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पाप और प्रार्थना
मैं नहीं कर रहा हूं; तू ही कर रहा है। वह बुरे भले का भी भाव छोड़ देता है। वह कहता है, जो प्रभु की मर्जी । अब मेरी कोई मर्जी नहीं है । अब तू जो मुझसे करवाए, मैं करता रहूंगा। तेरा उपकरण हो गया। तू सुख में रखे तो सुखी, और तू दुख में रखे तो दुखी । न तो मैं की आकांक्षा करूंगा, और न दुख न मिले, ऐसी वासना सुख रखूंगा। अब मैं सब भांति तेरे ऊपर छोड़ता हूं। यह जो समर्पण है, इस समर्पण के साथ ही अहंकार गलना शुरू हो जाता है।
कृष्ण कहते हैं, उनका मैं जल्दी ही उद्धार कर लेता हूं, क्योंकि वे पहले चरण में ही अपने को छोड़ देते हैं।
ज्ञानी का उद्धार भी होगा, लेकिन वह आखिरी चरण में होगा। घटना अंत में वही हो जाएगी। लेकिन कोई अपनी यात्रा के पहले
बोझ को रख देता है, कोई अपनी यात्रा की समाप्ति पर बोझ को छोड़ता है। और जहां बोझ छूट जाता है अस्मिता का, अहंकार का, उद्धार शुरू हो जाता है।
कृष्ण जब कहते हैं, मैं उद्धार करता हूं, तो आप ऐसा मत समझें कि कोई बैठा हुआ है, जो आपका उद्धार करेगा। कृष्ण का मतलब है नियम । कृष्ण का मतलब है, शाश्वत धर्म, शाश्वत नियम। जैसे ही आप अपने को छोड़ देते हैं, वह नियम काम करना शुरू कर देता है।
पानी है; नीचे की तरफ बहता है। फिर उसको गरम करें आग से; भाप बन जाता है। भाप बनते ही ऊपर की तरफ उठने लगता है।
एक नियम तो ग्रेविटेशन का है कि पानी नीचे की तरफ बहता है। ने खोजी यह बात कि जमीन चीजों को अपनी तरफ न्यूटन खींचती है, इसलिए सब चीजें नीचे की तरफ गिरती हैं। लेकिन एक . और नियम भी है जो ग्रेविटेशन के विपरीत है। जिसको योगियों ने लेविटेशन कहा है। नीचे की तरफ खींचने में तो कशिश है, गुरुत्वाकर्षण है; लेकिन ऊपर की तरफ भी एक खिंचाव है, जिसको एक बहुत कीमती महिला सिमोन वेल ने ग्रेस कहा है। ग्रेस और ग्रेविटेशन | नीचे की तरफ कशिश; ऊपर की तरफ प्रभु प्रसाद, ग्रेस ।
नियम है। जब आप गिर पड़ते हैं जमीन पर, केले के छिलके पर पैर फिसल जाता है, तो आप यह मत सोचना कि कोई भगवान बैठा है, जो आपकी टांग तोड़ता है। कि खटाक से, आपने गड़बड़ की, केले के छिलके पर फिसले, उसने उठाया हथौड़ा और फ्रैक्चर कर दिया ! कोई बैठा हुआ नहीं है कि आपका फ्रैक्चर करे। किस-किस का फ्रैक्चर करने का हिसाब रखना पड़े। नियम है। आपने भूल की,
नियम के अनुसार आपका पैर टूट गया। कोई तोड़ता नहीं है पैर । | पैर टूट जाता है; नियम के विपरीत पड़ने से टूट जाता है।
ठीक ऐसे ही ग्रेस है। जैसे ही आपका अहंकार हटा, आप ऊपर की तरफ खींच लिए जाते हैं। कोई खींचता नहीं है। कोई ऐसा बैठा नहीं है कि आपके गले में फांसी लगाकर और ऊपर खींचेगा ।
उद्धार का मतलब ऐसा मत समझना कि कोई आपको उठाएगा और खींचेगा। कोई नहीं उठा रहा है; कोई उठाने की जरूरत नहीं है। जैसे ही बोझ हलका हुआ, आप ऊपर उठ जाते हैं।
जैसे आप एक कार्क की गेंद ले लें; और उसके चारों तरफ मिट्टी लपेटकर उसे पानी में डाल दें। वह जमीन में बैठ जाएगी नदी की, क्योंकि वह मिट्टी जो चारों तरफ लगी है, उस कार्क को भी डुबा लेगी। लेकिन जैसे-जैसे मिट्टी पिघलने लगेगी और पानी में बहने लगेगी, कार्क उठने लगेगा ऊपर की तरफ। कोई उठा नहीं रहा है। मिट्टी बिलकुल बह जाएगी पिघलकर, हटकर, कार्क जमीन से ऊपर उठ आएगा। पानी की सतह पर तैरने लगेगा। किसी ने उठाया नहीं है। नियम! कार्क जैसे ही बोझिल नहीं रहा, उठ जाता है।
उद्धार का अर्थ है कि आप जैसे ही अपने को छोड़ देते हैं, उठ | जाते हैं, खींच लिए जाते हैं।
कृष्ण कहते हैं, मैं उसको, जो सगुण रूप से, साकार को, एक परमात्मा की धारणा को, उसके चरणों में अपने को समर्पित करता है; अनन्य भाव से निरंतर, सतत उसका स्मरण करता है; वही उसकी धुन, वही उसका स्वर श्वास-श्वास में समा जाता है; रोएं - रोएं में उसी की पुलक हो जाती है; उठता, बैठता, सोता, सब भांति उसी को याद करता है; उसके ही प्रेम में लीन रहने लगता है; ऐसी जो तल्लीनता बन जाती है, उसका मैं शीघ्र ही उद्धार कर लेता हूं।
शीघ्र इसलिए कि वह पहले चरण पर ही बोझ से हट जाता है। ज्ञानी का भी उद्धार होता है, लेकिन आखिरी चरण पर ।
तो जिन्हें यात्रा - पथ में अपने को बचा रखना हो और अंत में ही छोड़ना हो, वे निराकार की तरफ जा सकते हैं। जिनको पहले ही चरण पर सब छोड़ देना हो, भक्ति उनके लिए है। निश्चित ही, जो पहले चरण पर छोड़ता है, पहले चरण पर ही मिलन शुरू हो जाता है । जितनी देर आप अपने को खींचते हैं, उतनी ही देर होती है। जितने | जल्दी अपने को छोड़ देते हैं, उतने ही जल्दी घटना घट जाती है।
यह आत्मिक उत्थान आपके अहंकार के बोझ से ही रुका है। यह खयाल कि मैं हूं, इसके अतिरिक्त और कोई बाधा नहीं है। और
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