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दो मार्गः साकार और निराकार -
और कोई समझदार हो, तो रास्ते पर पड़े हुए पत्थर को भी सीढ़ी | वह बीमार है। कोई आदमी कारागृह में बंद हो और समझता हो कि बना ले सकता है। यह आप पर निर्भर है कि आप उसका उपयोग | मैं मुक्त हूं, तो कारागृह से छूटने का कोई सवाल ही नहीं है। और सीढ़ी की तरह करेंगे, उस पर चढ़ेंगे और आगे निकल जाएंगे, या | अगर कारागृह को अपना घर ही समझता हो और कारागृह की उसी के किनारे रुककर बैठ जाएंगे कि अब जाने का कोई उपाय न | दीवालें उसने भीतर से और सजा ली हों, तब तो अगर आप छुड़ाने रहा। यह पत्थर पड़ा है। अब कोई उपाय आगे जाने का नहीं है। | भी जाएं तो वह इनकार करेगा कि क्यों मेरे घर से मुझे बाहर निकाल
सीढ़ी अवरोध बन सकती है। अवरोध सीढ़ी बन सकता है। | रहे हो! और अगर उसने अपनी हथकड़ियों को, अपनी बेड़ियों को आप पर निर्भर है। प्रतीक खतरनाक हो जाते हैं, अगर उनको कोई | | सोने के रंग में रंग लिया हो और चमकीले पत्थर लगा लिए हों, तो जोर से पकड़ ले। प्रतीक छोड़ने के लिए हैं। प्रतीक सिर्फ बहाने हैं। | | वह समझेगा कि ये आभूषण हैं। और अगर आप तोड़ने लगें, तो उनका उपयोग कर लेना है और उन्हें भी फेंक देना है। और जब | | वह चिल्लाएगा कि मुझे बचाओ, मैं लुटा जा रहा हूं। कोई व्यक्ति फेंकता चला जाता है, उस समय तक, जब तक कि ___ कारागृह में बंदी आदमी बाहर आने के लिए क्या करे? पहली फेंकने को कुछ भी शेष रहता है, वही व्यक्ति उस अंतिम बिंदु पर | बात तो यह समझे कि वह कारागृह में है। फिर कुछ बाहर आने की पहुंच पाता है।
| बात उठ सकती है। फिर कुछ रास्ता खोजा जा सकता है। फिर एक प्रश्न और, फिर मैं सूत्र लूं।
उनकी बात सुनी जा सकती है, जो बाहर जा चुके हैं। फिर उनसे | पूछा जा सकता है कि वे कैसे बाहर गए हैं। फिर कुछ भी हो सकता
है। लेकिन पहली जरूरत है कि अनुभवशून्य व्यक्ति समझे कि मैं आपने कल कहा कि अनुभव पर आधारित श्रद्धा ही | | अनुभवशून्य हूं। वास्तविक श्रद्धा है। और यह भी कहा कि प्रेम और लेकिन बड़ी कठिनाई है। किताबें हम पढ़ लेते हैं, शास्त्र हम पढ़ भक्ति की साधना सहज व सरल है। यह भी कहा लेते हैं। और शास्त्रों के शब्द हममें भर जाते हैं और ऐसी भ्रांति होती कि आज तर्क व बुद्धि के अत्यधिक विकास के कारण है कि हमें भी अनुभव है। झूठी आस्तिकता खतरे में पड़ गई है। तो समझाएं कि ___ अभी एक वृद्ध सज्जन मेरे पास आए थे। आते से ही वे बोले अनुभवशून्य साधक कैसे श्रद्धा की ओर बढ़े? और | कि ऐसे तो मुझे समाधि का अनुभव हो गया है, लेकिन फिर भी आज के बौद्धिक युग में भक्ति-योग अर्थात भावुकता | सोचा कि चलो, आपसे भी पूछ आऊं। मैंने उनको कहा कि कुछ का मार्ग कैसे उपयुक्त है? श्रद्धा के अभाव में | भी साफ कर लें। अगर अनुभव हो चुका है समाधि का, तो अब भक्ति-योग की साधना कैसे संभव है?
दूसरी बात करें। यह छोड़ ही दें। फिर पूछने को क्या बचा है?
नहीं, उन्होंने कहा कि मैंने सोचा कि चलें, पूछ लेने में हर्ज क्या
| है! तो मैंने कहा, अनुभव हो गया हो, तो पूछने में समय खराब मेरा 1 हली बात, कैसे अनुभवशून्य साधक अनुभव की | | भी न करें, अपना भी खराब न करें। मेरा समय उनमें ही लगने दें, 4 ओर बढ़े? पहली बात तो वह यह समझे कि | जिन्हें अनुभव नहीं हुआ है। तो वे बोले, अच्छा, आप फिर ऐसा
अनुभवशून्य है। बड़ी कठिन है। सभी को ऐसा | ही समझ लें कि मुझे अनुभव नहीं हुआ है। लेकिन बताएं तो कि खयाल है कि अनुभव तो हमें है ही। अपने को अनुभवशून्य मानने | ध्यान कैसे करूं! मैंने कहा, मैं समझूगा नहीं। क्योंकि आप समझें में बड़ी कठिनाई होती है। लेकिन धर्म के संबंध में हम अनुभवशून्य | कि अनुभव नहीं हुआ है, मैं क्यों समझू कि आपको नहीं हुआ है। हैं, ऐसी प्रतीति पहली जरूरत है। क्योंकि जो हमारे पास नहीं है, अगर हुआ है, तो बात खत्म हो गई। वही खोजा जा सकता है। जो हमारे पास है ही, उसकी खोज ही कैसी अड़चन है! आदमी का अहंकार कैसी मुश्किल खड़ी नहीं होती।
| करता है। वे जानना चाहते हैं कि ध्यान क्या है, लेकिन यह भी बीमार आदमी समझता हो कि मैं स्वस्थ हूं, तो इलाज का कोई | | मानने का मन नहीं होता कि ध्यान का मुझे पता नहीं है। ध्यान का सवाल ही नहीं है। बीमार की पहली जरूरत है कि वह समझे कि |
| | तो पता है ही। चलते रास्ते सोचा कि चलो, आपसे भी पूछ लें।