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________________ ॐ दो मार्गः साकार और निराकार इसलिए महावीर ने जितना जोर दिया फिर प्रेम पर—वह अहिंसा रहा हो, वहां बंधन हो ही गया होगा। उनका नाम है प्रेम के लिए। वह ज्ञानी का शब्द है प्रेम के लिए। | लेकिन उन्हें खयाल नहीं है कि यह आदमी बांधा नहीं जा क्योंकि प्रेम से डर है कि कहीं आम आदमी अपने प्रेम को न समझ | सकता, क्योंकि भीतर यह आदमी है ही नहीं। यह मौजद नहीं है। ले। इसलिए अहिंसा। अहिंसा का मतलब इतना ही है कि दूसरे को | जो मौजूद हो, वह बांधा जा सकता है। अगर आप आकाश पर मुट्ठी जरा भी दुख मत देना। बांधेगे, तो मुट्ठी रह जाएगी, आकाश बाहर हो जाएगा। आकाश और ध्यान रहे, जो आदमी दूसरे को जरा भी दुख न दं, इसका | को अगर बांधना हो, तो हाथ खुला चाहिए। आपने बांधा कि खयाल रखता है, उस आदमी से दूसरे को सुख मिल पाता है। और आकाश बाहर गया। जो आदमी खयाल रखता है कि दूसरे को सुख दूं, वह अक्सर दुख जो शून्य की भांति है, वह बांधा नहीं जा सकता। भीतर यह देता है। | आदमी शून्य है, लेकिन इसकी यात्रा प्रेम की है। इसलिए कृष्ण भूलकर भी दूसरे को सुख देने की कोशिश मत करना। वह | जैसा शून्य आदमी खोजना मुश्किल है। आपकी सामर्थ्य के बाहर है। आपकी सामर्थ्य इतनी है कि आप __आप दोनों तरफ से चल सकते हैं। अपनी-अपनी पात्रता, कृपा करना, और दुख मत देना। आप दुख से बच जाएं दूसरे को | क्षमता, अपना निज स्वभाव पहचानना जरूरी है। देने से, तो काफी सुख देने की आपने व्यवस्था कर दी। क्योंकि जब इसलिए कृष्ण ने कहा कि वे जो दूसरी तरफ से चलते आप कोई दुख नहीं देते, तो आप दूसरे को सुखी होने का मौका देते | हैं–निराकार, अद्वैत, निर्गुण, शून्य-वे भी मुझ पर ही पहुंच हैं। सुखी तो वह खुद ही हो सकता है। आप सुख नहीं दे सकते; | जाते हैं। सिर्फ अवसर जुटा सकते हैं। तब सवाल यह नहीं है कि आप कौन-सा मार्ग चुनें। सवाल यह सुख देने की कोशिश मत करना किसी को भी भूलकर, नहीं तो है कि आप किस मार्ग के अनुकूल अपने को पाते हैं। आप कहां वह भी दुखी होगा और आपको भी दुखी करेगा। सुख कोई दे नहीं | | हैं? कैसे हैं? आपका व्यक्तित्व, आपका ढांचा, आपकी बनावट, सकता है। आपके निजी झुकाव कैसे हैं? इसलिए महावीर ने नकार शब्द चुन लिया, अहिंसा। दुख भर ___ एक बड़ा खतरा है, और सभी साधकों को सामना करना पड़ता मत देना, यही तुम्हारे प्रेम की संभावना है। इससे तुम्हारा प्रेम फैल | है। और वह खतरा यह है कि अक्सर आपको अपने से विपरीत सकेगा। | स्वभाव वाला व्यक्ति आकर्षक मालम होता है। यह खतरा है। __ महावीर शून्य होकर चले और प्रेम पर पहुंच गए। कृष्ण परे के | | इसलिए गुरुओं के पास अक्सर उनके विपरीत चेले इकट्ठे हो जाते पूरे प्रेम हैं। और उनसे शून्य आदमी खोजना मुश्किल है। सारा प्रेम | हैं। क्योंकि जो विपरीत है, वह आकर्षित करता है। जैसे पुरुष को है, लेकिन भीतर एक गहन शून्य खड़ा हुआ है। इसलिए इस प्रेम | स्त्री आकर्षित करती है; स्त्री को पुरुष आकर्षित करता है। में कहीं भी कोई बंधन निर्मित नहीं होता। आप ध्यान रखें, यह विपरीत का आकर्षण सब जगह है। अगर इसलिए हमने कहानी कही है कि सोलह हजार प्रेयसियां, आप लोभी हैं, तो आप किसी त्यागी गुरु से आकर्षित होंगे। फौरन पत्नियां हैं उनकी। और फिर भी हमने कृष्ण को मुक्त कहा है। | आप कोई त्यागी गुरु को पकड़ लेंगे। क्यों? क्योंकि आपको लगेगा सोलह हजार प्रेम के बंधन के बीच जो आदमी मुक्त हो सके, वह | कि मैं एक पैसा नहीं छोड़ सकता और इसने सब छोड़ दिया! बस, भीतर शून्य होना चाहिए; नहीं तो मुक्त नहीं हो सकेगा। | चमत्कार है। आप इसके पैर पकड़ लेंगे। तो त्यागियों के पास पर जैन नहीं समझ सके कृष्ण को। जैसा कि हिंदू नहीं समझ | अक्सर लोभी इकट्ठे हो जाएंगे। यह बड़ी उलटी घटना है, लेकिन सकते महावीर को। जैन नहीं समझ सके, क्योंकि जैनों को लगा, घटती है। जिसके आस-पास सोलह हजार स्त्रियां हों! एक स्त्री नरक पहुंचा | अगर आप क्रोधी हैं, तो आप किसी अक्रोधी गुरु की तलाश देने के लिए काफी है। सोलह हजार स्त्रियां जिसके पास हों, इसके | करेंगे। आपको जरा-सा भी उसमें क्रोध दिख जाए, आपका लिए बिलकुल आखिरी नरक खोजना जरूरी है। इसलिए जैनों ने | | विश्वास खतम हो जाएगा। क्योंकि आपका अपने में तो विश्वास कृष्ण को सातवें नरक में डाला हुआ है। क्योंकि जहां इतना प्रेम घट | | है नहीं; आप अपने दुश्मन हैं; और यह आदमी भी क्रोध कर रहा
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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