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ॐ पाप और प्रार्थना
करीब आ गया है।
और जो मिला है, वह बहुत कष्टपूर्ण है।
| तरफ उतर जाए। निश्चित ही, इस आदमी की भक्ति गहरी होगी। बर्दैड रसेल जैसे बुद्धिमान आदमी ने कहा है-और इस सदी __ ऐसा समझें कि एक गरीब आदमी संन्यासी हो जाए, सब छोड़ में जिनकी बुद्धि पर हम भरोसा कर सकें, उन थोड़े से लोगों में दे। लेकिन सब था क्या उसके पास छोड़ने को! उसके त्याग की एक है रसेल। रसेल ने कहा है कि पहली बार आदिवासियों को कितनी गहराई होगी? उसके त्याग की उतनी ही गहराई होगी, एक जंगल में नाचते देखकर मुझे लगा, अगर यह नाच मैं भी नाच जितना उसने छोड़ा है। उससे ज्यादा नहीं हो सकती। उसके पास सकं. तो मैं अपनी सारी बद्धि को दांव पर लगाने को तैयार हैं। कुछ था ही नहीं। एक सम्राट संन्यासी हो जाए। इस सम्राट के त्याग अगर यही उन्मुक्त, चांद की रात में यही उन्मुक्त गीत मैं भी गा | की गहराई उतनी ही होगी, जितना इसने छोड़ा है। सर्वं, तो महंगा सौदा नहीं है। लेकिन सौदा महंगा भला न हो, ध्यान रहे, जब बुद्ध और महावीर सब छोड़कर सड़क पर करना बहुत कठिन है।
| भिखारी की तरह खड़े हो जाते हैं, तब आप यह मत समझना कि ये बुद्धि के तनाव को छोड़कर भाव और हृदय की तरफ उतरना | | वैसे ही भिखारी हैं, जैसे दूसरे भिखारी हैं। इनके भिखारीपन में एक जटिल है। लेकिन पश्चिम में, जो निश्चित ही हम से बुद्धि की दौड़ | | तरह की शान है। और इनके भिखारीपन में एक अमीरी है। और में आगे हैं, बुद्धि की पीड़ा बहुत स्पष्ट हो गई है। हम स्कूल, इनके भिखारीपन में छिपा हुआ सम्राट मौजूद है। कोई भिखारी कालेज, युनिवर्सिटी बना रहे हैं, पश्चिम में उनके उजड़ने का वक्त | इनका मुकाबला नहीं कर सकता। क्योंकि दूसरा भिखारी फिर भी
भिखारी ही है। उसे सम्राट होने का कोई अनुभव नहीं है। इसलिए आज अगर अमेरिका में विचारशील युवक है, तो वह पूछता है, | उसके संन्यास में कोई गहराई नहीं हो सकती। पढ़कर क्या होगा? अगर मुझे एम.ए. या डाक्टरेट की उपाधि मिल | उसका संन्यास हो सकता है एक सांत्वना हो, अपने को गई, तो क्या होगा? मुझे क्या मिल जाएगा? और पश्चिम के | | समझाना हो। उसने शायद इसलिए सब छोड़ दिया हो कि पहली पिताओं के पास, गुरुओं के पास उत्तर नहीं है। क्योंकि बच्चे जब | | तो बात कुछ था भी नहीं, पकड़ने योग्य भी कुछ नहीं था। और फिर अपने बाप से पूछते हैं कि आप पढ़-लिख गए, आपको जीवन में | | दूसरी बात, सोचा हो कि अंगूर खट्टे हैं। जो नहीं मिलता, वह पाने क्या मिल गया है जिसकी वजह से हम भी इस पढ़ने के चक्र से | | योग्य भी नहीं है। शायद उसने अपने को समझा लिया हो कि मैं गुजारे जाएं? आपने क्या पा लिया है?
त्याग करके परमात्मा को पाने जा रहा हूं। कुछ उसके पास था नहीं। आज पश्चिम में अगर हिप्पी, और बीटनिक, और युवकों का उसके छोड़ने का कोई मूल्य नहीं है। बड़ा वर्ग विद्रोह कर रहा है शिक्षा से, संस्कृति से, समाज से, तो लेकिन जब कोई बुद्ध या महावीर सब छोड़कर जमीन पर उसका मौलिक कारण यही है कि बुद्धि ने जो-जो आशाएं दी थीं, भिखारी की तरह खड़ा हो जाता है, तो इस छोड़ने का राज और है। . वे पूरी नहीं हुईं। और बुद्धि का भ्रम-जाल टूट गया। एक बुद्ध की शान और है। यह बुद्ध कितना ही बड़ा भिक्षापात्र अपने डिसइलूजनमेंट, सब भ्रम टूट गए हैं।
हाथ में ले लें, इनकी आंखों में सम्राट मौजूद रहेगा। और जब ये __ भ्रम टूटते ही तब हैं, जब कोई चीज उपलब्ध होती है; उसके | बुद्ध एक वृक्ष के नीचे सो जाएंगे—इन्होंने महल जाने हैं और यह पहले नहीं टूटते। गरीब आदमी को भ्रम बना ही रहता है कि धन | भी जान लिया है कि उन महलों में कोई सुख न था—तो इनकी नींद से सुख मिलता होगा। धन से सुख नहीं मिलता, इसके लिए धनी | | वृक्ष के नीचे और है। और एक भिखारी जब वृक्ष के नीचे सोता है, होना जरूरी है। इसके पहले यह अनुभव में नहीं आता। आएगा भी | | जिसने महल नहीं जाने हैं, वह भी कहता हो कि महलों में कुछ नहीं कैसे? अनुभव का अर्थ ही यह होता है कि जो हमारे पास है, उसका है, लेकिन उसकी नींद की गुणवत्ता और होगी। ये दोनों अलग तरह ही हम अनुभव कर सकते हैं। जो हमारे पास नहीं है, उसकी हम | | के लोग हैं। आशाएं और सपने बांध सकते हैं।
हम जिस अनुभव से गुजर जाते हैं, उसके विपरीत जब हम जाते जमीन पर पहली दफा इन पांच हजार वर्षों में, बुद्धि ने पूरा हैं, तो उसकी गहराई उतनी ही बढ़ जाती है। इसलिए गरीब का जो शिखर छुआ है। बुद्धि का भ्रम टूट गया है। और इस भ्रम के टूटने | आनंद है, वह केवल अमीर को मिलता है। गरीब होने का जो मजा के कारण इस क्रांति की संभावना है कि मनुष्य पहली दफा भक्ति की है, वह केवल अमीर को मिलता है। और जो अमीर अभी अमीरी