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गीता दर्शन भाग-6
ये त्यक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते।
हम दुखी हैं, तो सुख मांगते हैं। पर जरूरी नहीं कि सुख सुख सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम् ।।३।। | ही लाए। अक्सर तो ऐसा होता है कि सुख और बड़े दुख ले आता
संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः । | है। दुख भी मांजता है, दुख भी निखारता है, दुख भी समझ देता है। ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः ।।४।। हो सकता है, दुख के मार्ग से निखरकर ही आप जीवन के सत्य को और जो पुरुष इंद्रियों के समुदाय को अच्छी प्रकार वश में पा सकें और सुख आपके लिए महंगा सौदा हो जाए। करके मन-बुद्धि से परे सर्वव्यापी, अकथनीय स्वरूप और __ इसलिए क्या ठीक है, यह जो परमात्मा पर छोड़ देता है, वही सदा एकरस रहने वाले, नित्य, अवल, निराकार, अविनाशी, | प्रार्थना कर रहा है। जो कहता है कि यह है ठीक और तू पूरा कर, सच्चिदानंदघन ब्रह्म को निरंतर एकीभाव से ध्यान करते हुए वह प्रार्थना नहीं कर रहा है, वह परमात्मा को सलाह दे रहा है। उपासते हैं, वे संपूर्ण भूतों के हित में रत हुए और सब में आपकी सलाह का कितना मूल्य हो सकता है? काश, आपको समान भाव वाले योगी भी मेरे को ही प्राप्त होते हैं। यह पता होता कि क्या आपके हित में है! वह आपको बिलकुल
पता नहीं है। आपको यह भी पता नहीं है कि वस्तुतः आप क्या
चाहते हैं! क्योंकि जो आप सुबह चाहते हैं, दोपहर इनकार करने पहले कुछ प्रश्न। एक मित्र ने पूछा है कि भजन भी लगते हैं। और जो आपने आज सांझ चाहा है, जरूरी नहीं है कि करते हैं, प्रभु का स्मरण भी करते हैं। लेकिन कोई कल सुबह भी आप वही चाहें। इच्छा कभी पूरी नहीं होती!
पीछे लौटकर अपनी चाहों को देखें। वे रोज बदल जाती हैं; प्रतिपल बदल जाती हैं। और यह भी देखें कि जो चाहें पूरी हो जाती
हैं, उनके पूरे होने से क्या पूरा हुआ है? वे न भी पूरी होती, तो - हां मांग है, वहां प्रार्थना नहीं है। और मांग ही प्रार्थना | | कौन-सी कमी रह जाती? ठीक हमें पता ही नहीं है। हम क्या मांग OI को असफल कर देती है। प्रार्थना इसलिए असफल रहे हैं? क्यों मांग रहे हैं? क्या उसका परिणाम होगा?
गई कि आपको प्राप्ति हुई, नहीं हुई-ऐसा नहीं। सुना है मैंने कि एक सिनागाग में, एक यहूदी प्रार्थना-मंदिर में, प्रार्थना तो उसी क्षण असफल हो गई. जब आपने मांगा। जो एक बढा यहदी प्रार्थना कर रहा था। और वह परमात परमात्मा के द्वार पर मांगता जाता है, वह खाली हाथ लौटेगा। जो | था कि अन्याय की भी एक हद होती है! सत्तर साल से निरंतर, जब वहां खाली हाथ खड़ा हो जाता है बिना किसी मांग के, वही केवल से मैंने होश सम्हाला है—उस यहूदी की उम्र होगी कोई पचासी भरा हुआ लौटता है।
वर्ष-जब से मैंने होश सम्हाला है, सत्तर वर्ष से तेरी प्रार्थना कर परमात्मा से कुछ मांगने का अर्थ क्या होता है? पहला तो अर्थ | | रहा हूं। दिन में तीन बार प्रार्थनागृह में आता हूं। बच्चे का जन्म हो, यह होता है कि शिकायत है हमें। शिकायत नास्तिकता है। कि लड़की की शादी हो, कि घर में सुख हो कि दुख हो, कि यात्रा शिकायत का अर्थ है कि जैसी स्थिति है, उससे हम नाराज हैं। जो | पर जाऊं या वापस लौटूं, कि नया धंधा शुरू करूं, कि पुराना बंद परमात्मा ने दिया है, उससे हम अप्रसन्न हैं। जैसा हम चाहते हैं, | करूं, ऐसा कोई भी एक काम जीवन में नहीं किया, जो मैंने तेरी वैसा नहीं है। और जैसा है, वैसा हम नहीं चाहते हैं। | प्रार्थना के साथ शुरू न किया हो। जैसा आदेश है धर्मशास्त्रों में, शिकायत का यह भी अर्थ है कि हम परमात्मा से स्वयं को ज्यादा वैसा जीवन जीया हूं। पर-स्त्री को कभी बुरी नजर से नहीं देखा। बुद्धिमान मानते हैं। वह जो कर रहा है, गलत कर रहा है। हमारी | | दूसरे के धन पर लालच नहीं की। चोरी नहीं की। झूठ नहीं बोला। सलाह मानकर उसे करना चाहिए, वही ठीक होगा। जैसे कि हमें | बेईमानी नहीं की। परिणाम क्या है? और मेरा साझीदार है, स्त्रियों पता है कि क्या है जो ठीक है हमारे लिए।
के पीछे भटककर जिंदगीभर उसने खराब की है। तेरी प्रार्थना कभी ___ अगर हम बीमार हैं, तो हम स्वास्थ्य मांगते हैं। लेकिन जरूरी | उसे करते नहीं देखा। चोरी, बेईमानी, झूठ, सब उसे सरल है। नहीं कि बीमारी गलत ही हो। और बहुत बार तो स्वास्थ्य भी वह | जुआड़ी है, शराब पीता है। लेकिन दिन दूनी रात चौगुनी उसकी नहीं दे पाता, जो बीमारी दे जाती है।
| स्थिति अच्छी होती गई है। अभी भी स्वस्थ है। मैं बीमार हूं। धन