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________________ 0 दो मार्गः साकार और निराकार 0 का एक टुकड़ा हाथ में न रहा। सिवाय दुख के मेरे पल्ले कुछ भी | इसलिए हैं कि शराब के लिए कुछ पैसे मिल जाएं। नहीं पड़ा है। कारण क्या है? और मैं यह नहीं कहता हूं कि तू मेरे | हमारी सारी हालत ऐसी है। हम तो परमात्मा के द्वार पर इसलिए साझीदार को दंड दे। सिर्फ इतना ही पूछता हूं कि मेरा कसूर क्या | | जाते हैं कि कोई क्षुद्र मांग पूरी हो जाए। और ये सारे शिक्षक हमसे है? इतना अन्याय मेरे साथ क्यों? यह कैसे न्याय की व्यवस्था है? | कहते हैं कि तुम मांग छोड़कर वहां जाना, तो ही उसके द्वार में प्रवेश सिनागाग में परमात्मा की आवाज गूंजी कि सिर्फ छोटा-सा | पा सकोगे, तो ही उसके कान तक तुम्हारी आवाज पहुंचेगी। लेकिन कारण है। बिकाज यू हैव बीन नैगिंग मी डे इन डे आउट लाइक एन | हमारी दिक्कत यह है कि तब हम आवाज ही क्यों पहंचाना चाहेंगे? आथेंटिक वाइफ। एक प्रामाणिक पत्नी की तरह तुम मेरा सिर खा हम उसके द्वार पर ही क्यों जाएंगे? हम उसके द्वार पर दस्तक ही रहे हो जिंदगीभर से, यही कारण है, और कुछ भी नहीं। तुम तीन क्यों देंगे? हम तो वहां जाते इसलिए हैं कि कोई मांग पूरी करना दफे प्रार्थना क्या करते हो, तीन दफे मेरा सिर खाते हो! चाहते हैं। आपकी प्रार्थना से अगर परमात्मा तक को अशांति होती हो, तो लेकिन जो मांग पूरी करना चाहता है, वह उसके द्वार पर जाता आप ध्यान रखना कि आपको शांति न होगी। आपकी प्रार्थनाएं क्या ही नहीं। वह मंदिर के द्वार पर जा सकता है, मस्जिद के द्वार पर जा हैं? नैगिंग। आप सिर खा रहे हैं। ये प्रार्थनाएं आपकी आस्तिकता सकता है, उसके द्वार पर नहीं जा सकता। क्योंकि उसका द्वार तो का सबूत नहीं हैं, और न आपकी प्रार्थना का। और न आपका दिखाई ही तब पड़ता है, जब चित्त से मांग विसर्जित हो जाती है। हार्दिक इन मांगों से कोई संबंध है। ये सब आपकी वासनाएं हैं। उसका द्वार वहां किसी मकान में बना हुआ नहीं है। उसका द्वार तो लेकिन हमारी तकलीफ ऐसी है। बुद्ध हों, महावीर हों, कृष्ण हों, उस चित्त में है, जहां मांग नहीं है, जहां कोई वासना नहीं है, जहां वे सभी कहते हैं; मोहम्मद हों या क्राइस्ट हों, वे सभी कहते हैं कि . स्वीकार का भाव है। जहां परमात्मा जो कर रहा है, उसकी मर्जी के तुम्हारी सब मांगें पूरी हो जाएंगी, लेकिन तुम उसके द्वार पर मांग प्रति पूरी स्वीकृति है, समर्पण है, उस हृदय में ही द्वार खुलता है। छोड़कर जाना। यही हमारी मुसीबत है। फिर हम उसके द्वार पर | ___ मंदिर के द्वार को उसका द्वार मत समझ लेना, क्योंकि मंदिर के जाएंगे ही क्यों? द्वार में तो वासना सहित आप जा सकते हैं। उसका द्वार तो आपके हमारी तकलीफ यह है कि हम उसके द्वार पर ही इसीलिए जाना ही हृदय में है। और उस हृदय पर वासना की ही दीवाल है। वह चाहते हैं कि हमारी मांगें हैं और मांगें पूरी हो जाएं। और ये सब दीवाल हट जाए, तो द्वार खुल जाए। शिक्षक बड़ी उलटी शिक्षा देते हैं। वे कहते हैं कि तुम अपनी मांगें तो ऐसा मत पूछे कि आपकी प्रार्थनाएं, आपका भजन, आपका छोड दो. तो ही उसके द्वार पर जा सकोगे। और फिर तम्हारी सब ध्यान, आपकी मांग को परा क्यों नहीं करवाता। आपकी मांग के हो जाएंगी। कछ मांगने को न बचेगा: सब तम्हें मिल कारण भजन ही नहीं होता. ध्यान ही नहीं होता. प्रार्थना ही नहीं जाएगा। लेकिन वह जो शर्त है, वह हमसे पूरी नहीं होती। | होती। इसलिए पूरे होने का तो कोई सवाल ही नहीं है। जो चीज मुल्ला नसरुद्दीन एक छोटे-से गांव में शिक्षक था। लेकिन | | शुरू ही नहीं हुई, वह पूरी कैसे होगी? आप यह मत सोचें कि धीरे-धीरे लोगों ने अपने बच्चों को उसकी पाठशाला से हटा लिया, | | आखिरी चीज खो रही है। पहली ही चीज खो रही है। पहला कदम क्योंकि वह शराब पीकर स्कूल पहुंच जाता और दिनभर सोया | ही वहां नहीं है। आखिरी कदम का तो कोई सवाल ही नहीं है। रहता। आखिर उसकी पत्नी ने कहा कि तुम थोड़ा अपना चरित्र | प्रेम मांगशून्य है। प्रेम बेशर्त है। जब आप किसी को प्रेम करते बदलो, अपना आचरण बदलो। यह तुम शराब पीना बंद करो, नहीं हैं, तो आप कुछ मांगते हैं? आपकी कोई शर्त है? प्रेम ही आनंद तो तुमसे पढ़ने कोई भी नहीं आएगा। | है। प्रार्थना परम प्रेम है। अगर प्रार्थना ही आपका आनंद हो, आनंद मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा कि तू बात ही उलटी कह रही है। हम प्रार्थना के बाहर न जाता हो, कोई मांग न हो पीछे जो पूरी हो जाए तो उन बच्चों को पढ़ाने की झंझट ही इसीलिए लेते हैं कि शराब तो आनंद मिलेगा, प्रार्थना करने में ही आनंद मिलता हो, तो ही पीने के लिए पैसे मिल जाएं। और तू कह रही है कि शराब पीना प्रार्थना हो पाती है। तो जब प्रार्थना करने जाएं तो प्रार्थना को ही छोड़ दो, तो बच्चे पढ़ने आएंगे। लेकिन शराब पीना अगर मैं छोड़ आनंद समझें। उसके पार कोई और आनंद नहीं है। दूं, तो बच्चों को पढ़ाऊंगा किस लिए! हम तो बच्चों को पढ़ाते ही सुना है मैंने कि एक फकीर ने रात एक स्वप्न देखा कि वह स्वर्ग मांगें भी 17
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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