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ॐ गीता दर्शन भाग-60
तो मैंने कहा, मैं चलते रास्ते लोगों को जवाब नहीं देता। आप | जो साधक नहीं है, वह पूछता है, ईश्वर है या नहीं? जो साधक सोचकर आएं, पक्का करके आएं। और यदि वगैरह से काम नहीं है, वह पूछता है कि मुझे उसका अनुभव हुआ या नहीं? इस फर्क चलेगा, कि समझ लें। मैं नहीं समझूगा; आप ही समझकर आएं। | को ठीक से समझ लें। जो साधक नहीं है, सिर्फ जिज्ञासु है, हुआ हो, तो कहें हां। बात खत्म हो गई। न हुआ हो, तो कहें नहीं। | दार्शनिक होगा। वह पूछता है, ईश्वर है या नहीं? उसको अपने में फिर बात शुरू हो सकती है।
उत्सुकता नहीं है; उसे ईश्वर का सवाल है कि ईश्वर है या नहीं। सुन लेते हैं, पढ़ लेते हैं, शब्द मन में घिर जाते हैं। शब्द इकट्ठे| | यह खोज व्यर्थ है। क्योंकि आप कैसे तय करेंगे कि ईश्वर है या हो जाते हैं, जम जाते हैं। उन्हीं शब्दों को हम दोहराए चले जाते हैं | | नहीं? पूछने की सार्थक खोज तो यह है कि मुझे उसका अनुभव और सोचते हैं कि ठीक, हमें पता तो है। थोड़ा कम होगा, किसी | | नहीं हुआ; कैसे उसका अनुभव हो? वह है या नहीं, यह बड़ा को थोड़ा ज्यादा होगा। लेकिन पता तो हमें है।
सवाल नहीं है। कैसे मुझे उसका अनुभव हो? और अगर मुझे ध्यान रखना, उसका अनुभव थोड़ा और कम नहीं होता। या तो | | अनुभव होगा, तो वह है। लेकिन अगर मुझे अनुभव न हो, तो होता है, या नहीं होता। अगर आपको लगता हो कि थोड़ा-थोड़ा | जरूरी नहीं है कि वह न हो। क्योंकि हो सकता है, मेरी खोज में अनुभव हमें भी है, तो आप धोखा मत देना। परमात्मा को टुकड़ों अभी कोई कमी हो। में काटा नहीं जा सकता। या तो आपको अनभव होता है परा. या तो साधक कभी भी इनकार नहीं करेगा। वह इतना ही कहेगा कि नहीं होता। थोड़ा-थोड़ा का कोई उपाय नहीं है; डिग्रीज का कोई मुझे अभी अनुभव नहीं हुआ है। वह यह नहीं कहेगा कि ईश्वर नहीं उपाय नहीं है। कोई यह नहीं कह सकता कि हम जरा अभी इंचभर है। क्योंकि मुझे क्या हक है कहने का कि ईश्वर नहीं है! मुझे पता परमात्मा को जानते हैं, आप चार इंच जानते होंगे। हम पावभर | नहीं है, इतना कहना काफी है। लेकिन हमारी भाषा में बड़ी भूल जानते हैं, आप सेरभर जानते होंगे! बाकी जानते हम भी हैं। क्योंकि होती है। परमात्मा का कोई खंड नहीं है; वह अखंड अनुभव है।
हम निरंतर अपने को भूलकर बातें करते हैं। अगर एक आदमी अगर आपको लगता हो, थोड़ा-थोड़ा अनुभव है, तो समझ | | कुछ कहता है, और आपको अच्छा नहीं लगता, तो आप ऐसा नहीं
के अनुभव नहीं है। और जिसको अनुभव हो जाता है, उसकी कहते कि तुमने जो कहा, वह मुझे अच्छा नहीं लगा। आप ऐसा तो सारी खोज समाप्त हो जाती है। अगर आपकी खोज जारी है, | नहीं कहते हैं। आप ऐसा कहते हैं कि तुम गलत बात कह रहे हो। अगर थोड़ा-सा भी असंतोष भीतर कहीं है, अगर थोड़ा भी ऐसा | आप सारा जिम्मा दूसरे पर डालते हैं। लगता है कि जीवन में कुछ चूक रहा है, तो समझना कि अभी सूरज उगता है सुबह, आपको सुंदर लगता है। तो आप ऐसा नहीं अनुभव नहीं है। क्योंकि उसके अनुभव के बाद जीवन में कोई कमी | | कहते कि यह सूरज का उगना मुझे सुंदर लगता है। आप कहते हो, का अनुभव नहीं रह जाता; कोई अभाव नहीं रह जाता। फिर कोई | | सूरज बड़ा सुंदर है। आप बड़ी गलती कर रहे हो। क्योंकि आपके असंतोष की जरा-सी भी चोट भीतर नहीं होती। फिर कुछ पाने को | | पड़ोस में ही खड़ा हुआ कोई आदमी कह सकता है कि सूरज सुंदर नहीं बचता।
नहीं है। वह भी यही कह रहा है कि मुझे सुंदर नहीं लगता है। सूरज अगर कुछ भी पाने को बचा हुआ लगता हो, और लगता हो कि | की बात ही करनी फिजूल है। सूरज सुंदर है या नहीं, इसे कैसे तय अभी कुछ कमी है, अभी कुछ यात्रा पूरी होनी है, तो समझना कि करिएगा? इतना ही तय हो सकता है कि आपको कैसा लगता है। उसका अनुभव नहीं हुआ। परमात्मा अंत है-समस्त अनुभव का, | | किसी ने गाली दी, आपको बुरी लगती है, तो आप यह मत समस्त यात्रा का, समस्त खोज का।
| कहिए कि यह गाली बुरी है। आप इतना ही कहिए कि यह गाली तो पहली बात तो अनुभवशून्य साधक को समझ लेनी चाहिए मुझे बुरी लगती है। मैं जिस ढंग का आदमी हूं, उसमें यह गाली कि मैं अनुभवशून्य हूं। और ऐसा इसलिए नहीं कि मैं कहता हूं। जाकर बड़ी बुरी लगती है। ऐसा उसको ही समझना चाहिए। उसकी ही प्रतीति, कि मैं | | अपने को केंद्र बनाकर रखेगा साधक। अगर उसे ईश्वर दिखाई अनुभवशून्य हूं, रास्ता बनेगी।
| नहीं पड़ता, तो वह यह नहीं कहेगा कि संसार में कोई ईश्वर नहीं एक फर्क खयाल में रखें।
| है। यह तो बड़ी नासमझी की बात है। इतना ही कहेगा कि मुझे
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