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00 गीता दर्शन भाग-60
लेकिन बुद्ध की बात सुनकर श्रद्धा नहीं आती।
पर गोली का निशान है। गोली लकड़ी को आर-पार करके निकल बुद्ध के भीतर जो है, उसका हमें पता नहीं। बाहर जो है, हमें गई है। और एकाध मामला नहीं है; डेढ़ सौ निशान हैं! पता है। तो एक बड़ी उलटी प्रक्रिया शुरू होती है कि हम सोचते हैं, उसे लगा कि कोई मुझ से भी बड़ा निशानेबाज पैदा हो गया। जिस भांति बुद्ध बैठे हैं, हम भी बैठ जाएं, तो शायद जो भीतर घटा | | पास से निकलते एक राहगीर से उसने पूछा कि भाई, यह कौन है, वह हमें भी घट जाएगा। तो महावीर जैसा चलते हैं, हम भी आदमी है? किसने ये निशान लगाए हैं? किसने ये गोलियां चलाई चलने लगे। महावीर ने वस्त्र छोड़ दिए, तो हम भी वस्त्र छोड़ दें। | हैं? इसकी मुझे कुछ खबर दो। मैं इसके दर्शन करना चाहूंगा!
तो अनेक लोग महावीर को देखकर नग्न खड़े हो गए हैं। वे | | उस ग्रामीण ने कहा कि ज्यादा चिंता मत करो। गांव का जो चमार सिर्फ नंगे हैं; दिगंबर नहीं हैं। क्योंकि महावीर की नग्नता के पहले | है, उसका लड़का है। जरा दिमाग उसका खराब है। नट-बोल्ट भीतर एक आकाश उत्पन्न हो गया है। उस आकाश में वस्त्र छोड़ थोड़े ढीले हैं! दिए हैं। इनके भीतर वह आकाश उत्पन्न नहीं हुआ। इन्होंने सिर्फ उस सेनापति ने कहा, मुझे उसके दिमाग की फिक्र नहीं है। जो वस्त्र छोड़ दिए हैं। इनकी देह भर नंगी हो गई है।
आदमी डेढ़ सौ निशाने लगा सकता है इस अचूक ढंग से, वर्तुल महावीर चींटी भी हो. तो पांव फंक-फंककर रखते हैं। इसलिए | | के ठीक मध्य में, उसके दिमाग की मुझे चिंता नहीं। वह महानतम नहीं कि उन्हें डर है कि कहीं चींटी मर न जाए। उनके पीछे चलने | | निशानेबाज है। मैं उसके दर्शन करना चाहता हूं। . वाला भी पांव फूंक-फूंककर रखने लगता है कि कहीं चींटी मर न | उस ग्रामीण ने कहा कि थोड़ा समझ लो पहले। वह गोली पहले जाए। लेकिन इसे अपनी ही आत्मा का पता नहीं है, इसे चींटी की | | मार देता है, चाक का निशान बाद में बनाता है। ' आत्मा का पता कैसे हो सकता है! इसे अपने ही भीतर के जीवन | __करीब-करीब धर्म के इतिहास में ऐसा हुआ है। हम सब गोली का कोई अनुभव नहीं है, चींटी के जीवन का अनुभव कैसे हो | | पहले मार रहे हैं, चाक का निशान बाद में बना रहे हैं! लेकिन सकता है! इसकी अहिंसा थोथी, उथली, ऊपर-ऊपर हो जाती है। | | राहगीर को तो यही दिखाई पड़ेगा कि गजब हो गया। जिसे पता ऊपर से आचरण हो जाता है। भीतर का अंतस वैसा का वैसा बना | | नहीं, उसे तो दिखाई पड़ेगा कि गजब हो गया। रहता है।
जिंदगी बाहर से भीतर की तरफ उलटी नहीं चलती है। जिंदगी भीतर अंतस बदले, तो ही बाहर जो क्रांति घटित होती है; वह | की धारा भीतर से बाहर की तरफ है; वही सम्यक धारा है। गंगोत्री वास्तविक होती है। लेकिन यह भूल होती रही है।
भीतर है। गंगा बहती है सागर की तरफ। हम सागर से गंगोत्री की मैंने सुना है, एक यहूदी फकीर हुआ, बालशेम। थोड़े से जमीन | तरफ बहाने की कोशिश में लगे रहते हैं। पर हुए कीमती फकीरों में एक। बालशेम से किसी ने पूछा कि तुम अगर आपके भीतर संदेह है, तो घबड़ाएं मत। संदेह की गंगा जब भी बोलते हो, तो तुम ऐसी चोट करने वाली मौजू कहानी कह | को सागर तक पहुंचने दें। और रुकावट मत डालें। आज नहीं कल देते हो। कहां से खोज लेते हो ये कहानियां? तो बालशेम ने कहा, आप पाएंगे कि संदेह ही आपको समर्पण तक ले आया। इससे एक कहानी से समझाता हूं।
उलटा कभी भी नहीं हुआ है। और बालशेम ने कहा कि एक सेनापति एक छोटे गांव से | सभी संदेह करने वाले, सम्यक संदेह करने वाले, राइट डाउट गुजरता था। बड़ा कुशल निशानेबाज था। उस जमाने में उस जैसा | करने वाले लोग समर्पण पर पहुंच गए हैं। अश्रद्धा ही श्रद्धा का द्वार निशानेबाज कोई भी न था। सौ में सौ निशाने उसके लगते थे।। बन जाती है। मगर पूरी अश्रद्धा। अनास्था ईमानदार, प्रामाणिक अचानक उसने देखा गांव से गुजरते वक्त अपने घोड़े पर, एक अनास्था आस्था की जननी है। बगीचे की चारदीवारी पर, लकड़ी की चारदीवारी, फेंसिंग, उसमें | थोपें मत। ऊपर-ऊपर से थोपें मत। ऊपर की चिंता मत करें। कम से कम डेढ़ सौ गोली के निशान हैं। और हर निशान चाक के | | मत पूछे कि मन अनास्था से भरा है, तो कैसे प्रार्थना करें। अनास्था एक गोल घेरे के ठीक बीच केंद्र पर है। डेढ सौ।
| से पूरा भर जाने दें। और मैं आपको कहता हूं कि प्रार्थना का बीज सेनापति चकित हो गया। इतना बड़ा निशानेबाज इस छोटे गांव | | आपके भीतर छिपा है। अनास्था को पूरी तरह बढ़ने दें। यह में कहां छिपा है। और जो चाक का गोल घेरा है. ठीक उसके केंद्र अनास्था ही उस बीज के लिए भूमि बन जाएगी। प्रार्थना का अंकुर