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गीता दर्शन भाग-60
प्रेम में।
खोज; अपने अतीत में कभी कोई थोड़ी-सी झलक भी प्रेम की तुझे तैयार होता है। लेकिन जिसने प्रेम नहीं किया, वह मरने से बहुत मिली हो? उस आदमी ने कहा कि मैं आया हूं परमात्मा को खोजने | डरता है।
और तुम कहां की बातों में मुझे लगा रहे हो! सीधी रस्ता बता दो। प्रेमी मरने को हमेशा तैयार है। प्रेमी मजे से मर सकता है। प्रेमी तो रामानुज ने कहा कि फिर मुश्किल है। क्योंकि अगर तूने | को मरने में जरा भी भय नहीं है। तो अगर मजनू को मरना हो, तो थोड़ा-सा भी मिटना जाना होता किसी के भी प्रेम में, तो तुझे मर सकता है। फरिहाद को मरना हो, तो मर सकता है। कोई अड़चन थोड़ा-सा रस होता। थोड़ा-सा ही मिटना जाना होता किसी के भी | | नहीं है। क्या बात है? आखिर प्रेमी मरने से क्यों नहीं डरता?
जरूर प्रेमी ने कुछ जान लिया है, जो मृत्यु के आगे जाता है और छोटा-सा भी प्रेम करो, तो थोड़ा तो मिटना ही पड़ता है। चाहे | | मृत्यु जिसे नहीं मिटा पाती। इसलिए जिसके जीवन में प्रेम की एक स्त्री से प्रेम हो, एक पुरुष से प्रेम हो। एक छोटे-से बच्चे से | अनुभूति हुई, वह मरने से नहीं डरेगा। मरने से तो वे ही डरते हैं, भी प्रेम करो, तो थोड़ा तो मिटना ही होता है। अपने को थोड़ा तो | | जिन्होंने जाना ही नहीं कि मृत्यु के आगे कुछ और भी है। खोना ही होता है, तभी तो वह दूसरा आप में प्रवेश कर पाता है। | कृष्ण कहते हैं, जो मुझ में पूरी तरह मिटने को तैयार है, मिटने नहीं तो प्रवेश ही नहीं कर पाता।
को अर्थात मुझ में पूरी तरह मरने को तैयार है, उसे मैं मृत्यु-रूपी तो रामानुज ने कहा कि फिर मेरे वश के बाहर है तू। तेरी बीमारी संसार से ऊपर उठा लेता हूं। जरा कठिन है। अगर तूने किसी को प्रेम किया होता, तो मैं तुझे यह | वह तो जैसे ही कोई मिटने को तैयार होता है प्रेम में, वैसे ही बड़े प्रेम का मार्ग भी बता देता। क्योंकि तुझे थोड़ा स्वाद होता, तो | | मृत्यु के पार उठ जाता है। प्रेम मृत्यु पर विजय है। आपका क्षुद्र प्रेम तू समझ जाता कि मिटने का मतलब क्या है। तू कहता है, कभी | भी मृत्यु पर छोटी-सी विजय है। और अगर आपके जीवन में कोई तूने किया ही नहीं, तो तुझे मिटने का कोई अनुभव नहीं है। | भी प्रेम नहीं है, तो आप सिर्फ मरे हुए जी रहे हो। आपको जीवन
संसार के प्रेम भी परमात्मा के रास्ते पर सबक हैं। इसलिए संसार का कोई अनुभव ही नहीं है। के प्रेम से भी घबड़ाना मत। उस प्रेम के भी अनुभव को ले लेना। इसीलिए जीवन इतना तड़पता है प्रेम को पाने के लिए। जीवन
थोड़ा ही सही, क्षणभर को ही सही, क्षणभंगुर ही सही, की यह तड़प मृत्यु के ऊपर कोई अनुभव पाने की आकांक्षा है। यह थोड़ा-सा भी मिटने का अनुभव इतनी तो खबर दे जाएगा कि मिटने | तड़प इतनी जोर से है, कि प्रेम! कहीं से प्रेम! किसी को मैं प्रेम कर में दुख नहीं है, मिटने में सुख है। इतनी तो प्रतीति हो जाएगी कि | सकू और कोई मुझे प्रेम कर सके! यह असल में किसी भांति मैं मिटने में एक मजा है। क्षणभर सही; वह स्वाद क्षणभर रहा हो। जान सकू-एक क्षण ही सही-जो मृत्यु के बाहर है, अतीत है, एक बूंद ही मिली हो उसकी, लेकिन इतना तो समझ में आ जाएगा | पार है, अतिक्रमण कर गया हो मृत्यु का। कि मिटने में घबड़ाने की जरूरत नहीं है। मिटने में रस है, सुख है। तो प्रभु का प्रेम तो पूरा मिटा डालता है। प्रेमियों का प्रेम पूरा नहीं मिटने में मजा है, एक मस्ती है। तो फिर हम परमात्मा की तरफ | मिटाता है। क्षणभर को मिटाता है। कभी-कभी मिटाता है। क्षणभर मिटने की बात भी सीख सकते हैं।
बाद हम वापस अपनी जगह खड़े हो जाते हैं। द्वार-दरवाजे मिटते परमात्मा की तरफ तो पूरा मिटना होगा, रत्ती-रत्ती। कुछ भी | नहीं। जैसे हवा का तेज झोंका आता है, जरा-सा खुलते हैं और फिर बचना नहीं होगा। लेकिन जैसे ही हम मिटना शुरू हो जाते हैं कि बंद हो जाते हैं। जरा-सी झलक बाहर की रोशनी की, और द्वार फिर परमात्मा प्रवेश करने लगता है।
बंद हो जाते हैं। ऐसा साधारण प्रेम है। कृष्ण का यह कहना कि उन मेरे में चित्त को लगाने वाले प्रेमी लेकिन परमात्मा का प्रेम तो सारे द्वार-दरवाजे गिरा देने का है। भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्यु-रूप संसार समुद्र से उद्धार करने वाला | | सब जलाकर राख कर देने का है। अपने को उसमें ही खत्म कर देने हूं। इसमें दूसरा शब्द है मृत्यु-रूप संसार, जो सोचने जैसा है। का है। फिर जो अनभति होती है, वह अमत की है। ___ इस जगत में प्रेम के अतिरिक्त मृत्यु के बाहर का कोई अनुभव । इसलिए कृष्ण कहते हैं, मृत्यु के पार उद्धार करने वाला हूं। नहीं है। जिसने प्रेम को नहीं जाना, उसने सिर्फ मृत्यु को ही जाना इसलिए हे अर्जुन, तू मेरे में मन को लगा; मेरे में ही बुद्धि को लगा। है। इसलिए एक बड़ी मजेदार घटना घटती है कि प्रेमी मरने को | इसके उपरांत तू मुझ में ही निवास करेगा, मुझको ही प्राप्त होगा।