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________________ ॐ दो मार्ग ः साकार और निराकार ® सही होने में कमी हो जाएगी। के खिलाफ हैं और पूरी जमीन परमात्मा की लाशों से भर गई है। लेकिन सुनने वाले पर जो परिणाम होता है, उसे लगता है कि कृष्ण का यह तत्क्षण दूसरा सूत्र इस बात की खबर देता है कि मस्जिद भी गलत और मंदिर भी गलत। ये जो दोनों को गलत कह | कितने ही विपरीत दिखाई पड़ने वाले मार्ग हों, मंजिल एक है। रहे हैं, ये दोनों गलत हैं। और यह गलती की बात इतनी प्रचारित इसे थोड़ा समझें, क्योंकि तर्क के लिए बड़ी कठिनाई है। तर्क होती है, क्योंकि दुनिया में कोई तीन सौ धर्म हैं, और एक धर्म को | | कहता है कि अगर आकार ठीक है, तो निराकार कैसे ठीक होगा? दो सौ निन्यानबे गलत कह रहे हैं। तो आप सोच सकते हैं कि जनता क्योंकि तर्क को लगता है कि आकार के विपरीत है निराकार। पर किसका परिणाम ज्यादा होगा! एक कहता है कि ठीक। और दो | | लेकिन निराकार आकार के विपरीत नहीं है। आकार में भी निराकार सौ निन्यानबे उसके खिलाफ हैं कि गलत। हरेक के खिलाफ दो सौ | | ही प्रकट हुआ है। और निराकार भी आकार के विपरीत नहीं है। निन्यानबे हैं। इन तीन सौ ने मिलकर तीन सौ को ही गलत कर दिया | | जहां आकार लीन होता है, उस स्रोत का नाम निराकार है। है और जमीन अधार्मिक हो गई है। लहर के विपरीत नहीं है सागर। क्योंकि लहर में भी सागर ही सुना है मैंने, दो विद्यार्थी परीक्षा के दिनों में बात कर रहे थे। प्रकट हुआ है। लहर भी सागर के विपरीत नहीं है, क्योंकि सागर उनका दिल था कि जाएं और आज एक फिल्म देख आएं। लेकिन से ही पैदा होती है, तो विपरीत कैसे होगी! और सागर में ही लीन दोनों को अपने पिताओं का डर था। मन तो पढ़ने में बिलकुल लग होती है, तो विपरीत कैसे होगी! जो मूल है, उदगम है और जो अंत नहीं रहा था। फिर एक ने कहा कि छोड़ो भी, कब तक हम परतंत्र है, उसके विपरीत होने का क्या उपाय है? रहेंगे? यह गुलामी बहुत हो गई। अगर यही गुलामी है जिंदगी, तो निराकार और आकार विपरीत नहीं हैं। विपरीत दिखाई पड़ते हैं, इससे तो बेहतर है, हम दोनों यहां से भाग खड़े हों। परीक्षा से भी क्योंकि हमारे पास देखने की सीमित क्षमता है। वे विपरीत दिखाई छूटेंगे और यह बापों की झंझट भी मिट जाएगी। | पड़ते हैं, क्योंकि देखने की हमारे पास इतनी विस्तीर्ण क्षमता नहीं पर दूसरे ने कहा कि यह भूलकर मत करना। क्योंकि वे हमारे है कि दो विरोधों को हम एक साथ देख लें। हमारी देखने की क्षमता दोनों के बाप बड़े खतरनाक हैं। वे जल्दी, देर-अबेर, ज्यादा देर तो इतनी कम है कि जिसका हिसाब नहीं। नहीं लगेगी, हमें पकड़ ही लेंगे और अच्छी पिटाई होगी। तो दूसरे | | अगर मैं आपको एक कंकड़ का छोटा-सा टुकड़ा हाथ में दे दूं ने कहा कि कोई फिक्र नहीं; अगर पिटाई भी हो, तो अब बहुत हो | | और आपसे कहूं कि इसको पूरा एक साथ देख लीजिए, तो आप गया सहते। हम भी सिर खोल देंगे उन पिताओं के। पूरा नहीं देख सकते। एक तरफ एक दफा दिखाई पड़ेगी। फिर तो उस दूसरे ने कहा, यह जरा ज्यादा बात हो गई। धर्मशास्त्र में उसको उलटाइए, तो दूसरी तरफ दिखाई पड़ेगी। और जब दूसरा लिखा हुआ है, माता और पिता का आदर परमात्मा की भांति करना | हिस्सा दिखाई पड़ेगा, तो पहला दिखाई पड़ना बंद हो जाएगा। चाहिए। तो उस दूसरे ने कहा, तो फिर ऐसा करना, तुम मेरे पिता __एक छोटे-से कंकड़ को भी हम पूरा नहीं देख सकते, तो सत्य का सिर खोल देना, मैं तुम्हारे पिता का! तो धर्मशास्त्र की भी आज्ञा | | को हम पूरा कैसे देख सकते हैं? कंकड़ तो बड़ा है, एक छोटे-से पूरी हो जाएगी। | रेत के कण को भी आप परा नहीं देख सकते. आधा ही देख सकते ये दुनिया में तीन सौ धर्मों ने यह हालत कर दी है। एक-दूसरे ने हैं। आधा हमेशा ही छिपा रहेगा। और जब दूसरे आधे को एक-दूसरे के परमात्मा का सिर खोल दिया है। लाशें पड़ी हैं अब | देखिएगा, तो पहला आधा आंख से तिरोहित हो जाएगा। परमात्माओं की। और वे सब इस मजे में खोल रहे हैं कि हम तुम्हारे | आज तक किसी आदमी ने कोई चीज पूरी नहीं देखी। बाकी परमात्मा का सिर खोल रहे हैं, कोई अपने का तो नहीं! आधे की हम सिर्फ कल्पना करते हैं कि होनी चाहिए। उलटाकर हिंदुओं ने मुसलमानों को गलत कर दिया है; मुसलमानों ने | जब देखते हैं, तो मिलती है; लेकिन तब तक पहला आधा खो जाता हिंदुओं को गलत कर दिया है। साकारवादियों ने निराकारवादियों है। आदमी के देखने की क्षमता इतनी संकीर्ण है! को गलत कर दिया है; निराकारवादियों ने साकारवादियों को गलत तो हम सत्य को पूरा नहीं देख पाते हैं। सत्य के संबंध में हमारी कर दिया है। बाइबिल कुरान के खिलाफ है; कुरान वेद के खिलाफ हालत वही है, जो हाथी के पास पांच अंधों की हो गई थी। उन है; वेद तालमुद के खिलाफ है; तालमुद इसके...। सब एक-दूसरे सबने हाथी ही देखा था, लेकिन पूरा नहीं देखा था। किसी ने हाथी
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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