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गीता दर्शन भाग-6
जब तक आपको यह दिखाई न पड़ जाए कि आपकी शंका आपकी ही शत्रु है, तब तक, तब तक आप प्रार्थना की यात्रा पर नहीं निकल सकते हैं। मेरे कहने से आप नहीं निकलेंगे। किसी के कहने से आप नहीं निकलेंगे। जब आपकी शंका आपको आग की तरह जलाने लगेगी, तभी!
'आ'
बुद्ध के पास एक आदमी आया था। और वह आदमी कहने लगा, आपकी बातें सुनते हैं, अच्छा लगता है; लेकिन संसार से छूटने का मन नहीं होता अभी। और आप कहते हैं कि संसार दुख है, यह भी समझ में आता है; लेकिन फिर भी अभी संसार में रस है तो बुद्ध ने कहा, मेरे कहने से कि संसार दुख है, तुझे कैसे समझ सकेगा ! और जिस दिन तुझे समझ में आ जाएगा कि संसार दुख है, तू मेरे लिए रुकेगा ! तू छलांग लगाकर बाहर हो जाएगा। बुद्ध ने कहा, तू ऐसा समझ कि तेरे घर में आग लग गई है। तो तू मुझसे पूछने आएगा कि घर से बाहर निकलूं, न निकलूं? तू किस से पूछने रुकेगा ? अगर मैं तेरे घर में मेहमान भी हूं, तो भी तू मुझे भीतर ही छोड़कर बाहर निकल जाएगा। पहले तू बाहर निकल जाएगा।
लेकिन तुझे खुद ही अनुभव होना चाहिए कि घर में आग लगी | है। तुझे तो लग रहा हो कि घर के चारों तरफ फूल खिले हैं और आनंद की वर्षा हो रही है, और मैं तुझसे कह रहा हूं घर में आग लगी है, तो तू मुझसे कहता है, आपकी बात समझ में आती है। क्योंकि तेरी इतनी हिम्मत भी नहीं है कहने की कि आपकी बात मुझे समझ में नहीं आती। तेरा यह भी साहस नहीं है कहने का कि तुम झूठ बोल रहे हो। यह घर आनंद से भरा है। आग कहां लगी है! तू बिलकुल कमजोर है। तो तू कहता है कि बात समझ में आती है कि घर में आग लगी है, फिर भी छोड़ने का मन नहीं होता ।
ये दोनों बातें विरोधी हैं। अगर घर में आग लगी है, तो छोड़ने का मन होगा ही । छोड़ने का मन कहना भी ठीक नहीं है । घर में आग लगी हो, तो आपको पता भी नहीं चलता कि आग लगी है। जब आप घर के बाहर हो जाते हैं, ठीक से सांस लेते हैं, तब पता चलता है कि घर में आग लगी है। घर में आग लगी है, यह सोचने के लिए भी समय नहीं गंवाते । भागकर पहले बाहर हो जाते हैं।
जिस दिन आपकी शंका, संदेह, अनास्था आपके लिए अग्नि की लपटें बन जाएगी, उसी दिन आप प्रार्थना की तरफ दौड़ेंगे, उसके पहले नहीं।
इसलिए मैं आपसे कहता हूं, किसी की सुनकर प्रार्थना के रास्ते
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पर मत चले जाना। किसी की मानकर कि संसार दुख है, परमात्मा |को मत खोजने लगना । अपनी ही मानना, क्योंकि आपके अतिरिक्त | आप जब भी किसी और की मान लेंगे, आप झूठे हो जाएंगे।
तो अच्छा है; बुरा कुछ भी नहीं है। आपकी अश्रद्धा भी आपके | जीवन में निखार लाएगी। आपकी नास्तिकता भी आपको तैयार करेगी आस्तिकता के लिए। आपका संदेह भी आपको छांटेगा, | काटेगा, तराशेगा, और आप योग्य बनेंगे कि परमात्मा के मंदिर में प्रवेश कर सकें।
मेरी दृष्टि में परमात्मा के विपरीत कुछ भी नहीं है। हो भी नहीं सकता। इसलिए अगर कोई कहता है कि नास्तिक परमात्मा के | विरोध में है, तो वह नासमझ है। उसे आस्तिकता की कोई खबर नहीं है।
नास्तिक भी तैयारी कर रहा है आस्तिक होने की। वह भी कह रहा है कि नहीं है परमात्मा । उसके भीतर भी खोज शुरू हो गई है। नहीं तो क्या प्रयोजन है यह कहने से भी कि परमात्मा नहीं है? क्या प्रयोजन है सोचने से कि वह है या नहीं? क्या जरूरत है कि अश्रद्धा करके हम अपनी शक्ति नष्ट करें ?
वह जो अश्रद्धा कर रहा है, वह असल में श्रद्धा की तलाश में है। वह चाहता है कि हो। लेकिन उसे मालूम नहीं पड़ता कि है । इसलिए इनकार करता है। और इनकार करता है, तो पीड़ा अनुभव करता है।
इनका पूरा होने दें। यह धार तलवार की गहरे उतर जाए और हृदय को काट डाले पूरा। आप प्रार्थना के रास्ते पर आ जाएंगे। प्रार्थना रास्ते पर आना स्वाभाविक हो जाता है।
और जल्दी मत करें। बिना अनुभव के कहीं से भी निकल जाना | खतरनाक है। बिना अनुभव के कहीं से भी भाग जाना खतरा है। | क्योंकि जहां से भी आप बिना अनुभव के भाग जाते हैं, वह जगह आपका पीछा करेगी। और आपके मन में रस तो बना ही रहेगा। और आपके मन की दौड़ तो उसी तरफ होती ही रहेगी। आप भाग सकते हैं कहीं से भी। लेकिन जिससे आप बिना अनुभव के भाग रहे हैं, | वह आपका पीछा करेगा; वह छाया की तरह आपके साथ होगा ।
तो मेरी दृष्टि भागने की नहीं है। मेरी दृष्टि तो किसी चीज के अनुभव की परिपक्वता में उतर जाने की है। जब पका हुआ पत्ता वृक्ष से गिरता है, तो उसका सौंदर्य अनूठा है। न वृक्ष पता चलता | कि पत्ता कब गिर गया; न वृक्ष में कोई घाव होता है पत्ते के गिरने से; न कोई पीड़ा होती । न पत्ते को पता चलता है कि मैंने वृक्ष को