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ॐ गीता दर्शन भाग-60
बड़ा है। वह द्वार छोटा हो जाएगा। जितना हमारे हाथ पकड़े होते | को पकड़े हुए है, वह उतना ही अहंकारी है, जितना कोई और हैं चीजों को, उतने हम भारी और वजनी, उड़ने में असमर्थ हो जाते | अहंकारी है। और कई बार तो ऐसा होता है कि स्थूल अहंकार तो हैं। जितने हमारे हाथ खाली हो जाते हैं...।
खुद भी दिखाई पड़ता है, सूक्ष्म अहंकार दिखाई नहीं पड़ता। इसलिए जीसस ने जो कहा है कि भीतर की दरिद्रता, उसका अर्थ ___ यह जो परमात्मा की यात्रा है, यह तो भीतर की ही यात्रा है। इतना ही है कि जिसने सारी पकड़ छोड़ दी संसार पर, वही भीतर | लेकिन बाहर से हम छोडें. तो हम भीतर की तरफ सरकने शरू हो से दरिद्र है।
जाते हैं। बाहर से हम छोड़ सकें, इसलिए बाहर ही परमात्मा को लेकिन आदमी बहुत उपद्रवी है, बहुत चालाक है। और सब | हमने खड़ा किया है। हमारे सब मंदिर. हमारी सब मस्जिदें, गिरजे, चालाकी में अपने को ही फंसा लेता है। क्योंकि यहां कोई और | | गुरुद्वारे, सब प्रतीक हैं। बाहर कोई मंदिर है नहीं। लेकिन बाहर नहीं है, जिसको आप फंसा सकें। आप खुद ही जाल बुनेंगे और मंदिर बनाना पड़ा है, क्योंकि हम केवल बाहर के ही मंदिर अभी फंस जाएंगे। खुद ही खड्डा खोदेंगे और गिर जाएंगे। हम सब समझ सकते हैं। लेकिन वह बाहर का मंदिर एक जगह हो सकती अपनी-अपनी कब्र खोदकर तैयार रखते हैं। कब मौका आ जाए| | है, जहां से हम संसार को छोड़कर उस मंदिर में प्रवेश कर जाएं। गिरने का, तो गिर जाएं! गिराते दूसरे हैं, कः हम ही खोद लेते हैं। | और फिर वह मंदिर भी छूट जाएगा। क्योंकि जब इतना बड़ा संसार
और वे दूसरे भी हमारी सहायता इसलिए करते हैं, क्योंकि हम | छूट गया, तो यह छोटा-सा मंदिर ज्यादा देर नहीं रुक सकता है। उनकी सहायता करते रहे हैं!
और जब संसार छट गया, तो संसार में बैठे हए परमात्मा की प्रतिमा __ आदमी बहुत जटिल है और सोचता है कि बहुत होशियार है। | भी छूट जाएगी। वह केवल बहाना है। . तो कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि वह बाहर की, संसार की | संसार को छोड़ सकें, इसलिए परमात्मा को बाहर रखते हैं। फिर संपत्ति छोड़ देता है, तो फिर कुछ भीतरी गुणों की संपत्ति को पकड़ | तो वह भी छूट जाता है। और जो संसार को ही छोड़ सका, वह लेता है।
अब इस एक को भी छोड़ देगा। जिसने अनेक को छोड़ दिया, वह सुना है. मैंने, एक तथाकथित संत का परिचय दिया जा रहा था। एक को भी छोड़ देगा। और जब अनेक भी नहीं बचता और एक और जो परिचय देने खड़ा था—जैसा कि भाषण में अक्सर हो | | भी नहीं बचता, तभी वस्तुतः वह एक बचता है, जिसको हमने जाता है उसकी गरमी बढ़ती गई, जोश बढ़ता गया। और वह अद्वैत कहा है। इसलिए हमने उसको एक नहीं कहा। फकीर की बड़ी तारीफ करने लगा। और उसने कहा कि ऐसा फकीर क्योंकि अनेक बाहर हैं, इनको छोड़ने के लिए एक परमात्मा की पृथ्वी पर दूसरा नहीं है। इन जैसा ज्ञान लाखों वर्षों में कभी होता है।। | धारणा काम में लानी पड़ती है। संसार को हम छोड़ते हैं उस एक बड़े-बड़े पंडित इनके चरणों में आकर बैठते हैं और सिर झुकाते हैं। के लिए। फिर जब वह एक भी छूट जाता है, तब जो बचता है, इन जैसा प्रेम असंभव है दोबारा खोज लेना। सब तरह के लोग उसको हम क्या कहें! उसको अनेक नहीं कह सकते। अनेक संसार इनके प्रेम में नहाते हैं और पवित्र हो जाते हैं। और वह ऐसा कहता था, छट गया। उसको एक भी नहीं कह सकते। क्योंकि वह एक चला गया।
भी जो हमने बाहर बनाया था. वह भी बहाना था। वह भी छट गया। जब सारी बात पूरी होने के करीब थी, तो उस फकीर ने उस | अब जो बचा, उसे हम क्या कहें? अनेक कह नहीं सकते; एक कह भाषण करने वाले का कोट धीरे से झटका और कहा कि मेरी | नहीं सकते। इसलिए बड़ी अदभुत व्यवस्था हमने की। हमने उसको विनम्रता के संबंध में मत भूल जाना। डोंट फारगेट माई ह्युमिलिटी। | कहा, अद्वैत। न एक, न दो। हमने सिर्फ इतना कहा है, जो दो नहीं मेरी विनम्रता के संबंध में भी कुछ कहो!
| है। हमने केवल संख्या को इनकार कर दिया। विनम्रता के संबंध में भी कुछ कहो! तो यह आदमी विनम्र रहा। सब संख्याएं बाहर हैं—एक भी, अनेक भी। वे दोनों छूट गईं। होगा कि नहीं? तब तो विनम्रता भी अहंकार हो गया। और तब तो | | अब हम उस जगह पहुंच गए हैं, जहां कोई संख्या नहीं है। लेकिन विनम्रता भी संपत्ति हो गई। यह आदमी बाहर से हो सकता है, सब इस तक जाने के लिए बाहर के प्रतीक सहारे बन सकते हैं। छोड़ दिया हो, लेकिन इसने भीतर से सब पकड़ा हुआ है। इससे | खतरा जरूर है। खतरा आदमी में है, प्रतीकों में नहीं है। खतरा कुछ भी छूटा नहीं है, क्योंकि पकड़ नहीं छूटी है। और जो विनम्रता यह है कि कोई सीढ़ी को ही रास्ते की अड़चन बना ले सकता है।
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