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________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 है। यह तब तक हटाता जाता है, जब तक मौत आकर इसको काट बैलेंस को बढ़ा पाएंगे। ही नहीं डालती। और कह देती है कि अब हटाने की कोई जगह न __ और भी एक आंख है। उसी आंख को कृष्ण श्रद्धा कह रहे हैं। बची, समय समाप्त हो गया। | उसी आंख को बुद्ध ध्यान कहते हैं। उसी आंख को मीरा कीर्तन यह जो हमारी क्षुद्र में उलझी हुई चित्त की दशा है, इसके कारण | कहती है, भजन कहती है, प्रार्थना कहती है। उसका प्रमाण नहीं मिलता। क्षुद्र में जब चित्त लगा होगा, तो क्षुद्र | ___ एक और कान है—मौन का, चुप हो जाने का। जब बाहर की का ही प्रमाण मिलता है। | सब आवाजें छोड़ दी जाती हैं, तो भीतर की सतत ध्वनि सुनाई पड़ने क्षुद्र से थोड़ा हटें भीतर की तरफ, और विराट को थोड़ा मौका | | लगती है। दें। उसकी आवाज आपको सुनाई पड़ सके, इसलिए थोड़ा चुप हों। नाद भीतर बज रहा है, पर आप खाली नहीं हैं, आप उन्मुख नहीं अपनी आवाज थोड़ी बंद करें। क्योंकि उसकी आवाज बहुत धीमी हैं। आप उस नाद की तरफ बेमुख हैं, पीठ किए खड़े हैं। वहां सतत है। और अपनी दौड़-धूप जरा रोकें और थोड़ा रुकें; ठहरें। क्योंकि धीमी-धीमी चोट पड़ रही है। वहां कोई निरंतर तारों को छेड़ रहा ठहरेंगे, तो उसका पता चलेगा, जो भीतर सदा से ठहरा हुआ है। है। और आप कहते हैं, प्रमाण कहां है? जब तक आप दौड़ रहे हैं, तब तक भीतर जो ठहरा हुआ है, उससे हमारी हालत ऐसी है, मैंने सुना है कि एक संगीतज्ञ अपनी पत्नी संबंध नहीं हो पाता। थोड़े रुक जाएं। के साथ एक चर्च के पास से गुजरता था। और सांझ को चर्च की परमात्मा को खोजने के लिए कोई दौड़ने की जरूरत नहीं है। | घंटियां बज रही थीं। बड़ी प्यारी और मधुर थीं। और सांझ के सन्नाटे संसार खोजना हो, तो दौड़ना पड़ता है। परमात्मा को खोजना हो, में, जब रास्ता सुनसान हो गया था और चर्च के वृक्षों के पक्षी भी तो रुकना पड़ता है। परमात्मा को खोजने के लिए कोई शोरगुल | आकर शांति से सो गए थे, सांझ के उस सन्नाटे में उन घंटियों का मचाने की जरूरत नहीं है। उसे खोजना हो, तो चुप और मौन होने | बजना उस संगीतज्ञ के हृदय में लहरें लेने लगा। की जरूरत है। तो प्रमाण मिलना शुरू हो जाएगा। उसने अपनी पत्नी से कहा-धीमे से कहा; संगीतज्ञ था, जोर और कोई दूसरा आपको प्रमाण नहीं दे सकता। आप ही अपने से बोलने में उसे लगा होगा, हिंसा होगी; इतनी मधुर आवाज में को प्रमाण दे सकेंगे। अपनी प्यास को समझें और अपने भीतर बाधा पड़ेगी-उसने धीरे से कहा, सुनती हो; कितनी प्यारी झांकने की कला सीखें। प्रमाण बहुलता से है। उसी-उसी का प्रमाण | आवाज है! घंटियां कितनी मधुर हैं! है। लेकिन देखने वाली आंखें और सुनने वाले कान चाहिए। उसकी पत्नी ने क्या कहा पता है! उसने कहा, ये चर्च के मूरख जीसस ने बार-बार कहा है, अगर आंखें हों, तो देख लो; अगर | लोग घंटा बजाना बंद करें, तो तुम्हारी बात सुन सकूँ कि तुम क्या कान हों, तो सुन लो। अगर समझ हो, तो समझ लो। कह रहे हो! जिनसे कहा है, वे आप ही जैसे कान वाले थे, आंख वाले थे, संगीतज्ञ ने दुबारा नहीं कहा होगा उससे; अब कुछ कहने का समझ वाले थे। यह जीसस की बात ठीक नहीं मालूम पड़ती। यह उपाय नहीं रहा। बाहर घंटा बज रहा है, उसमें शोरगुल भी सुनाई आंख वाले लोगों से ऐसा कहना कि आंख हो तो देख लो, कान पड़ सकता है और संगीत भी। अगर संगीत को पकड़ने वाला हृदय हो तो सुन लो, समझ हो तो समझ लो, अपमानजनक मालूम पड़ता | | है, तो संगीत सुनाई पड़ सकता है। है। क्योंकि इतने अंधे, इतने बहरे, इतने बुद्धिहीन कहां खोजे होंगे! | नहीं तो मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन एक शास्त्रीय संगीतज्ञ क्योंकि जिंदगीभर जीसस यही कहते हैं। को सुनने चला गया था। थोड़ी ही देर में मुल्ला की पत्नी ने देखा वे किन्हीं और आंखों की बात कर रहे हैं। इन आंखों से आप कि मुल्ला बहुत बेचैन हो रहा है, करवट बदल रहा है अपनी कुर्सी परमात्मा का प्रमाण न पा सकेंगे। इन आंखों से पदार्थ का ही | पर। उसकी पत्नी ने कहा, तुम इतने परेशान क्यों हो रहे हो? उसके प्रमाण मिलेगा। इन कानों से आप उसकी आवाज न सुन सकेंगे। | माथे पर पसीना भी बह रहा है। इन कानों से तो आपको जगत का शोरगल ही सनाई पड़ेगा। इस | उसने कहा कि मैं इसलिए परेशान हो रहा है, क्योंकि यह आदमी बुद्धि से आप उसको न समझ पाएंगे। इस बुद्धि से तो आप | जैसी आवाजें कर रहा है, ऐसे ही अपना बकरा भी आवाजें करके हिसाब-किताब की दुनिया में ही, रुपए-पैसे की दुनिया में ही, बैंक मर गया था। इसकी हालत खराब है। यह सन्निपात में मालूम होता 58
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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