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संदेह की आग
जाता है। लेकिन प्रमाण मत खोजना आप। प्रमाण कोई है नहीं। दाने-दाने पर उसका हस्ताक्षर है। लेकिन वह है अस्तित्व की भाषा,
और या फिर हर चीज प्रमाण है। फिर ऐसी कौन-सी चीज है, जो | एक्झिस्टेंस की। उसका प्रमाण नहीं है? फिर चारों तरफ आंखें डालें। आकाश में आपको अपने ही अस्तित्व का कोई पता नहीं है। आप ऐसे जीए
सूरज का उगना, और रात आकाश में तारों का भर जाना, और एक | चले जाते हैं कि पक्का करना मुश्किल है कि आप जी रहे हैं, कि बीज का फूटकर वृक्ष बनना, और एक झरने का सागर की तरफ | मर गए हैं, कि...। बहना, और एक पक्षी के कंठ से गीत का निकलना। एक बच्चे की ___ मैंने सुना है कि अनेक लोगों को तो तभी पता चलता है कि वे आंखों में झांकें; और एक काई जमे हुए पत्थर को देखें; और सागर | जिंदा थे, जब वे मर जाते हैं। मरकर उनको पता चलता है कि अरे! के किनारे की रेत को, और सागर की लहरों को-तो फिर हर जगह | यह क्या हो गया? मर गए! उसका प्रमाण है। फिर वही वही है।
जिंदगी का ही हमें कोई खयाल नहीं आ पाता। अस्तित्व भीतर एक दफा खयाल में आ जाए कि वह है, तो फिर सब जगह | | बहा चला जाता है और हम चीजें बटोरने में, फर्नीचर इकट्ठा करने उसका प्रमाण है। और जब तक उसका खयाल न आए, तब तक | में, मकान बनाने में, क्षुद्र में व्यस्त होते हैं। वह क्षुद्र की व्यस्तता उसका कोई प्रमाण नहीं है।
इतनी ज्यादा है कि यह भीतर की जो धारा बह रही है, इसका हमें और कहां आएगा उसका खयाल? पहले सागर में नहीं आएगा। अवसर ही नहीं मिलता, मौका ही नहीं मिलता है। पहले फूलों में नहीं आएगा। पहले आकाश के तारों में नहीं ___ मेरे पास लोग आते हैं। एक बूढ़े मित्र, एक कालेज के प्रिंसिपल
आएगा। पहले तो अपने में ही लाना पड़ेगा उसका खयाल। क्योंकि हैं, वे कुछ दिन पहले मेरे पास आए। कम से कम साठ के करीब मैं ही अपने निकटतम हूं। अगर वहां भी उसकी भनक मुझे नहीं उम्र हो गई होगी। वे कहने लगे कि अब तो ऊब गया संसार से। सुनाई पड़ती, तो पत्थर में कैसे सुनाई पड़ेगी!
अब तो मेरा मन परमात्मा की तरफ लगा दें। तो मैंने उनसे कहा, __ अब लोग मजेदार हैं। लोग मूर्तियों के सामने सिर टेक रहे हैं। | अगर सच में ही ऊब गए हों, तो एक छलांग लें। अब सारा जीवन वे मर्तियां उनके लिए भगवान कैसे हो पाएंगी? वे कितना ही मानें | ध्यानपर्ण करने में लग जाएं। कि भगवान हैं, वे हो न पाएंगी। क्योंकि जिनको अपने भीतर के __उन्होंने कहा, सारा जीवन ! घंटा, आधा घंटा रोज दे सकता हूं।
चैतन्य में भी भगवत्ता का कोई स्पर्श नहीं हुआ, उनको पत्थर में | | क्योंकि अभी नौकरी जारी रखी है। वैसे तो कोई जरूरत नहीं है अब छिपी भगवत्ता बहुत दूर है। वहां भी है; पर फासला बहुत ज्यादा | | नौकरी की। सब है। लेकिन वक्त-बेवक्त कब जरूरत पड़ जाए, है। और पत्थर की भाषा अलग है; आदमी की भाषा अलग है। । | इसलिए! ऐसे तो सब लड़के कामकाज में लग गए हैं। लड़कियों की
आदमी में भगवान नहीं दिखता और पत्थर में दिखता है! | शादी हो गई है। लेकिन प्रतिष्ठा है, बंगला है, कार है, तो उस सब आदमी—जिसको हम समझ सकते हैं, छू सकते हैं, जिसके भीतर | को तो सम्हालना पड़ता है। तो ऐसी कुछ तरकीब बताएं कि आधा उतर सकते हैं, जिसकी चेतना का संस्पर्श हो सकता है-उसमें घंटा रोज ध्यान कर लूं। और दो साल बाद, पक्का आपको विश्वास दिखाई नहीं पड़ता, और पत्थर में दिखाई पड़ जाता है! तो आप दिलाता हूं कि दो साल बाद पूरा जीवन ध्यान में लगा दूंगा। अपने को धोखा दे रहे होंगे। क्योंकि पत्थर तो बहुत दूर है; अभी । मैंने कहा, माना। मुझे तो आप विश्वास दिलाते हैं, दो साल आदमी में तो दिखाई पड़े, तो फिर किसी दिन पत्थर में भी दिखाई। बाद। दो साल बाद आप बचेंगे, इसका कोई पक्का भरोसा है! और पड़ सकता है। और फिर तो ऐसा हो जाता है कि ऐसी कोई चीज | | कहते हैं कि संसार से मन ऊब गया, लेकिन बंगले की प्रतिष्ठा है, नहीं दिखाई पड़ती, जिसमें वह न हो। फिर तो सारा जगत उसका | वह नहीं छोड़ी जाती! और कहते हैं कि अब संसार में कुछ प्रमाण है।
लेना-देना नहीं रहा, लेकिन नौकरी को खींचे जा रहे हैं जबरदस्ती! तो दो बातें हैं, या तो उसका कोई प्रमाण नहीं है। अगर आप क्या है, कठिनाई क्या है आदमी की? और दो साल बाद टाल रहे किताबों, शब्दों, तर्कों में सोचें, उसका कोई प्रमाण नहीं है। और | | हैं, कि दो साल बाद। दो साल बाद भी पक्का मानिए, अगर वे बचे या अगर अस्तित्व में सोचें, तो सभी कुछ उसका प्रमाण है। फिर रहे, तो वे और आगे सरका देंगे बात को। क्योंकि यह सरकाने वाला ऐसी कोई चीज नहीं है, जहां उसका हस्ताक्षर न हो। रेत के मन दो साल बाद भी तो साथ ही रहेगा। यह पोस्टपोन करता जाता
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