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0 गीता दर्शन भाग-60
का पैर देखा था; और किसी ने हाथी का कान देखा था; और किसी | | विपरीत हैं। ने हाथी की सूंड देखी थी। और वे सब सही थे; और फिर भी सब ज्ञान से चलने वाले को शून्य होना पड़ता है। और प्रेम से चलने गलत थे।
| वाले को पूर्ण होना पड़ता है। लेकिन शून्यता और पूर्णता एक ही और जब वे गांव में वापस लौटकर आए, तो बड़ा उपद्रव और | घटना के दो नाम हैं। शून्य से ज्यादा पूर्ण कोई और चीज नहीं है। विवाद खड़ा हो गया। क्योंकि उन सबने हाथी देखा था, और सभी | और पूर्ण से ज्यादा शून्य कोई और चीज नहीं है। का दावा था कि हम हाथी देखकर आ रहे हैं। लेकिन किसी ने कहा | • हमारे लिए तकलीफ है। क्योंकि हमारे लिए शून्य का अर्थ है कि हाथी सप की भांति है और किसी ने कहा कि हाथी है मंदिर के कुछ भी नहीं। और हमारे लिए पूर्ण का अर्थ है सब कुछ। ये हमारे खंभे की भांति और बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। और निर्णय कुछ | | देखने के ढंग, दृष्टि, हम जितना समझ सकते हैं, हमारी सीमा, भी नहीं हो सकता था, क्योंकि सभी की बातें इतनी विपरीत थीं। | उसके कारण यह अड़चन है।
लेकिन वे सारी विपरीत बातें इसलिए विपरीत मालूम पड़ती थीं| | लेकिन जो शून्य हो जाता है, वह तत्क्षण पूर्ण का अनुभव कर कि उन सबने अधूरा-अधूरा देखा था। और कोई हाथी से अगर लेता है। और जो पूर्ण हो जाता है, वह भी तत्क्षण शून्य का अनुभव पूछता, तो वह कहता, यह सब मैं हूं।
कर लेता है। थोड़ा-सा फर्क होता है। वह फर्क आगे-पीछे का होता यह अर्जुन हाथी के सामने खड़ा है। इसलिए अगर एक ने कहा | | है। जो शून्य होता हुआ चलता है, उसे पहले अनुभव शून्य का होता हो कि निराकार है वह, और किसी दूसरे ने कहा हो, साकार है वह। है। शून्य का अनुभव होते ही पूर्ण का द्वार खुल जाता है। जो पूर्ण यह अर्जुन हाथी के सामने खड़ा है और हाथी से पूछ रहा है कि क्या | की तरफ से चलता है, उसे पहले अनुभव पूर्ण का होता है। पूर्ण हो तुम! तो हाथी कहता है, सब हूं मैं। वह जिसने कहा है कि सूप होते ही शून्य का द्वार खुल जाता है। की भांति, वह मैं ही हूं; और जिसने कहा है, खंभे की भांति, वह ऐसा समझ लें कि शून्यता और पूर्णता एक ही सिक्के के दो मैं ही हूं। उन सब की भूल इसमें नहीं है; वे जो कहते हैं, उसमें भूल | | पहलू हैं। जो सिक्के का हिस्सा आपको पहले दिखाई पड़ता है, जब नहीं है। उनकी भूल उसमें है, जो वे इनकार करते हैं। | आप उलटाएंगे, पूरा सिक्का आपके हाथ में आएगा, तो दूसरा
कोई भूल नहीं है अंधे की, अगर वह कहता है कि हाथी मैंने | हिस्सा दिखाई पड़ेगा। देखा जैसा, वह खंभे की भांति है। अगर वह इतना ही कहे कि इसीलिए ज्ञानी पहले प्रेम से बिलकुल रिक्त होता चला जाता है जितना मैंने देखा है हाथी, वह खंभे की भांति है, तो जरा भी भूल | | और अपने को शून्य करता है। प्रेम से भी शून्य करता है, क्योंकि नहीं है। लेकिन वह कहता है, हाथी खंभे की भांति है। और जब | वह भी भरता है। कोई कहता है कि हाथी खंभे की भांति नहीं है, सूप की भांति है, तो | तो महावीर ने कहा है कि सब तरह के प्रेम से शून्य; सब तरह झगड़ा शुरू हो जाता है। तब वह कहता है, हाथी सूप की भांति हो के मोह, सब तरह के राग, सबसे शून्य। इसलिए महावीर ने कह नहीं सकता, क्योंकि खंभा कैसे स्प होगा!
दिया कि ईश्वर भी नहीं है। क्योंकि उससे भी राग बन जाएगा, प्रेम हाथी से कोई भी नहीं पूछता! और हाथी से पूछने के लिए अंधे | बन जाएगा। कुछ भी नहीं है, जिससे राग बनाना है। सब संबंध समर्थ नहीं हो सकते। और अगर हाथी कह दे कि मैं सब हूं, तो तोड़ देने हैं। और प्रेम संबंध है। और अपने को बिलकुल खाली अंधे सोचेंगे, हाथी पागल है। क्योंकि अंधे तो देख नहीं सकते हैं। कर लेना है। सोचेंगे, हाथी पागल हो गया है। अन्यथा ऐसी व्यर्थ, बद्धिहीन बात जिस दिन खाली हो गए महावीर, उस दिन जो पहली घटना नहीं कहता। कोई अंधा उसकी मानेगा नहीं। सब अंधे अपनी मानते | | घटी, वह आप जानते हैं वह क्या है! वह घटना घटी प्रेम की। हैं। और जब अपनी मानते हैं, तो दूसरे के वक्तव्य को गलत करने | इसलिए महावीर से बड़ा अहिंसक खोजना मुश्किल है। क्योंकि की चेष्टा जरूरी हो जाती है। क्योंकि दूसरे का वक्तव्य स्वयं को | शून्य से चला था यह आदमी। और सब तरफ से अपने को शून्य गलत करता मालूम पड़ता है।
कर लिया था। परमात्मा से भी शून्य कर लिया था। जिस दिन पहुंचा कृष्ण का यह सूत्र कह रहा है कि वे भी पहुंच जाते हैं, जो प्रेम | | मंजिल पर, उस दिन इससे बड़ा प्रेमी खोजना मुश्किल है। यह से चलते हैं। और वे भी पहुंच जाते हैं, जो ज्ञान से चलते हैं। मार्ग | | उलटी बात हो गई।