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0 गीता दर्शन भाग-600
जाऊं और वह दूसरा ही सिर्फ शेष रह जाए। मुझे मेरी कोई खबर है, तो ध्यान रहे, मुझे उस तू का पता तभी तक होगा, जब तक मुझे न रहे। मैं मिट जाऊं। मैं बचं न। मैं ऐसा पंछ जाऊं. जैसे कहीं था सक्ष्म में मेरा भी पता चल रहा है। नहीं तो त का पता नहीं होगा। ही नहीं। जैसे पानी पर खींची लकीर मिट जाती है, ऐसे मैं मिटत कहिएगा कैसे उसे? किसके खिलाफ? किसके विरोध में? अगर जाऊं; और दूसरा रह जाए। और दूसरा ही रह जाए। बस, दूसरे का सफेद लकीर दिखाई पड़ती है, तो काली पृष्ठभूमि चाहिए। ही मुझे पता हो। दूसरे की ही प्रतीति मुझे हो कि वह है, और मैं न अगर मैं बिलकुल ही मिट गया हूं, तो तू कैसे बचेगा? थोड़ा रहूं। तू बचे और मैं खो जाए। यह तो प्रेम की प्रक्रिया है। प्रार्थना मुझे बचना चाहिए, थोड़ा; तो मुझे तू का पता चलेगा। मैं होना का यही रूप है।
चाहिए। मैं को ही तो पता चलेगा कि तू है। तो मैं को भुला सकता ध्यान की प्रक्रिया बिलकुल उलटी है। ध्यान की प्रक्रिया है कि हूं, लेकिन मिट नहीं सकता। अगर मैं बिलकुल मिट जाऊंगा, जिस सारा जगत खो जाए और मैं ही बचूं। सब खो जाए मेरे चित्त से। क्षण मेरा मैं बिलकुल तिरोहित हो जाएगा, उसी क्षण तू भी खो जिन्हें मैं प्रेम करता हूं, वे भूल जाएं। जिन्हें मैंने चाहा है, वे भूल | जाएगा। एक बचेगा, जो न मैं है और न तू। जाएं। ईश्वर भी मेरे खयाल में न रह जाए। दूसरा न बचे। दूसरे का | और ठीक ऐसा ही घटेगा ध्यान के मार्ग पर। जब मैं बिलकल कोई बोध ही न बचे। दि अदर, वह जो दूसरा है, उसको मैं पोंछ | | अकेला मैं बचूंगा, तब भी मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं हूं? मेरे होने डालूं, बिलकुल समाप्त कर दूं। वह रहे ही न। बस, एक मैं ही रह | | का बोध भी दूसरे के बोध के कारण होता है। दूसरा चाहिए परिधि जाऊं, अकेला। कोई विचार न हो; कोई भाव न हो; कोई विषय न | | पर, तभी मुझे पता लगता है कि मैं हूं। और जब दूसरा बिलकुल हो। कुछ भी न बचे। खाली, अकेला मैं बचूं; सारा संसार खो | खो गया, पूरा संसार खो गया, तो मैं भी नहीं बच सकता। मैं भी जाए। यह ध्यान की प्रक्रिया है।
| उस संसार का एक हिस्सा था। मैं भी उसी संसार के साथ खो तू बिलकुल मिट जाए और शुद्ध मैं बचे-यह ध्यान है। मैं | | जाऊंगा। जैसे ही तू पूरा मिट जाता है, मैं भी तिरोहित हो जाता हूं। बिलकुल मिट जाऊं, शुद्ध तू बचे—यह प्रेम है। ये बिलकुल उलटे | | और जो बचता है, वह न मैं है, न तू है। चलते हैं। इसलिए रास्ता बिलकुल अलग-अलग है।
ये मार्ग विपरीत हैं। इन मार्गों से जहां पहुंचा जाता है, वह एक इसलिए ध्यानी मजाक उड़ाएगा प्रेमी की, कि क्या पागलपन में ही है। और अब आप समझ सकते हैं कि दोनों तरफ से पहुंचा जा पड़ा है! दूसरे को छोड़, क्योंकि दूसरा बंधन है। और प्रेमी मजाक | | सकता है। दो में से एक को मिटा दो, दूसरा अपने आप मिट जाता उड़ाएगा ध्यानी की, कि क्या कर रहे हो! खुद को बचा रहे हो? यह है। अब आप किसको चुनते हैं मिटाना, यह व्यक्ति की निजी रुझान खुद का बचाना ही तो उपद्रव है। खुद को मिटाना है। यह मैं ही तो | | पर है। रोग है। और तुम इसी को बचा रहे हो! इसको समर्पित कर दो। तू। दो में से एक को मिटा देने की कला है। दूसरा मिटेगा, क्योंकि के चरणों में डाल दो।
दूसरा उस एक का ही अनिवार्य हिस्सा था। अगर हम दुनिया से तो प्रेमी और ध्यानी मार्ग पर जब होते हैं, तब एक-दूसरे को | प्रकाश को मिटा दें, तो अंधेरा मिट जाएगा। लगेगा मुश्किल है। समझ भी नहीं पाते। एक-दूसरे को गलत ही समझेंगे। क्योंकि | क्योंकि घर में आप दीया बुझा देते हैं, अंधेरा तो नहीं मिटता। अंधेरा उलटे जा रहे हो! इससे तो और भटक जाओगे। लेकिन जब दोनों और प्रकट हो जाता है। लेकिन दुनिया से नहीं मिट रहा है प्रकाश। पहुंच जाते हैं बिंदु पर, तो बड़ी अदभुत घटना घटती है। अस्तित्व से अगर प्रकाश मिट जाए, तो अंधेरा मिट जाएगा। अगर
वह अदभुत घटना यह है कि चाहे मैं तू को मिटाकर चलूं और अंधेरा मिट जाए, तो प्रकाश मिट जाएगा। मैं को बचाऊ-ध्यान का मार्ग; या मैं मैं को मिटाऊं और तू को अगर दुनिया से हम मृत्यु को मिटा दें, तो जीवन उसी दिन मिट बचाऊ-प्रार्थना का मार्ग; जिस क्षण मैं मिट जाता है, उस क्षण तू जाएगा। अभी हमको उलटा लगता है। अभी तो हमको लगता है नहीं बच सकता। और जिस क्षण तू मिट जाता है, उस दिन मैं नहीं | | कि मृत्यु जीवन को मिटाती है। आपको पता नहीं है फिर। वे एक बच सकता। क्योंकि दोनों साथ-साथ बचते है
ही चीज के दो हिस्से हैं। अगर मृत्यु न हों, तो जीवन नहीं हो इसे थोड़ा समझ लें। यह आखिरी बिंदु की बात है। | सकता। और जीवन न हो, तब तो मृत्यु होगी ही कैसे? एक चीज जब मैं अपने मैं को मिटाता चला जाता हूं और सिर्फ तू ही बचता को मिटा दें, दूसरी तत्क्षण मिट जाएगी।