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o गीता दर्शन भाग-
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अहंकार पर मक्खन लगा रहे हैं। आप फूले जा रहे हैं भीतर कि मेरे | आप होश में नहीं थे। निश्चित ही, आपने कोई शराब बाहर से जैसा कोई पुण्यात्मा नहीं है जगत में! मूर्छा पकड़ रही है। इस | नहीं पी थी। लेकिन भीतर भी शराब के झरने हैं। और बाहर से ही मूर्छा में आप चेक वगैरह मत दे देना। वह पाप होगा। भला उससे | शराब पीना जरूरी नहीं है। मंदिर बने, लेकिन वह पाप होगा। क्योंकि मूर्छा में कोई पुण्य नहीं अगर आप शरीर-शास्त्री से पूछे, तो वह बता देगा कि आपके हो सकता।
शरीर में ग्रंथियां हैं, जहां से नशा, मादक द्रव्य छूटते हैं। जब आप और मैं आपसे कहता हूं कि अगर आप चोरी भी करने जाएं, तो क्रोध में होते हैं, तो आपका खून तेज चलता है और खून में जहर होशपूर्वक करने जाना। तो पहली तो बात यह कि आप चोरी नहीं | छूट जाते हैं। उन जहर की वजह से आप मूर्छित हो जाते हैं। उस कर पाएंगे। जैसे ही होश से भरेंगे, हाथ वापस खिंच आएगा। | मूर्छा में आप कुछ कर बैठते हैं, वह आपका किया हुआ कृत्य नहीं किसी की हत्या भी करने जाएं, तो मैं नहीं कहता कि हत्या मत | | है। वह मूर्छा है, बेहोशी है। करना। मैं इतना ही कहता हूं कि होशपूर्वक करना। होश होगा, इस जगत में कोई भी बुराई बिना बेहोशी के नहीं होती। और हत्या नहीं हो सकेगी। हत्या हो जाए, तो समझ लेना कि आप इस जगत में कोई भी भलाई बिना होश के नहीं होती। इसलिए एक बेहोश हो गए थे। और आप बेहोश हो जाएंगे, तो ही हो सकती है। ही भलाई है, होश से भरे हुए जीना; और एक ही बुराई है, बेहोशी
इस जगत में कुछ भी बुरा करना हो, तो बेहोशी चाहिए, नींद में होना। चाहिए। जैसे आप नहीं कर रहे हैं, कोई शराब के नशे में आपसे | और इस बात की प्रतीक्षा मत करें कि जब पुण्य से भर जाएंगे करवाए ले रहा है।
पूरे, तब प्रार्थना करेंगे। जैसे हैं, जहां हैं, वहीं प्रार्थना शुरू कर दें। ऐसा हुआ कि अकबर निकलता था एक रास्ते से और एक नंगा | आपकी प्रार्थना भी आपका होश बनेगी। आपकी प्रार्थना भी फकीर सडक के किनारे खडा होकर अकबर को गालियां देने लगा। आपको जगाएगी। आपकी प्रार्थना भी आपकी बेहोशी और मूर्छा अकबर ने बहुत संतुलन रखा। बहुत बुद्धिमान आदमी था। लेकिन | | को तोड़ेगी। और आपकी प्रार्थना का अंतिम परिणाम होगा कि आप अपने सिपाहियों को कहा कि इसको पकड़कर कल सुबह मेरे | | एक सचेतन व्यक्ति हो जाएंगे। यह जो सचेतन, जागा हुआ बोध सामने हाजिर करो।
मनुष्य के भीतर है, वही उसे पाप से छुटाता है। . दूसरे दिन सुबह उस फकीर को हाजिर किया गया। वह आकर | ___ पापों को काटने के लिए पुण्यों की जरूरत नहीं है। पापों को अकबर के चरणों में सिर झुकाकर खड़ा हो गया। अकबर ने कहा | काटने के लिए होश की जरूरत है। और जहां होश है, वहां पाप कि कल तुमने गालियां दीं, उसका तुम्हें उत्तर देना पड़ेगा। क्या | होने बंद हो जाते हैं। और जहां होश है, वहां पुण्य फलित होने प्रयोजन था? उस फकीर ने कहा कि आप जिससे उत्तर मांग रहे हैं, | लगते हैं। पुण्य ऐसे ही फलित होने लगते हैं, जैसे सूरज के उगने उसने गालियां नहीं दीं। जिसने दीं, वह शराब पीए हुए था। रातभर | | पर फूल खिल जाते हैं। ऐसे ही होश के जगने पर पुण्य होने शुरू में मेरा नशा उतर गया। इसलिए आप मुझसे जवाब मांगकर अन्याय | | हो जाते हैं। पुण्य करने नहीं पड़ते। आपकी छाया की तरह आपके कर रहे हैं। जिसने गालियां दी थीं, वह अब मौजूद नहीं है। और मैं | | पीछे चलने लगते हैं। वे आपकी सुगंध हो जाते हैं। वे हो जाते हैं, जो मौजूद हूं, उस वक्त मौजूद नहीं था।
तब आपको पता लगता है। जब दूसरे आपसे कहते हैं, तब आपको अकबर ने अपने आत्म-संस्मरणों में यह घटना लिखवाई है। | पता लगता है। और उसने कहा है कि मुझे उस दिन खयाल आया कि निश्चित । लेकिन आदमी बेईमान है, आत्मवंचक है। और आदमी हजार ही, जो मूर्छा में किया गया हो, उसके लिए व्यक्ति को जिम्मेवार तरकीबें निकाल लेता है अपने को समझाने की, कि मैं तो पापी हूं; क्या ठहराना!
मुझसे क्या प्रार्थना होगी! यह आपकी होशियारी है। यह आप यह आप जो भी कर रहे हैं...। इसलिए आपको भी लगता है, कभी | कह रहे हैं कि अभी क्या प्रार्थना करनी! प्रार्थना आपको करनी नहीं क्रोध में आप गाली दे देते हैं, किसी को मार देते हैं, बाद में आपको | है। करना आपको पाप ही है। लेकिन आप यह भी अपने मन में नहीं लगता है कि मैं तो नहीं करना चाहता था! सोचा भी नहीं था कि | मानना चाहते कि मैं प्रार्थना नहीं करना चाहता हूं। आप कहते हैं, मैं करूं, अब पछताता भी हूं, और खयाल आता है कि कैसे हो गया! | ठहरा पापी; मुझसे क्या प्रार्थना होगी? तो किससे प्रार्थना होगी?