हैं। बिना | दिन यह घटना घट जाती है...। शराब पीए कभी-कभी प्रार्थना करना भूल जाते हैं! तू तो हद कर कबीर ने कहा है कि बड़ी उलटी हालत हो गई है। हरि लागे दिया कि शराब पीए है, तो भी प्रार्थना करने गया है! तेरी याददाश्त, | पाछे फिरें, कहत कबीर कबीर। पहले हम चिल्लाते फिरते थे कि तेरा स्मरण शराब भी नहीं मिटा पाती! | हे प्रभु, कहां हो! और अब हालत ऐसी हो गई है कि हम कहीं भी स्थिति एक है, भाव अलग हैं, तो तर्क बदल जाते हैं। तर्क भाव | || भागे-हरि लागे पाछे फिरें, कहत कबीर कबीर-अब हरि के पीछे चलें, तो ही कोई परमात्मा की खोज में जा सकता है। अगर पीछे-पीछे भागते हैं और कहते हैं, कबीर! कबीर! कहां जाते हो 63
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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