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________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्। अश्रद्धा से। आप दोनों की खिचड़ी हैं। वही तकलीफ है। उसकी भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् ।।७।। | वजह से न तो आप अश्रद्धा की यात्रा कर सकते हैं, क्योंकि जब मय्येव मन आधत्स्व मयि बाद निवेशय।। अश्रद्धा पर जाना चाहते हैं, तो श्रद्धा पैर को रोक लेती है। और निवसिष्यसि मय्येव अत अय न संशयः ।।८।। उसकी वजह से श्रद्धा की यात्रा भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि जब हे अर्जुन, उन मेरे में चित्त को लगाने वाले प्रेमी भक्तों का मैं | श्रद्धा की तरफ जाना चाहते हैं, तो अश्रद्धा पैर रोक लेती है। शीघ्र ही मृत्यु-रूप संसार-समुद्र से उद्धार करने वाला होता । कृपा करें और पूरी तरह अश्रद्धालु हो जाएं। डरें मत। भय भी न हूं। इसलिए हे अर्जुन, तू मेरे में मन को लगा और मेरे में ही | खाएं। तर्क ही करना है, तो पूरा कर लें। कुतर्क की सीमा का भी बुद्धि को लगा; इसके उपरांत तू मेरे में ही निवास करेगा कुछ संकोच न करें। पूरी तरह उतर जाएं अपनी अश्रद्धा में। वह अर्थात मेरे को ही प्राप्त होगा, इसमें कुछ भी संशय नहीं है। पूरी तरह उतर जाना ही आपको नरक में ले जाएगा। और नरक में जाए बिना नरक से कोई छुटकारा नहीं है। और दूसरों की बातें मत सुनें। क्योंकि अधकचरी दूसरों की बातें पहले थोड़े से प्रश्न। एक मित्र ने पूछा है, शंका, | कोई सहायता न पहुंचाएंगी। जब आप नरक की तरफ जा रहे हों, अश्रद्धा, अनास्था, विद्रोह आदि से भरा हुआ व्यक्ति | तो स्वर्ग की बात ही भूल जाएं और पूरी तरह नरक में उतर जाएं। कैसे प्रार्थना करे, भक्ति करे, समर्पण करे? एक बार अनुभव कर लें ठीक से, तो फिर किसी को कहना नहीं पड़ेगा कि श्रद्धा का अमृत क्या है। अश्रद्धा का जहर जिसने देख लिया, वह अपने आप श्रद्धा के अमृत की तरफ चलना शुरू हो नसके मन में यह सवाल उठ आया हो कि कैसे समर्पण जाता है। 101 करूं, कैसे प्रार्थना करूं, वह व्यक्ति, और वह व्यक्ति | इस युग की तकलीफ अश्रद्धा नहीं है। इस युग की तकलीफ जो अश्रद्धा से भरा हो, अनास्था से भरा हो, शंका से | अधूरापन है। आपका आधा हिस्सा श्रद्धा से भरा है और आधा भरा हो, एक ही नहीं हो सकते। क्योंकि जो शंका से भरा है, प्रार्थना अश्रद्धा से भरा है। कोई भी यात्रा पूरी नहीं हो पाती। का सवाल ही उसके मन में नहीं उठेगा। जो शंका से भरा है, और ध्यान रहे, बुराई से भी छूटने का कोई उपाय नहीं है, जब समर्पण का विचार ही उसके मन में नहीं उठेगा। तक बुराई पूरी न हो जाए। और पाप के भी बाहर उठने का कोई और जिसके मन में समर्पण और प्रार्थना का विचार उठना शुरू रास्ता नहीं है, जब तक कि पाप में आप पूरी तरह डूब न जाएं। हो गया है, उसे समझ लेना चाहिए, उसकी शंकाएं बीमारियां बन जिसमें हम पूरी तरह डूबते हैं, जिसका हमें पूरा अनुभव हो जाता गई हैं; उसकी अश्रद्धा उसे खा रही है। अपनी अनास्था से वह खुद | है, फिर किसी को कहने की जरूरत नहीं होती कि आप इसके बाहर ही सड़ रहा है। उसकी अनास्था उसके लिए कैंसर है। निकल आएं। आप स्वयं ही निकलना शुरू कर देते हैं। और जब तक यह दिखाई न पड़ जाए, तब तक प्रार्थना की यात्रा अभी तो बहुत लोग आपको समझाते हैं कि श्रद्धा करो और नहीं हो सकती। कोई दूसरा आपको यात्रा नहीं करा सकेगा। श्रद्धा नहीं आती। क्योंकि जिसने अश्रद्धा ही ठीक से नहीं की है, आपको स्वयं ही जानना पड़ेगा कि अश्रद्धा की पीड़ा क्या है। | उसे श्रद्धा कैसे आ सकेगी! श्रद्धा अश्रद्धा के बाद का चरण है। अनास्था का कांटा आपको बुरी तरह चुभेगा, तो ही आप उसे __ आस्तिक वही हो सकता है, जो नास्तिक हो चुका है। नास्तिकता निकालने के लिए तैयार होंगे। के पहले सारी आस्तिकता बचकानी, दो कौड़ी की होती है। जिसने इसलिए मुझसे अगर पूछते हैं कि क्या करें, अश्रद्धा से भरे हैं? नास्तिकता नहीं जानी, वह आस्तिक हो कैसे सकेगा? जिसने अभी तो पूरी तरह अश्रद्धा से भर जाएं। कुनकुनी अश्रद्धा ठीक नहीं है। इनकार करना नहीं सीखा, उसके हां का भी कोई मूल्य नहीं है। अश्रद्धा से पूरी तरह भर जाएं, ताकि उससे ऊब सकें और छुटकारा | उसके स्वीकार में भी कोई जान नहीं है। उसका स्वीकार नपुंसक है, हो सके। इम्पोटेंट है। आम हालत ऐसी है कि न तो आप श्रद्धा से भरे हैं, और न । कोई डर नहीं है। न कहें, परमात्मा नाराज नहीं होता है। लेकिन 1501
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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