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o दो मार्गः साकार और निराकार 0
तो कोई भी आब्जेक्ट, चाहे परमात्मा की प्रतिमा हो, चाहे कोई | | बड़े अक्षरों में रेत पर लिख दिया, ध्यान। तो वह आदमी थोड़ा यंत्र हो, चाहे कोई मंत्र हो, चाहे कोई शब्द हो, चाहे कोई | | संदिग्ध हुआ। उसने कहा कि उसी शब्द को दोहराने से क्या होगा! आकार-रूप हो, कोई भी हो, इतना ही उसका उपयोग है बाहर | थोड़ा और साफ करो। तो इक्क्यु ने और बड़े अक्षरों में लिख रखने में कि आप पूरे संसार को भूल जाएंगे और एक रह जाएगा। दिया, ध्यान। जिस क्षण एक रहेगा-युगपत-उसी क्षण एक भी खो जाएगा | उस आदमी ने कहा कि तम पागल तो नहीं हो? मैं पछता हं. और आप अपने भीतर फेंक दिए जाएंगे।
कुछ साफ करो। तो इक्क्यु ने कहा, साफ तो तुम्हारे करने से होगा। यह बाहर का जो विषय है, एक जंपिंग बोर्ड है, जहां से भीतर साफ मेरे करने से नहीं होगा। अब साफ तुम करो। बात सार की छलांग लग जाती है।
| मैंने कह दी। अब करना तुम्हारा काम है। इससे ज्यादा और मैं कुछ तो किसी भी चीज पर एकाग्र हो जाएं। इसलिए कोई फर्क नहीं नहीं कह सकता हूं। और इससे ज्यादा मैं कुछ भी कहूंगा तो गड़बड़ पड़ता कि आप उस एकाग्रता के बिंदु को अल्लाह कहते हैं; कोई | हो जाएगी। फर्क नहीं पड़ता कि ईश्वर कहते हैं, कि राम कहते हैं, कि कृष्ण | उस आदमी की कुछ भी समझ में न आया होगा। क्योंकि इक्क्यु कहते हैं, कि बुद्ध कहते हैं। आप क्या कहते हैं, इससे कोई फर्क | | जो भाषा बोल रहा है, वह भाषा उसके लिए जटिल पड़ी होगी। नहीं पड़ता। आप क्या करते हैं, इससे फर्क पड़ता है। राम, बुद्ध, | उसने शुद्धतम बात कह दी। लेकिन शुद्धतम बात समझने की कृष्ण, क्राइस्ट का आप क्या करते हैं, इससे फर्क पड़ता है। क्या | | सामर्थ्य भी चाहिए। कहते हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता।
इसलिए जो बहुत करुणावान हैं, वे हमारी अशुद्ध भाषा में करने का मतलब यह है कि क्या आप उनका उपयोग अपने को बोलते हैं। इसलिए नहीं कि अशुद्ध बोलने में कुछ रस है। बल्कि एकाग्र करने में करते हैं? क्या आपने उनको बाहर का बिंदु बनाया इसलिए कि हम अशुद्ध को ही समझ सकते हैं। और धीरे-धीरे ही है, जिससे आप भीतर छलांग लगाएंगे? तो फिर क्या फर्क पड़ता हमें खींचा जा सकता है उस भीतर की यात्रा पर। एक-एक इंच हम है कि आपने क्राइस्ट से छलांग लगाई, कि कृष्ण से, कि राम से! बहुत मुश्किल से छोड़ते हैं। हम संसार को इस जोर से पकड़े हुए जिस दिन भीतर पहुंचेंगे, उस दिन उसका मिलना हो जाएगा, जो न | | हैं कि एक-एक इंच भी हम बहुत मुश्किल से छोड़ते हैं! और यह क्राइस्ट है, न राम है, न बुद्ध है, न कृष्ण है—या फिर सभी है। | यात्रा है सब छोड़ देने की। क्योंकि जब तक पकड़ न छूट जाए और कहां से छलांग लगाई, वह तो भूल जाएगा।
हाथ खाली न हो जाएं, तब तक परमात्मा की तरफ नहीं उठते। भरे कौन याद रखता है जंपिंग बोर्ड को, जब सागर मिल जाए! हुए हाथ उसके चरणों में नहीं झुकाए जा सकते। सिर्फ खाली हाथ सीढ़ियों को कौन याद रखता है, जब शिखर मिल जाए! रास्ते को उसके चरणों में झुकाए जा सकते हैं। क्योंकि भरे हुए हाथ वाला कौन याद रखता है, जब मंजिल आ जाए! कौन-सा रास्ता था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सभी रास्ते काम में लाए जा सकते हैं। इसीलिए जीसस ने कहा है कि चाहे सई के छेद से ऊंट निकल काम में लाने वाले पर निर्भर करता है।
| जाए. लेकिन धनी आदमी मेरे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न कर सकेगा। अभी आप बाहर हैं, इसलिए बाहर परमात्मा की धारणा करनी। यह किस धनी आदमी की बात कही है? वे सभी धनी हैं, जिनके पड़ती है आपकी वजह से। परमात्मा की वजह से नहीं, आपकी | हाथ भरे हुए हैं। जिन्हें लगता है, कुछ हमारे पास है; जिन्हें लगता वजह से। भीतर की भाषा आपकी समझ में ही न आएगी। है कि कुछ पकड़ने योग्य है; जिन्हें लगता है कि कोई संपदा है। वे
इक्क्यु हुआ है एक झेन फकीर। किसी ने आकर इक्क्यु से पूछा | | उस द्वार में प्रवेश न कर सकेंगे। कि सार, सारे धर्म का सार संक्षिप्त में कह दो। क्योंकि मेरे पास जिसके पास कुछ है, उसके लिए द्वार बहुत संकीर्ण मालूम ज्यादा समय नहीं है। मैं काम-धंधे वाला आदमी हूं। क्या है धर्म | पड़ेगा। उसमें से वह निकल न सकेगा। और जिसके पास कुछ नहीं का मूल सार? तो इक्क्यु बैठा था रेत पर, उसने अंगुली से लिख | | है, उसके लिए वह द्वार इतना विराट है, जितना विराट हो सकता दिया, ध्यान। उस आदमी ने कहा, ठीक। लेकिन थोड़ा और है। यह पूरा संसार उससे निकल जाए, इतना बड़ा वह द्वार है। विस्तार करो। इतने से बात समझ में नहीं आई। तो इक्क्यु ने और लेकिन जिसके पास कुछ है, उसके लिए सुई के छेद का द्वार भी
दिल