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________________ ॐ दो मार्गः साकार और निराकार * संसार में ईश्वर का कोई अनुभव नहीं होता-मुझे! अगर आप थोड़ा-सा शांत होकर ध्यान दें, तो हृदय की धड़कन साधक हमेशा स्वयं को केंद्र में रखेगा। और तब सवाल उठेगा| | भी सुनाई पड़ने लगेगी। वह तो चौबीस घंटे धड़क रहा है। आपको कि मुझे अनुभव नहीं होता, तो मैं क्या करूं कि अनुभव हो सके? उसका पता नहीं चलता, क्योंकि उस तरफ ध्यान नहीं है। जिस वह प्रमाण नहीं पूछेगा ईश्वर के लिए कि प्रमाण क्या हैं? वह तरफ ध्यान होता है, उस तरफ अनुभव होता है। पूछेगा, मार्ग क्या हैं? तो साधक पूछेगा कि परमात्मा के अनुभव के लिए कैसा ध्यान तो पहली बात कि मुझे अनुभव नहीं है, इसकी. गहरी प्रतीति। | हो मेरा? किस तरफ मेरे ध्यान को मैं लगाऊं कि वह मौजूद हो, तो फिर दूसरी बात कि अनुभव का मार्ग क्या है? क्योंकि मुझे अनुभव | | उसकी मुझे प्रतीति होने लगे? उसकी प्रतीति आपके ध्यान के प्रवाह नहीं है, उसका अर्थ ही यह हुआ कि मैं उस जगह अभी नहीं हूं, पर निर्भर करेगी। जहां से अनुभव हो सके। मैं उस द्वार पर नहीं खड़ा हूं, जहां से वह आपको वही दिखाई पड़ता है, जो आप देखते हैं। अगर आप दिखाई पड़ सके। मैं उस तल पर नहीं हूं, जहां से उसकी झलक हो | चमार हैं, तो आपको लोगों के सिर नहीं दिखाई पड़ते, पैर दिखाई सके। मेरी वीणा तैयार नहीं है कि उसके हाथ उस पर संगीत को | पड़ते हैं। दिखाई पड़ेंगे ही। क्योंकि ध्यान सदा जूते पर लगा हुआ पैदा कर सकें। मेरे तार ढीले होंगे, तार टूटे होंगे। तो मुझे मेरी वीणा | है। और चमार दुकान पर आपकी शक्ल नहीं देखता, आपका जूता को तैयार करना पड़ेगा। मुझे योग्य बनना पड़ेगा कि उसका अनुभव | | देखकर समझ जाता है कि जेब में पैसे हैं या नहीं। वह जूता ही सारी हो सके। कहानी कह रहा है आपकी। जो उसकी गति आपने बना रखी है, ईश्वर की तलाश स्वयं के रूपांतरण की खोज है। ईश्वर की उससे सब पता चल रहा है कि आपकी हालत क्या होगी। आपके तलाश ईश्वर की तलाश नहीं है, आत्म-परिष्कार है। मुझे योग्य जूते की हालत आपकी हालत है। बनना पड़ेगा कि मैं उसे देख पाऊं। मुझे योग्य बनना पड़ेगा कि वह मैंने सुना है कि एक दर्जी घूमने गया रोम। लौटकर आया तो मुझे प्रतीत होने लगे, उसकी झलक, उसका स्पर्श। उसके पार्टनर ने, उसके साझीदार ने पूछा, क्या-क्या देखा? तो सब आपको खयाल है कि जितनी चीजें आपके चारों तरफ हैं, क्या बातें उसने बताई और उसने कहा कि पोप को भी देखने गया था। आपको उन सबका पता होता है? वैज्ञानिक कहते हैं कि सौ में से | गजब का आदमी है। तो उसके साझीदार ने कहा कि पोप के संबंध केवल दो प्रतिशत चीजों का आपको पता चलता है। और पता | में कुछ और विस्तार से कहो। उसने कहा कि आध्यात्मिक है, इसलिए चलता है कि आप उन पर ध्यान देते हैं, इसलिए पता दुबला-पतला है। ऊंचाई पांच फीट दो इंच से ज्यादा नहीं, और चलता है। नहीं तो पता नहीं चलता। कमीज की साइज थर्टी सिक्स शार्ट! अगर आप एक कार में बैठे हैं और कार का इंजन थोड़ी-सी पोप का दर्शन करने गया था वह। मगर दर्जी है, तो पोप की खट-खट की आवाज करने लगे, आपको पता नहीं चलेगा, ड्राइवर कमीज पर खयाल जाएगा। अब वह अगर लौटकर पोप की को फौरन पता चल जाएगा। आप भी वहीं बैठे हैं। आपको क्यों कमीज की खबर दे, तो इसका यह मतलब नहीं कि पोप की कोई सुनाई नहीं पड़ता? आपका ध्यान नहीं है उस तरफ। सुनाई तो आत्मा नहीं थी वहां। मगर आत्मा देखने के लिए कोई और तरह आपके भी कान को पड़ता ही होगा, क्योंकि आवाज हो रही है। का आदमी चाहिए। लेकिन ड्राइवर को सुनाई पड़ता है, आपको सुनाई नहीं पड़ता। ध्यान जहां हो, वही दिखाई पड़ता है। तो फिर साधक पूछेगा आपका ध्यान उस तरफ नहीं है, ड्राइवर का ध्यान उस तरफ है। कि मुझे उसका अनुभव नहीं होता, तो कहीं कोई आयाम ऐसा है आप अपने कमरे में बैठे हैं। कभी आपने खयाल किया कि | | जिस तरफ मेरा ध्यान नहीं जाता है। तो उस तरफ मैं कैसे ध्यान दीवाल की घड़ी टक-टक करती रहती है, आपको सुनाई नहीं | को ले जाऊं? पड़ती। आज लौटकर कमरे में आंख बंद करके ध्यान करना, फौरन | | फिर ध्यान की विधियां हैं। फिर प्रार्थना के मार्ग हैं। फिर उनमें टक-टक सुनाई पड़ने लगेगी। और टक-टक धीमी आवाज है। से चुनकर लग जाना चाहिए। जो भी प्रीतिकर लगे, उस दिशा में बाहर का कितना ही शोरगुल हो रहा है, अगर आप ध्यान देंगे, तो | | पूरा अपने को डुबा देना चाहिए। अगर आपको लगता है कि टक-टक सुनाई पड़ने लगेगी। | प्रार्थना, कीर्तन-भजन आपके हृदय को आनंद और प्रफुल्लता से 25
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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