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* संदेह की आग
बहुत मजे की बात है। अगर हम दुनिया से दुख मिटा दें, तो सुख और अगर आप पोटलियां बांधकर प्रकाश को भीतर लाएंगे, तो मिट जाएंगे। अगर हम दुनिया से शत्रु मिटा दें, तो मित्र मिट | | पोटलियां भीतर आ जाएंगी, प्रकाश बाहर ही रह जाएगा। जाएंगे। अगर हम दुनिया से घृणा मिटा दें, तो प्रेम मिट जाएगा। प्रकाश को लाने का, भक्त कहता है, एक ही उपाय है कि मैं आप दूसरे को नहीं बचा सकते हैं; वह अनिवार्य जोड़ा है। वे एक अपने द्वार-दरवाजे खोल दूं। मैं कोई बाधा न डालूं। मैं किसी तरह साथ ही होते हैं।
का अवरोध खड़ा न करूं। तो प्रकाश तो अपने से आ जाएगा। इसी का प्रयोग है ध्यान, इसी का प्रयोग है प्रार्थना। एक को मिटा | | प्रकाश तो आ ही रहा है। मेरे ही कारण रुका है। दें, दूसरा अपने आप मिट जाएगा। उसकी फिक्र न करें। आप एक | | भक्त की साधना का भाव यह है कि परमात्मा तो प्रतिपल को मिटाने में लगें। फिर आपका रुझान है, जो आपको करना हो। | उपलब्ध है। मेरे ही कारण रुका है। उसे खोजने नहीं जाना है। मैं __ अपने को मिटाने की तैयारी हो, तो प्रार्थना में चल पड़ें। डर ही उसको जगह-जगह से दीवालें बनाकर रोके हूं कि मेरे भीतर नहीं लगता हो अपने को मिटाने में, तो फिर समस्त को मिटा दें, जो भी | आ पाता। मैं ही इतना होशियार, इतना कुशल, इतना चालाक हूं पर है। भाव से, विचार से, सब को हटा दें। फिर अकेले रह जाएं। | कि मैं उसको भी सम्हाल-सम्हालकर भीतर आने देता हूं। जहां तक दोनों से ही पहुंच जाएंगे वहां, जहां दोनों नहीं बचते हैं। | तो मैं उसे भीतर प्रवेश करने नहीं देता। चारों तरफ मैंने सरक्षा की अब हम सूत्र को लें।
दीवाल बना रखी है। भक्त कहता है, इस दीवाल को गिरा देना है। हे अर्जुन, उन मेरे में चित्त को लगाने वाले प्रेमी भक्तों का मैं | तो कृष्ण कह रहे हैं कि जैसे ही कोई अपने चारों तरफ की शीघ्र ही मृत्यु-रूप संसार समुद्र से उद्धार करने वाला होता हूं। | अस्मिता की, अहंकार की दीवाल को गिरा देता है, मैं तत्क्षण इसलिए हे अर्जुन, तू मेरे में मन को लगा, और मेरे में ही बुद्धि को | | उसका उद्धार करने में लग जाता हूं। क्योंकि प्रकाश भीतर प्रवेश लगा। इसके उपरांत तू मेरे में ही निवास करेगा अर्थात मेरे को ही | | करने लगता है। और उस प्रकाश की किरणें आकर आपको प्राप्त होगा. इसमें कछ भी संशय नहीं है।
रूपांतरित करने लगती हैं। और जब आपको मिटने में मजा आ मुझ में चित्त लगाने वाले प्रेमी भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्यु-रूपी | | जाता है, तो फिर मिटने में दिक्कत नहीं रहती। समुद्र से उद्धार करने वाला होता हूँ!
पहले ही चरण की कठिनाई है। हमें लगता है कि अगर मिट गए जैसा मैंने कहा, प्रार्थना के मार्ग पर स्वयं को मिटाना शुरू करना तो! कहीं मिट न जाएं। तो डरे हुए हैं। एक दफा आपको मिटने का होता है। तो वह जो तू है, प्रार्थना के साधक के लिए परमात्मा जो जरा-सा भी मजा आ जाए, जरा-सा भी स्वाद आ जाए, तो आप है, भगवान जो है, जो भी उसकी धारणा है परम सत्ता की, वह कहेंगे कि अब, अब बचना नहीं है, अब मिटना है। अपने को गलाता है, मिटाता है, उसके चरणों में समर्पित करता है। रामानुज के पास एक आदमी आया। और उस आदमी ने कहा
और जैसे-जैसे वह अपने को गलाता है, मिटाता है, वैसे-वैसे | | कि तुम जैसे आनंद में डूब गए हो, मुझे भी डुबा दो। मुझे परमात्मा परमात्मा शक्तिशाली होता जाता है।
| की बड़ी तलाश है। मुझे भी सिखाओ यह परमात्मा का प्रेम। तो परमात्मा की शक्ति का अर्थ ही यह है कि मैं अब कोई बाधा रामानुज ने कहा कि तूने कभी किसी को प्रेम किया है ? उस आदमी नहीं डाल रहा हूं। मैं अपने को मिटा रहा हूं। अब मैं कोई अड़चन | ने कहा कि मैं हमेशा परमात्मा की खोज करता रहा और प्रेम वगैरह खड़ी नहीं कर रहा हूं। मैं अपने को हटा रहा हूं। मैं रास्ते से मिट | | से मैं हमेशा दूर रहा। इस झंझट में मैं पड़ा नहीं। रहा हूं। और मैं उसे कह रहा हूं कि अब तू जो भी करना चाहे, कर। | रामानुज ने कहा कि फिर भी तू सोच। थोड़ा-बहुत, किसी को __ ऐसा समझें कि आप द्वार-दरवाजे बंद करके अपने घर में बैठे | | भी कभी प्रेम किया हो—किसी मित्र को, किसी स्त्री को, किसी हैं। बाहर सूरज निकला है। सारा जगत आलोक से भरा है। और | बच्चे को, किसी पशु को, पक्षी को किसी को कभी थोड़ा प्रेम आप अपने द्वार-दरवाजे बंद करके घर के अंदर अंधेरे में बैठे हैं। | | किया हो। उसने कहा कि मैं संसार की झंझट में नहीं पड़ता। मैं तो
भक्त कहता है कि प्रकाश को तो भीतर लाना मुश्किल है। अपने को रोके हुए हूं। परमात्मा को प्रेम करना है। आप मुझे रास्ता क्योंकि मेरी सामर्थ्य क्या? उस सूरज के प्रकाश को मैं भीतर लाऊंगा | बताओ। ये बातें आप क्यों पूछ रहे हो! भी कैसे? कोई पोटलियां बांधकर उसे लाया भी नहीं जा सकता। | रामानुज ने तीसरी बार पूछा कि मैं तुझसे फिर पूछता हूं। थोड़ा
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