________________
गीता दर्शन भाग-6
है, तो आप ही जैसा है; बात खतम हो गई।
जिस दिन आपको पता चलता है कि गुरु आप जैसा है, गुरु खतम। वह आपसे विपरीत होना चाहिए । अगर आप स्त्रियों के पीछे भागते रहते हैं, तो गुरु को बिलकुल स्त्री पास भी नहीं फड़कने देनी चाहिए; उसके शिष्य चिल्लाते रहने चाहिए कि छू मत लेना, कोई स्त्री छू न ले। तब आपको जंचेगा कि हां, यह गुरु ठीक है।
सब अपने दुश्मन हैं, इसलिए अपने से विपरीत को चुन लेते हैं। फिर बड़ा खतरा है। क्योंकि अपने से विपरीत को चुन तो लेते हैं आप, आकर्षित तो होते हैं, लेकिन उस मार्ग पर आप चल नहीं सकते हैं। क्योंकि जो आपके विपरीत है, वह आप हो नहीं सकते। इसलिए अक्सर चेले कहीं भी नहीं पहुंच पाते।
साधक को पहली बात ध्यान में रखनी चाहिए कि मेरी स्थिति क्या है? मैं किस ढंग का हूं? मेरा ढंग ही मेरा मार्ग बनेगा |
तो बेहतर तो यह है कि अपनी स्थिति को ठीक से समझकर और यात्रा पर चलना चाहिए। गुरु को समझकर यात्रा पर चलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अपने को समझकर गुरु खोजना चाहिए। गुरु खोजकर पीछा नहीं करना चाहिए। जो अपने को समझकर गुरु खोज लेता है, मार्ग खोज लेता है, जो अपने स्वधर्म को पहचान लेता है...।
समझ लें कि आपको प्रेम का कोई अनुभव ही नहीं होता । बहुत लोग हैं, जिनको अनुभव नहीं होता। मगर सबको यह खयाल रहता है कि मैं प्रेम करता हूं। तब बड़ी कठिनाई हो जाती है। अगर आपको प्रेम का कोई अनुभव ही नहीं होता है, तो भक्ति का मार्ग आपके लिए नहीं है। अगर प्रेम करने वाले आपको पागल मालूम पड़ते हैं, तो भक्ति का मार्ग आपके लिए नहीं है।
कभी आपने सोचा कि अगर मीरा आपको बाजार में नाचती हुई मिल जाए, तो आपके मन पर क्या छाप पड़ेगी?
इसको ऐसा सोचिए कि अगर आप बाजार में नाच रहे हों कृष्ण का नाम लेकर, तो आपको आनंद आएगा या आपको फिक्र लगेगी कि कोई अब पुलिस में खबर करता है! लोग क्या सोच रहे होंगे ? लोक-लाज, मीरा ने कहा है, छोड़ी तेरे लिए। वह लोक-लाज छोड़ सकेंगे आप?
प्रेम का कोई अनुभव आपको अगर हुआ हो और वह अनुभव आपको इतना कीमती मालूम पड़ता हो कि सब खोया जा सकता है, तो ही भक्ति का मार्ग आपके लिए है।
और कुनकुने भक्त होने से न होना अच्छा। ल्यूक वार्म होने से
30
कुछ नहीं होता दुनिया में। उबलना चाहिए, तो ही भाप बनता है पानी । और जब तक आपकी भक्ति भी उबलती हुई न हो, कुनकुनी हो, तब तक सिर्फ बुखार मालूम पड़ेगा, कोई फायदा नहीं होगा। | बुखार से तो न- बुखार अच्छा । अपना नार्मल टेम्प्रेचर ठीक | क्योंकि बुखार गलत चीज है; उससे परिवर्तन भी नहीं होता, और उपद्रव भी हो जाता है।
और ध्यान रहे, परिवर्तन हमेशा छोर पर होता है। जब पानी उबलता है सौ डिग्री पर, तब भाप बनता है। और जब प्रेम भी | उबलता है सौ डिग्री पर, जब बिलकुल दीवाना हो जाता है, तो ही मार्ग खुलता है। उससे पहले नहीं।
अगर वह आपका झुकाव न हो, तो उस झंझट में पड़ना ही मत । तो फिर बेहतर है कि आप प्रेम का खयाल न करके, ध्यान का खयाल करना । फिर किसी परमात्मा से अपने को भरना है, इसकी फिक्र छोड़ | देना। फिर तो सब चीजों से अपने को खाली कर लेना है, इसकी | आप चिंता करना । वही आपके लिए उचित होगा। फिर एक-एक विचार को धीरे-धीरे भीतर से बाहर फेंकना। और भीतर साक्षी - भाव को जन्माना। और एक ही ध्यान रह जाए कि उस क्षण को मैं पा लूं, जब मेरे भीतर कोई चिंतन की धारा न हो, कोई विचार न हो।
जब मेरे भीतर निर्विचार हो जाएगा, तो मेरा निराकार से मिलन हो जाएगा । और जब मेरे भीतर प्रेम ही प्रेम रह जाएगा - उन्मत्त प्रेम, विक्षिप्त प्रेम, उबलता हुआ प्रेम-तब मेरा सगुण से मिलन हो जाएगा।
अपना निज रुझान खोजकर जो चलता है, और उसको उसकी पूर्णता तक पहुंचा देता है...। आप ही हैं द्वार; आप ही हैं मार्ग; आप में ही छिपी है मंजिल । थोड़ी समझ अपने प्रति लगाएं और थोड़ा अपना निरीक्षण करें और अपने को पहचानें, तो जो बहुत कठिन दिखाई पड़ता है, वह उतना ही सरल हो जाता है।
पांच मिनट रुकेंगे। कोई उठे नहीं । कीर्तन में भाव से भाग लें और फिर जाएं।