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o संदेह की आग
कब छोड़ दिया। हवा का एक हलका-सा झोंका काफी हो जाता है। कहीं मन का कोई कोना कहेगा, काश! मीरा का ईश्वर सच होता,
लेकिन कच्चे पत्ते को तोड़ना, वृक्ष में भी घाव छूटता है और कच्चे | तो हम भी नाच सकते थे। पत्ते की भी नस-नस तन जाती है। कच्चे पत्ते का टूटना दुर्घटना है। नाचना आप चाहते हैं; आनंदित आप होना चाहते हैं। ऐसा पके पत्ते का गिरना एक सुखद, शांत, नैसर्गिक बात है। आदमी खोजना मुश्किल है, जिसकी आनंद की आकांक्षा न हो।
आप जहां से भी हटें, पके पत्ते होकर हटना। कच्चे पत्ते की तरह और संदेह से आनंद मिलता नहीं। अश्रद्धा से आनंद मिलता नहीं। मत टूट जाना, नहीं तो घाव रह जाएंगे। और पके पत्ते का जो सौंदर्य | अनास्था से आनंद मिलता नहीं। और आनंद की आकांक्षा है, और है, उससे आप वंचित रह जाएंगे।
बुद्धि संदेह खड़े कर देती है। जहां आनंद मिल सकता है, वहां बुद्धि डरें मत। अभी संदेह है, तो संदेह को पकने दें। और किसी की | सवाल खड़ा कर देती है। और हृदय मांगता है आनंद। और बुद्धि मत सुनना। क्योंकि चारों तरफ सुनाने वाले लोग बहुत हैं। चारों | आनंद दे नहीं सकती। इस दुविधा में प्राण उलझ जाते हैं। तरफ आपको सधारने वाले लोग बहत हैं। उनसे सावधान रहना।। तो आप भी नकली नाच नाच सकते हैं। आप भी मजीरा उठाकर चारों तरफ आपको बनाने वाले लोग बहुत हैं, उनसे जरा बचना। | नाच सकते हैं। लेकिन वह ऊपर-ऊपर होगा। क्योंकि मीरा के नाच अपनी जीवन-धारा को मौका देना कि वह स्वभावतः जो भी चाहती में मीरा के पांव असली काम नहीं कर रहे हैं, मीरा की श्रद्धा असली है, उसके पूरे अनुभव से गुजर जाए। नहीं तो बड़ा उपद्रव होता है। काम कर रही है। मीरा से अच्छी नर्तकियां होंगी, जो ज्यादा अच्छा पूरे इतिहास में यह उपद्रव हुआ है।
नाच लेंगी। लेकिन मीरा के नाच का गुण और है। कितनी ही बड़ी हमारी तकलीफ क्या है? जिस मित्र ने पूछा है, संदेह मन में कोई नर्तकी और नर्तक हो, मीरा के नाच में जो बात है, वह उसके होगा, प्रार्थना का लोभ भी नहीं छूटता। क्योंकि हमने देखा है उन नाच में नहीं हो सकती। मीरा के पैर अनगढ़ होंगे। ताल न हो; लय लोगों को, जो प्रार्थना में आनंदित हैं। तकलीफ कहां खड़ी होती है ? | न हो; संगीत का अनुभव न हो; लेकिन कुछ और है, जो संगीत
मीरा नाच रही है। आपको लगता है कि काश, मैं भी ऐसा नाच | से भी बड़ा है। और कुछ और है, जो व्यवस्था से भी बड़ा है। और सकता! यह नाच संक्रामक है। यह आपके हृदय में भी पुलक | कुछ इतना गहन उतर गया है भीतर कि उसके उतरने के कारण नाच जगाता है; प्रलोभन पैदा करता है। यह मीरा की मुस्कुराहट, यह | हो रहा है। इस नाच के पीछे कुछ अलौकिक खड़ा है। उसकी आंखों की ज्योति, यह उसके चेहरे से बरसती हुई अमृत की ___ वह अलौकिक की श्रद्धा न हो, तो नाच तो आप भी सकते हैं, धारा, यह आपको भी लगती है कि मेरे जीवन में भी हो। लेकिन आपकी आत्मा में आनंद पैदा नहीं होगा। नाच बाहर-बाहर
लेकिन मीरा कहती है कि मैं कृष्ण को देखकर नाच रही हूं। | रह जाएगा। आप भीतर खाली के खाली, रिक्त, उदास, वैसे के भीतर संदेह खड़ा हो जाता है। कृष्ण आपको कहीं दिखाई नहीं | वैसे रह जाएंगे। पड़ते। मीरा पागल मालूम पड़ती है। यह कृष्ण पर भरोसा करना | मीरा की श्रद्धा ही केंद्र है। आप संदेह के केंद्र पर नाच सकते हैं, मुश्किल है।
| लेकिन मीरा के सुख की अनुभूति आपको नहीं होगी। मीरा जिसके लिए नाच रही है, उस पर भरोसा करना मुश्किल और बड़ी कठिनाई इससे खड़ी होती है कि जाग्रत पुरुषों का भी है; और मीरा के नाच से बचना भी मुश्किल है। इससे तकलीफ बाहर का जीवन ही हमें दिखाई पड़ता है। उनके भीतर का तो हमें खड़ी होती है। लगता है, काश, हम भी ऐसा नाच सकते! लेकिन कुछ पता नहीं है। जिस कारण मीरा नाच रही है, उसके लिए तर्कयुक्त प्रमाण नहीं हम महावीर को देखते हैं। उनकी शांत मुद्रा दिखाई पड़ती है। मिलते। किस ईश्वर के लिए नाच रही है, वह ईश्वर कहीं दिखाई | उनकी आंखों का मौन दिखाई पड़ता है। मन प्रलोभन से भर जाता नहीं पड़ता। हजार शंकाएं बुद्धि खड़ी करती है।
है। काश, ऐसा हमें भी हो सके! फिर महावीर की बात सुनते हैं, - तो हम कहते हैं, कोई ईश्वर वगैरह नहीं है। तो फिर मीरा पागल | | उस पर श्रद्धा नहीं आती। है, दिमाग इसका खराब है, ऐसा कहकर अपने को समझा लेते हैं। बुद्ध को देखते हैं। उनके आस-पास जो हवा बहती है शांति की, फिर भी वह मीरा की धुन, वह नाच पीछा करता है। वह आपके - वह हमें भी छूती है। उनके पास पहुंचकर जो स्नान हो जाता है, कि सपनों में आपके साथ जाएगा। आप उठेंगे और बैठेंगे और लगेगा, पोर-पोर जैसे किसी ताजगी से भर गए, वह हमें भी प्रतीत होता है।
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