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________________ @ संदेह की आग पूरे हृदय से न कहें, तो न भी उबारने वाली हो जाती है। और जिसने अश्रद्धा भी झूठी है। उसकी खोज भी झूठी है। उसका व्यक्तित्व ही पूरी तरह से न कहकर देख लिया और देख लिया कि न कहने का पूरा झूठा है। दुख और संताप क्या है और झेल ली चिंता और आग की लपटें, | | सच्चे होना सीखें। सच्चे होने के लिए धार्मिक होना जरूरी नहीं वह आज नहीं कल हां कहने की तरफ बढ़ेगा। उसकी हां में बल | | है। नास्तिक भी सच्चा हो सकता है। फिर नास्तिकता पूरी होनी होगा। उसकी हां में उसके जीवन का अनुभव होगा। चाहिए; तो आप सच्चे नास्तिक हो गए। और मैंने अब तक नहीं तो मुझसे यह मत पूछे कि आपका चित्त अश्रद्धा से भरा है, तो सुना है कि कोई सच्चा नास्तिक आस्तिक बनने से बच गया हो। आप प्रार्थना की तरफ कैसे जाएं। पूरी तरह अश्रद्धा से भर जाएं। सच्चे नास्तिक को आस्तिक बनना ही पड़ता है। क्योंकि जिसकी आपके लिए प्रार्थना की तरफ जाने के अतिरिक्त कोई मार्ग न बचेगा। | नास्तिकता तक में सच्चाई है, वह कितने देर तक अपने को मगर अधूरे-अधूरे होना अच्छा नहीं है। परमात्मा की प्रार्थना भी आस्तिक बनाने से रोक सकता है! कर रहे हैं और भीतर संदेह भी है, तो प्रार्थना क्यों कर रहे हैं? बंद लेकिन तुम्हारी आस्तिकता तक झूठी है। और जिसकी आस्तिकता करें यह प्रार्थना। अभी संदेह ही कर लें ठीक से। और जब संदेह न तक झूठी है, वह कैसे परमात्मा तक पहुंच सकता है! धार्मिकता भी बचे, तब प्रार्थना शुरू करें। कुछ भी पूरा करना सीखना चाहिए। | झूठी है, ऊपर-ऊपर है। जरा-सा खोदो, तो हर आदमी के भीतर क्योंकि पूरा करते ही व्यक्तित्व अखंड हो जाता है। आप नास्तिक मिल जाता है। बस, ऊपर से एक पर्त है आस्तिकता की टुकड़े-टुकड़े में नहीं होते। स्किन डीप। चमड़ी जरा-सी खरोंच दो, नास्तिक बाहर आ जाता है। आपके भीतर पच्चीस तरह के आदमी हैं। आप एक भीड हैं। और वह जो भीतर है. वही असली है। वह जो ऊपर-ऊपर है, उसका एक मन का हिस्सा कछ कहता है। दसरा मन का हिस्सा कछ कोई मल्य नहीं है। कहता है। तीसरा मन का हिस्सा कुछ कहता है। तो पहले तो ईमानदारी से इस बात की खोज करें कि अश्रद्धा है, एक देवी मेरे पास आज सुबह ही आई थीं। कहती हैं कि बीस | | शंका है, तो ठीक है। मेरे चित्त में जो स्वाभाविक है, मैं उसका पीछा साल से ईश्वर की खोज कर रही हैं। मैंने उनसे कहा कि कल सुबह | करूंगा। तो मैं शंका पूरी करूंगा जब तक कि हार न जाऊं। और चौपाटी पर ध्यान के लिए पहुंच जाएं छः बजे। उन्होंने कहा, छः बजे | जब तक कि मेरी शंका टूट न जाए, तब तक जहां मेरी शंका मुझे आना तो बहुत मुश्किल होगा। ले जाएगी, मैं जाऊंगा। बीस साल से ईश्वर की खोज चल रही है। सुबह छः बजे चौपाटी ___ थोड़ी हिम्मत करें और शंका के रास्ते पर चलें। ज्यादा आगे पर आना मुश्किल है! यह ईश्वर की खोज है! इस तरह के अधूरे | आप नहीं जा सकेंगे। क्योंकि शंका का रास्ता कहां ले जाएगा? लोग कहीं भी नहीं पहुंचते। ये त्रिशंकु की भांति अटके रह जाते हैं। शंका का अंतिम परिणाम क्या होगा? संदेह करके कहां पहुंचेंगे? संकोच भी नहीं होता, सोचने में खयाल भी नहीं आता कि मैं कह | क्या मिलेगा? रही हूं कि बीस साल से मैं ईश्वर को खोज रही हूं और सुबह छः । आज तक किसी ने भी नहीं कहा कि संदेह से उसे आनंद मिला बजे पहुंचना मुश्किल है! यह खोज कितनी कीमत की है? हो। और आज तक किसी ने भी नहीं कहा कि शंका से उसे जीवन बीस जन्म भी इस तरह खोजो, तो कहीं पहुंचना नहीं हो पाएगा। की परम अनुभूति का अनुभव हुआ हो। आज तक किसी ने भी नहीं यह खोज है ही नहीं। यह सिर्फ धोखा है। ईश्वर से कुछ लेना-देना कहा कि इनकार करके उसने अस्तित्व की गहराई में प्रवेश कर भी मालूम नहीं पड़ता है। यह भी ऐसे रास्ते चलते पूछ लिया है। लिया हो। यह भी ऐसे ही कि कहीं ईश्वर पड़ा हुआ मिल जाए और फुर्सत का | | आज नहीं कल आपको दिखाई पड़ने लगेगा कि आप अस्तित्व समय हो; तो जैसा ताश खेल लेते हैं, ऐसा उसको भी उठा लेंगे। | के बाहर-बाहर परिधि पर भटक रहे हैं। आज नहीं कल आपको ईश्वर अगर कहीं ऐसे ही मिलता हो—बिना कुछ खर्च किए, बिना | खद ही दिखाई पडने लगेगा. आपकी शंका ईश्वर को नहीं मिटा कुछ श्रम किए, बिना कुछ छोड़े, बिना कुछ मेहनत उठाए–तो | | रही है, आपको मिटा रही है। और आपका संदेह धर्म के खिलाफ सोचेंगे ले लेंगे। | नहीं है, आपके ही खिलाफ है; आपके ही पैरों को और जड़ों को इस भाव से जो चलता है, उसकी श्रद्धा भी झूठी है, उसकी काटे डाल रहा है। 51
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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